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Famous Food of Bareilly: बरेली का झुमका ही नहीं, स्वाल-आलू और दही-जलेबी भी है मशहूर, 57 साल बाद भी नहीं बदला पूरनलाल हलवाई के व्यंजनों का स्वाद

बरेली का झुमका ही नहीं यहां का स्वाल-आलू और दही-जलेबी भी बहुत मशहूर है। दूर-दराज से जायके के शौकीन लोग बिहारीपुर ढाल स्थित पूरनपुर स्वीट्स पर पहुंचते हैं। स्वाल-आलू का स्वाद 57 साल बाद भी नहीं बदला है। हर रोज सुबह यहां आलू स्वाल खाने के लिए होड़ लगती है।

By Aqib KhanEdited By: Published: Sat, 02 Jul 2022 03:39 PM (IST)Updated: Sat, 02 Jul 2022 03:39 PM (IST)
Famous Food of Bareilly: बरेली का झुमका ही नहीं, स्वाल-आलू और दही-जलेबी भी है मशहूर, 57 साल बाद भी नहीं बदला पूरनलाल हलवाई के व्यंजनों का स्वाद
बरेली का झुमका ही नहीं, स्वाल-आलू और दही जलेबी भी है मशहूर

बरेली, जागरण संवाददाता: स्वाल-आलू और दही जलेबी का स्वाद आज भी बिहारीपुर के लोगों के लिए वर्षों पुराना है। ऐसा नहीं है कि सिर्फ बिहारीपुर के लोग ही इस स्वाद को जानते हैं, वहां दूर-दराज से जायके के शौकीन लोग यहां पहुंचते हैं। बिहारीपुर ढाल स्थित पूरनपुर स्वीट्स पर सुबह खासी भीड़ देखी जा सकती है। उनके स्वाल-आलू का स्वाद 57 साल बाद भी नहीं बदला है। यही कारण है कि हर रोज सुबह यहां आलू स्वाल खाने के लिए होड़ लगती है।

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दुकान के मालिक रमेश कुमार बताते हैं इस दुकान की नींव वर्ष 1965 में उनके पिता स्वर्गीय पूरनलाल ने रखी थी। उन्होंने बताया कि उनके बाबा एक हलवाई की दुकान पर कारीगर थे। उनके बेटे पूरनलाल भी कभी-कभी उनके साथ चले जाते थे। पिता के साथ अक्सर जाते रहने से उन्हें तरह-तरह के व्यंजनों का बनाने का शौक चढ़ा और फिर खुद से ही घर में अंगूर दाना, रसगुल्ला बनाकर कंधे पर एक झोली डालकर गली-गली बेचना शुरू किया। लोगों को स्वाद लगा और अच्छी बिक्री होने लगी तो एक किराए पर एक दुकान खरीद वहां काम शुरू किया। यहां भी वह हर चीज खुद से ही तैयार करते थे। अमूमन दुकान पर आने वाले लोगों ने सुबह के नाश्ते में स्वाल आलू और जलेबी रखने की बात कही तो उन्होंने इसकी शुरुआत की। जो भी पहली बार खाता उनके स्वाल के स्वाद का दीवाना हो जाता। तब से अब तक उनकी दुकान स्वाल आलू के नाम भी जाने जानी लगी।

पहले एक रुपये में सात और अब दस रुपये में तीन

रमेश कुमार ने बताते हैं कि पिताजी के समय में एक रुपये के सात स्वाल आलू मिलते थे, महंगाई बढ़ने के साथ इसकी कीमत में भी वृद्धि हुई है और अब वही स्वाल आलू उसी स्वाद में दस रुपये के तीन मिलते हैं। बताया कि पिता जी अक्सर यही कहते थे कि चाहे लागत भी निकलना मुश्किल हो जाए लेकिन ऐसा कभी न हो कि किसी भी चीज में मिलावट करनी पड़े। आज भी ग्राहक दूर-दूर दराज से अगर यहां पहुंचते हैं तो इसका कारण सिर्फ स्वाद और शुद्धता ही है।


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