National Honey-Bee Day : शहद ही नहीं..‘बड़े’ काम की है मधुमक्खी, शोध में सामने आईं ये नई खूबियां Bareilly News
देश में भले ही अभी मधुमक्खी को विशेष तवज्जो नहीं लेकिन विदेश खासकर चीन और यूरोपीय देशों में उन पर अलग कोर्स और मंत्रालय है।
बरेली, जेएनएन : मधुमक्खी..यानी दुनिया में शहद का एकमात्र स्रोत। इसके अलावा मधुमक्खी जहरीले और बेहद दर्दनाक डंक की वजह से खौफ की वजह भी हैं। लेकिन उसे आप यहीं तक आंक रहे तो जरा ठहरिये। दरअसल दुनिया भर में पाया जाने वाला यह आर्थिक कीट शोध दर शोध अपनी नई खूबियों के साथ सामने आ रहा।
पिछले दिनों अबूधाबी में मधुमक्खियों को लेकर एक कांफ्रेंस हुई। बरेली कॉलेज में जंतु विज्ञान के प्रोफेसर डॉ.राजेंद्र सिंह भी गए। वहां सामने आया कि देश में भले ही अभी मधुमक्खी को विशेष तवज्जो नहीं लेकिन विदेश, खासकर चीन और यूरोपीय देशों में उन पर अलग कोर्स और मंत्रालय है। हाल में चीन, यूरोप के कुछ देशों ने इसके बाई-प्रोडक्ट इजाद किए। वहां से मधुमक्खी ‘बड़े’ काम की है। इनसे दर्द निवारक, पोषक खाद्य पदार्थ, प्रजनन क्षमता बढ़ाने वाली दवाई भी बनती हैं।
रॉयल जैली : प्रजनन क्षमता बढ़ाने में कारगर
किसी छत्ते की मादा मधुमक्खियों में महज रानी मधुमक्खी ही प्रजनन क्षमता रखती है। जब तक रानी छत्ते में रहती है उसके शरीर से कैमिकल (फिरोमोंस) निकलते हैं। ये दूसरी वर्कर मादा मधुमक्खियों को दबाकर रखते हैं। छत्ते के कुछ बॉक्स में जैल (रॉयल जैली) होती है। जब कोई वर्कर मधुमक्खी रॉयल जैली को खा लेती है, तो वह रानी मधुमक्खी में तब्दील हो जाती है। वैज्ञानिकों ने शोध से यह बात जान ली कि रॉयल जैली से प्रजनन क्षमता (फर्टिलिटी) बढ़ती है। इसके बाद उन्होंने रॉयल जैली हासिल कर इससे प्रजनन क्षमता बढ़ाने वाली दवाइयां बनानी शुरू कर दीं। ये बहुत महंगी मिलती है।
प्रो-पैलिस में कैंसर रोधी गुण
मधुमक्खी का पचास-साठ किलो तक का छत्ता आंधी-तूफान में भी नहीं छूटता। ऐसा केमिकल की वजह से होता है जिसे प्रो-पैलिस कहते हैं। यह बेशकीमती है। इसे मधुमक्खी खास तरह की जड़ी-बूटी जिसमें गोंद हो, उसे मिक्स कर बनाती है। इसी से छत्ता चिपकता है। प्रो-पैलिस को टेस्ट किया तो इसमें कैंसर रोधी गुण मिले। यानी प्रो-पैलिस काफी हद तक कैंसर रोकने और इलाज में कारगर मिले। इसके कैप्सूल विदेश में मिलने लगे हैं।
खोजी शहद की अलग-अलग खासियत
मधुमक्खी के छत्ते से शहद और मोम मिलता है। प्राचीन काल से ही शहद के गुणधर्म के बारे में बताया गया है। हालांकि आधुनिक अनुसंधानों से भारत नहीं, लेकिन चीन और यूरोप में काफी खोज की। इसमें आर्थिक कीट के रूप में और खासियत मिलीं। जैसे मधुमक्खी जिस तरह के फूल का जूस चूसती हैं। उस शहद की प्रॉपर्टी वैसी ही होती है। इसकी कंट्रोल फार्मिग कर अलग-अलग खासियत का शहद बनने लगा है।
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मधुमक्खी का डांस है कंपास
जर्मनी के वैज्ञानिक कार्ल वॉन फ्रिश्च ने सबसे पहले मधुमक्खियों की भाषा को डिकोड किया था। इससे किसी छत्ते में मधुमक्खियों की कार्यप्रणाली का पता लगा था। उन्होंने बताया कि सर्वेयर मधुमक्खियां पता लगाती हैं कि छत्ते से बाहर किस दिशा में कहां फूलों का रस मिलेगा। सर्वे करने के बाद लौटकर वह अजीब तरह का गोल-गोल घूमकर डांस करती हैं। इसे टेल वै¨गग और राउंड डांस कहते हैं। इससे रस चूसने वाली मधुमक्खियों को पता चलता है कि फूलों का खेत किस दिशा में, कितना बड़ा और कितनी दूर है। वैज्ञानिक कार्ल वॉन फ्रिश्च को नोबल पुरस्कार भी मिला।