Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    Pilibhit News: नेपाली गैंडों को खूब भाता है यूपी का यह जंगल, गड्ढों में बनाते हैं आशियाना

    By Vivek BajpaiEdited By:
    Updated: Wed, 20 Jul 2022 08:50 AM (IST)

    तराई के जिले का जंगल जैव विविधता के मामले में काफी महत्वपूर्ण माना जाता रहा है। यहां बाघ तेंदुआ भालू जैसे हिंसक वन्यजीवों के साथ ही तृणभोजी वन्यजीवों की भरमार है। तमाम तरह के पक्षी तितलियां सैकड़ों प्रकार की वनस्पतियां विद्यमान हैं।

    Hero Image
    बराही रेंज के जंगल में विचरण करता गैंडा। सौजन्य से वाइल्ड लाइफ फोटोग्राफर

    पीलीभीत, (देवेंद्र देवा)। टाइगर रिजर्व के जंगल से पड़ोसी देश नेपाल की शुक्ला फांटा सेंक्चुरी का जंगल सटा हुआ है। नेपाल के जंगल से हाथियों के झुंड तो पीलीभीत टाइगर रिजर्व में आते ही रहते हैं लेकिन नवंबर से लेकर जनवरी का समय ऐसा होता है, जब नेपाली गैंडे भी पीटीआर के बराही रेंज में स्थित शारदा नदी के छोड़े दलदली गड्ढों को अपना अस्थायी वासस्थल बना लेते हैं। नेपाली गैंडों को यहां लंबे समय तक बनाए रखने के लिए टाइगर रिजर्व की ओर से बराही क्षेत्र के उन दलदली इलाकों को सुरक्षित बनाने के उपाय किए जा रहे हैं। दूसरी ओर महोफ रेंज में बारहसिंघा ताल व सांभर ताल के आसपास गैंडा परियोजना की तैयारी शुरू हुई थी लेकिन बाद में इसकी फाइल शासन में अटक गई।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    तराई के जिले का जंगल जैव विविधता के मामले में काफी महत्वपूर्ण माना जाता रहा है। यहां बाघ, तेंदुआ, भालू जैसे हिंसक वन्यजीवों के साथ ही तृणभोजी वन्यजीवों की भरमार है। तमाम तरह के पक्षी, तितलियां, सैकड़ों प्रकार की वनस्पतियां विद्यमान हैं। सिर्फ गैंडा की कमी है। गैंडा परियोजना के लिए उसी समय प्रकार शुरू हुए थे, जब नया नया टाइगर रिजर्व बना था। तत्कालीन प्रभागीय वनाधिकारी कैलाश प्रकाश के कार्यकाल में महोफ रेंज के जंगल में स्थित सांभर ताल (पुराना नाम झंड ताल) के आसपास के इलाके को चिह्नित कर गैंडा परियोजना के लिए प्रस्ताव तैयार करके शासन को भेजा गया था। वन्यजीवों पर अध्ययन करते रहने वाले सेव इंवायरमेंट सोसायटी के सचिव, पर्यावरण चिंतक टीएच खान गैंडा परियोजना के लिए काफी समय से प्रयासरत रहे हैं।

    खान के अनुसार उनके दादा अनवार हसन खां अपने जमाने के अच्छे शिकारी हुआ करते थे। वह ब्रिटिश हुकूमत के दौरान नगर पालिका में चुंगी अधीक्षक हुआ करते थे। बचपन में उन्हीं से जानकारी मिली थी कि अब से करीब 70-75 साल पहले तक यहां के जंगल में विशेषकर महोफ और बराही रेंज में नेपाल के जंगल से निकलकर गैंडे आ जाते थे। ये गैंडे कई- कई महीनों तक यहां प्रवास करते थे। वाइल्ड लाइफ फोटोग्राफर बिलाल मियां के अनुसार मार्च 2019 में नेपाल की शुक्लाफांटा सेक्चुरी के जंगल से शारदा नदी पार करके आए गैंडा को बराही रेंज के लग्गा भग्गा क्षेत्र में देखा गया था। टाइगर रिजर्व के प्रभागीय वनाधिकारी नवीन खंडेलवाल के अनुसार बराही रेंज का लग्गा भग्गा वन क्षेत्र नेपाल के शुक्लाफांटा सेंक्चुरी से जुड़ा है। वहां से पहले गैंडा भी इस ओर आता रहा है। वहां गैंडे लंबे समय तक प्रवास कर सकें, इसके लिए उनके अनुकूल वातावरण तैयार किया जा रहा है। जिससे नेपाल के गैंडे आकर्षित हो सकें।

    सेव इन्‍वायरमेंट सोसायटी के सचिव व पर्यावरण चिंतक टीएच खाने कहा कि गैंडा परियोजना से कई तरह के लाभ हैं। एक तो यहां जंगल में पर्यटकों को अगर बाघ के दीदार नहीं होते तो वे आसानी से गैंडा देख सकेंगे। दूसरे गैंडा की लुप्त होती प्रजाति बढ़ेगी। इसके लिए वह अभी हाल में ही वन मंत्री से मिलकर पत्र दे चुके हैं। इससे पहले तत्कालीन प्रभागीय वनाधिकारी कैलाश प्रकाश के कार्यकाल में गैंडा परियोजना के लिए प्रस्ताव तैयार कर फाइल शासन को भेजी गई थी। उसमें अपेक्षित पैरवी नहीं हो सकी। अब वह फिर इसके लिए नए सिरे से प्रयास कर रहे हैं।

    वाइल्‍ड लाइफ फोटोग्राफर बिलाल मियां ने बताया कि टाइगर रिजर्व के लग्गा भग्गा क्षेत्र में पहले नेपाली गैंडे आते रहे हैं। हाथियों के झुंड तो अब भी आ रहे। वहां पर अतिक्रमण हटाए जाने की आवश्यकता है। वह पूरा इलाका एक ओर नेपाल की शुक्ला फांटा सेंक्चुरी से जुड़ा है तो दूसरी ओर दुधवा नेशनल पार्क की किशनपुर सेंक्चुरी है। ऐसे में सभी तरह के वन्यजीवों का एक जंगल से दूसरे जंगल में स्वच्छंद विचरण हो सके, इसके लिए वहां मानवीय गतिविधियां खत्म होनी चाहिए।