मिली जो देखने को हमको शक्ल गांधी की.
जागरण संवाददाता, बरेली : असहयोग आंदोलन में सहयोग की अपील करने बापू दो बार बरेली आए थे। यहां उन्हें देखने और सुनने आस पास के जिलों से बड़ी संख्या में लोग उमड़े और उन्होंने भी आजादी के दीवानों देशभक्ति का पाठ पढ़ाया।
महात्मा गांधी का बरेली से भी नाता रहा है और इस धरती पर उनके कदम दो बार पड़े। बरेली के इतिहासकारों के अनुसार असहयोग आंदोलन में लोगों से भागीदारी की अपील करने बापू पहली बार 17 अक्टूबर 1920 को बरेली आए थे। अली बंधु के नाम से प्रसिद्ध शौकत अली और मोहम्मद अली भी उनके साथ थे। यहां नगर पालिका की ओर से मोदी पार्क में उनका अभिनंदन किया गया। जिसमें आस पास के जिलों के साथ ही गांवों के भी तमाम लोग उनके दर्शन के लिए उमड़े। यहां उनके सम्मान में एक मान पत्र भी सौंपा गया, जिसके जवाब में उन्होंने भी लंबा व्याख्यान दिया।
एक महीने बाद ही बरेली की धरती को गांधी ने फिर पवित्र किया। कांग्रेस समिति के निमंत्रण पर वे नवंबर 1920 में पहुंचे। उनके साथ अली बंधु और आर्य समाजी स्वामी सत्यदेव परिव्राजक भी थे। तत्कालीन कांग्रेस नेता पं.द्वारिका प्रसाद के घर यह लोग रुके। अगले दिन कुतुबखाना के सामने उन्होंने जनसभा की। यहां उर्दू शायर नंदलाल गुप्त ने बापू के बरेली आगमन पर एक कलाम पढ़ा। जिसे काफी पसंद किया गया।
कलाम था, खुशी नसीब कि किस्मत खुली बरेली की
मिली जो देखने हमको ये शक्ल गांधी की।
इलाही कोशिशें पूरी हों तू मदद करना
बिरादराने अली व सत्यदेव स्वामी की।
नंदलाल गुप्त का यह कलाम बाद में काफी लोकप्रिय हुआ और बरेली में बच्चे बच्चे की जुबान पर चढ़ा। गांधी जी की अपील पर बरेली में भी लोगों ने ब्रितानिया सरकार के खिलाफ असहयोग आंदोलन किया।
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-महात्मा गांधी बरेली में दो बार आए यहां वे कांग्रेसी नेता और स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़े पंडित द्वारिका प्रसाद के घर ठहरते थे। पंडित जी के घर उस समय देश भक्तों का जमावड़ा लगा रहता था।
-सुधीर विद्यार्थी, इतिहासकार
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बरेली में आने के साथ ही बापू एक बार बदायूं और एक बार पीलीभीत भी गए थे। बदायूं में पहली मार्च 1921 में उनकी सभा हुई थी। यहां भी गांधी के असहयोग आंदोलन में काफी लोग शामिल हुए थे।
-डॉ.जोगा सिंह होठी, इतिहासकार
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हमारे यहां उन दिनों देशभक्तों का आना जाना लगा लगा रहता था। नेहरू जी तो जब भी यहां आए हमारे यहां भी ठहरे। उनके लिए एक आलमारी और उनका बिस्तर सुरक्षित था। गांधी जी के भी चरण हमारे यहां पड़े थे।
-जसवंत प्रसाद बब्बू, पौत्र पं.द्वारिका प्रसाद
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