Pilibhit Tiger Reserve: जानिए कब बना था तराई के जिले पीलीभीत में बाघों का बसेरा, आज पर्यटकों की है पहली पसंद
टाइगर रिजर्व बनने के बाद बाघों की सुरक्षा एवं संरक्षण के लिए राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण की गाइडलाइन के अनुसार काम हुए। नतीजा यह रहा कि वर्ष 2018 ...और पढ़ें

पीलीभीत, जेएनएन। नौ जून 2014 को जिले का 73 हजार 24.98 हेक्टेयर जंगल टाइगर रिजर्व घोषित किया गया था। पांचों रेंज में बाघों की वंश वृद्धि हो रही है। वर्ष 2018 की गणना में इनकी संख्या 65 से अधिक थी। अब नई गणना के आंकड़े आने का इंतजार है। जंगल में पर्याप्त पानी, घास, शिकार होने से बाघ ही नहीं, चीतल, भालू, बारहसिंघा, हिरन की संख्या भी बढ़ती जा रही। जंगल किनारे के गांवों में गन्ने के बजाय औषधीय कृषि को बढ़ावा देने से मानव-बाघ संघर्ष की घटनाएं कुछ कम हुईं। गन्ने के खेत में छिपकर बाघ अधिक हमला करते रहे हैं। इसी कारण जिला प्रशासन ने किसानों को जागरूक करके जंगल किनारे खेतों में सगंधी फसलों को करने के लिए प्रेरित किया है।
विगत 28 फरवरी वर्ष 2014 को पीलीभीत के जंगल को वन्य जीव विहार का दर्जा मिला, जबकि इसी वर्ष 9 जून को पीलीभीत टाइगर रिजर्व की स्थापना कर दी गई। वन्यजीवों के लिए यहां का वातावरण मुफीद साबित हो रहा है। इसीलिए टाइगर रिजर्व में संसाधनों की कमी के बावजूद 2014-2018 के बीच बाघों की संख्या दोगुनी से ज्यादा हुई। इसे लेकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अवार्ड भी मिला। चीतल, सांभर, भालू, बारहसिंघा का कुनबा भी बढ़ रहा है। जनपद का जंगल वैसे तो शिकार के मामले में ब्रिटिश काल से ही सुर्खियों में रहा है। पीलीभीत वन प्रभाग वर्ष 1805 में स्थापित हुआ। इसे टाइगर रिजर्व बनाने की प्रक्रिया वर्ष 2008 में शुरू की गई। वर्ष 2014 में टाइगर रिजर्व घोषित किया गया। तब यहां बाघों की संख्या मात्र 25 थी।
टाइगर रिजर्व बनने के बाद बाघों की सुरक्षा एवं संरक्षण के लिए राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण की गाइडलाइन के अनुसार काम हुए। नतीजा यह रहा कि वर्ष 2018 में बाघों की संख्या बढ़कर 65 हो गई। इस उपलब्धि के लिए पूरे विश्व में पीलीभीत टाइगर रिजर्व की चर्चा हुई। संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) में पारिस्थितिक तंत्र और जैव विविधता के प्रमुख मिस मिंडोरी पैक्सटन की ओर से नवंबर 2020 को पीलीभीत टाइगर रिजर्व को अंतरराष्ट्रीय स्तर का टाइगर एक्स टू अवार्ड दिया गया। पिछले दिनों एक बार फिर बाघों की गणना हुई है। इसके परिणाम इस वर्ष के अंत तक आएंगे। उम्मीद है कि बाघों की संख्या और बढ़ेगी। बाघों की बढ़ती संख्या के चलते पर्यटक यहां खासकर बाघ को करीब से देखने की आस लिए पहुंचते हैं। अब उनकी यह आस पूरी भी हो रही है। वर्तमान पर्यटन सत्र की बात करें तो इस बार अप्रैल और मई के महीने में जंगल की सैर करने वाले तमाम पर्यटकों को बाघ के दीदार हुए हैं। टाइगर रिजर्व के जंगल की खूबसूरती, जंगल के बीच नदियों के जाल व शारदा डैम के पास बनाया गया चूका बीच पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र रहता है।
विलुप्त प्राय प्रजाति चैसिंगा भी बढ़ा रहे जंगल की खूबसूरती: तराई के इस जंगल में चैसिंगा की मौजूदगी है। वैसे चैसिंगा खासकर राजस्थान जैसे सूखे और खुले क्षेत्रों में पाया जाता है। वर्ष 2010 में यहां सबसे पहले चैसिंगा देखा गया। उसके बाद कई बार इसकी मौजूदगी बाघों की गणना के लिए लगाए गए कैमरों व जंगल भ्रमण के दौरान वनकर्मियों को देखने को मिली। जंगल में चैसिंगा की संख्या 14 है।
हिरन की पांच प्रजातियां हैं मौजूद: जंगल में हिरन प्रजाति की संख्या भी बेहतर है। हिरन की पांच प्रजाति यहां पाई जाती हैं। इनमें सांभर, बारहसिंगा, चीतल, पाढ़ा और कांकड़ शामिल हैं। यह पर्यटकों को खूब लुभाते हैं।
तृणभोजी वन्यजीवों में हो रहा इजाफा: बाघ, तेंदुए के साथ-साथ जंगल में तृणभोजी वन्यजीवों की संख्या में भी खासा इजाफा हुआ है। भालू व हिरन प्रजाति के वन्यजीवों की संख्या में लगातार वृद्धि होती जा रही है। साल 2021 तक एनटीसीए द्वारा वन्यजीवों की गणना में भी यह तथ्य उभर कर सामने आए हैं। डिप्टी डायरेक्टर नवीन खंडेलवाल जंगल में तृणभोजी वन्यजीवों के कुनबे के लगातार बढ़ने की बात स्वीकार करते हैं। उनका कहना है कि कई वर्ष से गणना नहीं हुई है। इसलिए ताजा आंकड़े नहीं हैं।
ऊदबिलाव बताते हैं कितना स्वच्छ जल: पीटीआर क्षेत्र में पांच रेंज हैं और पांचों रेंज में ऊदबिलाव पाए जाते हैं। ऊदबिलाव की खास बात यह है कि यह स्वच्छ जल ही पीते हैं और इनकी मौजूदगी इस क्षेत्र में होना जाहिर करता है कि पीटीआर क्षेत्र स्वच्छ जल से भरपूर है।
जंगल में तृणभोजी वन्यजीव
- चीतल - 5776
- सांभर - 255
- जंगली सुअर - 5800
- भालू- 113
- बारहसिंघा - 945

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