Jagran Column : शहरनामा : सियासी दायरे संग टूटी शारीरिक दूरी Bareilly News
प्रोफेसर वसीम बरेलवी यह कहने वाले अकेले नहीं कि जिंदगी में लंबी फुर्सत का पहला मौका है। उनकी इस जमात में राजनेता उद्यमी सेलिब्रिटी और नौकरशाह भी शामिल ...और पढ़ें

बरेली, वसीम अख्तर । प्रोफेसर वसीम बरेलवी यह कहने वाले अकेले नहीं कि जिंदगी में लंबी फुर्सत का पहला मौका है। उनकी इस जमात में राजनेता, उद्यमी, सेलिब्रिटी और नौकरशाह भी शामिल हैं। बड़ा कहलाने वाली ये शख्सियत घरों पर रहकर भी फिक्रमंद हैं। इतने तो कभी सफर में हादसों के डर से भी नहीं रहे। उनकी यह फिक्र बेसबब भी नहीं है। जिस कोरोना ने पूरी दुनिया को खौफजदा कर रखा है, उसे हमारे शहरियों का एक बड़ा तबका हल्केपन में ले रहा है। घरों में रुकने के बजाय बाहर है। एहतियात की बंदिशें दरकिनार कर एक-दूसरे से बगलगीर। नहीं समझ रहा कि इस दौर में फासलों की अहमियत क्या है। टोके जाने के बाद भी अहसास नहीं कि अगर एक संक्रमित शख्स भीड़ में घुस गया तो बड़े नुकसान का अध्याय लिख जाएगा। यह वह बड़ी वजह है, जो मुद्दत बाद मिले तन्हाई के लम्हों को खौफ में तब्दील कर रही है।
साहब बीवी रहने दें, बच्चों को मंगवा दें
कहीं बीवियां तो ज्यादातर शौहरों के बारे में कहा जाता है कि वे आहत रहते हैं। लॉकडाउन के चलते मायके गई बीवियां फंस गईं। कुछ तो शहर में होने की वजह से जैसे-तैसे निकल आईं। बहुत सी ऐसी हैं, जो दूसरे जिले में गई हुई थीं। उनका आना मुश्किल हो गया है। शौहर परेशान हैं। किसलिए ज्यादा परेशान हैं, यह बात कलेक्ट्रेट के कंट्रोल रूम में पहुंची एक कॉल से साफ हुई। पीलीभीत बाईपास स्थित कॉलोनी में रहने वाले शख्स ने बताया कि बीवी (पत्नी) उत्तराखंड के हल्द्वानी अपने मायके गई थीं। लॉकडाउन से वापस नहीं आ पा रही हैं। लाने की डीएम साहब से इजाजत दिला दें। कंट्रोल रूम से यह कहते हुए मना कर दिया गया कि सीमाएं सील हैं। तब फोन करने वाले शौहर ने बेसाख्ता कहा, पत्नी को रहने दें, बच्चे ही मंगवा दें। यह सुनकर फोन उठाने वाले अफसर हंस पड़े और फोन रख दिया।
बोसे की वो रौनकें भी गईं
लॉकडाउन में मजहबी गलियारे भी सन्नाटे से रूबरू हैं। धर्मगुरू अपने कार्यक्रम रद करके घरों में हैं। इन मुश्किल दिनों से पहले तक तमाम बड़ी शख्सियत के चाहने वालों से मिलने का वक्त मुकर्रर था। तब मुलाकात के लिए भीड़ लग जाया करती थी। बारी-बारी भीड़ से एक-एक शख्स उठता और बोसा (हाथ चूमना) ले लेता था। बोसे की यह दिलकश रवायत पहचान सी बन गई है। अब जब से कोरोना वायरस फैला, हजरत भी सचेत हो गए। हालांकि लॉकडाउन में मुरीद घरों से नहीं निकल पा रहे लेकिन आसपास में रहने वाले अकीदत के दर हाजिरी लगाने पहुंच ही जाते हैं। हजरत को पता है, लाख कहने पर भी बोसा लिए बिना नहीं मानेंगे, इसलिए मिलने से गुरेज बेहतर है। इस बात का सुबूत जनता कफ्यरू में मिला। एक मजहबी गलियारे में हजरत ने हमसे मुलाकात तो की लेकिन जैसे ही लगा लोग आ रहे हैं, उठकर चले गए।
यह तन्हाई और वो खौफ का आलम
देश कोरोना से जंग लड़ रहा है। उसके लिए अपना जिला भी लॉक है। छह दिन गुजर जाने पर गरीबों को खाने की दिक्कत हो रही है। बात गरीबों की है, लिहाजा सियासत का काम शुरू हो चुका है। बरेली के पूर्व सांसद प्रवीण सिंह ऐरन खाना बांटने के लिए एक कार्यक्रम आयोजित किया, जिसमें सियासी दायरे के साथ प्रधानमंत्री के एक-दूसरे से शारीरिक दूरी का नियम भी टूट गया। भीड़ आपस में सटकर खड़ी दिखाई दी। कार्यक्रम में केंद्रीय मंत्री संतोष गंगवार के साथ महापौर डॉ. उमेश गौतम और शहर विधायक भी पहुंचे थे। इसी के साथ अटकलें शुरू हो गईं। इसलिए क्योंकि यह पहला मौका था, जब संतोष गंगवार अपने राजनीतिक प्रतिद्वंदी माने जाने वाले ऐरन की तरफ से आयोजित किसी कार्यक्रम में शिरकत के लिए पहुंचे। चर्चा होने लगी कि पूर्व सांसद की पत्नी सुप्रिया ऐरन के कैंट विधानसभा से चुनाव लड़ने की बिसात सज रही है।

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