Corona Virus : अंतरराष्ट्रीय शायर वसीम बरेलवी ने नए कलाम से दी लॉकडाउन के पालन की नसीहत
जिस तरह कोरोना वायरस दुनियाभर में मौत बांट रहा है उसके खतरे को देख प्रोफेसर वसीम बरेलवी से रहा नहीं गया। छह पंक्तियों में लोगों को जिंदगी का फलसफा समझा दिया।
बरेली, जेएनएन। उन्हें खुद याद नहीं कि अब से पहले उनकी कलम किसी बीमारी से आगाह करने के लिए चली है। लेकिन जिस तरह कोरोना वायरस दुनियाभर में मौत बांट रहा है, उसके खतरे को देख प्रोफेसर वसीम बरेलवी से रहा नहीं गया। छह पंक्तियों में लोगों को जिंदगी का फलसफा समझा दिया। यह भी बता दिया कि एहतियात की सीमा रेखा लांघी तो मौत दरवाजे पर खड़ी है। बोले-
जहां बुलाते हों खतरे वहां नहीं जाना,
घरों को छोड़कर हरगिज कहीं नहीं जाना।
बड़े हैं खतरे जरूरी नहीं सफर में रहो, जो सबकी खैरियत चाहो तो अपने घर में रहो।
हजार चाहोगे फिर जिंदगी न बोलेगी
घरों से निकले तो दरवाजा मौत खोलेगी।
सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा पुराना शेर
वैसे तो आपदा की इस घड़ी में सोशल मीडिया पर उनका पुराना शेर वायरल हो रहा है- वह मेरे घर नहीं आता, मैं उसके घर नहीं जाता, लेकिन इन एहतियातों से ताल्लुक मर नहीं जाता। वसीम बरेलवी का ताजा कलाम इससे कहीं ज्यादा सटीक है, जिसमें बाहर घूमने से बाज नहीं आने वालों की फिक्र, गुस्सा और नसीहत सबकुछ है।
बोले, इतना बड़ा चैलेंज कभी नहीं आया
वह कलाम जागरण से साझा करते हुए कहते भी हैं कि अब तो उम्र की इस आखिरी मंजिल पर हूं, इतना बड़ा चैलेंज कभी नहीं आया। यह सभी के सामने अपने लिए है। मिसाल देकर समझाते हैं कि अगर कोई पत्थर फेंक दे, उसकी जद में आने वाले खुद को बचाते हैं। कोरोना तो ऐसा पत्थर है, जो दिखाई ही नहीं दे रहा, किधर से आएगा। इससे बचने का एक ही रास्ता है, घर। इसलिए मेरी तो इन हालात में पहली और आखिरी गुजारिश यही है कि घर में रहिये, ताकि घर रहे।
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