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    Bareilly News: सड़क किनारे दो हजार से अधिक झुग्गी-झोपड़ी वालों का अवैध कब्जा, प्रशासन बेखबर

    By Jagran NewsEdited By: Prabhapunj Mishra
    Updated: Wed, 14 Dec 2022 03:01 PM (IST)

    Bareilly News कुदेशिया फाटक पुल सर्विस लेन पर सरकारी जमीन पर झुग्गी-झोपड़ी वालों के कब्जे क्यों हो गए इस सवाल का जवाब तलाशने के लिए जागरण की टीम अवैध कब्जे वाली जगह पर पहुंची। प्रशासन ने कहा- कुदेशिया पुल के आसपास कब्जों की जानकारी उन्हें नहीं है।

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    बरेली में कुदेशिया फाटक पुल सर्विस लेन पर झुग्गी-झोपड़ी वालों का कब्जा l

    बरेली, जागरण टीम: 2017 में बने कुदेशिया पुल की सर्विस लेन के दोनों ओर लोक निर्माण विभाग की जमीन है। इस पर कब्जा न हो, इसकी जिम्मेदारी अवर अभियंता पंकज कुमार और सहायक अभियंता स्नेह लता की है। सरकारी जमीन पर कब्जे क्यों हो गए, इस सवाल का जवाब तलाशने के लिए अवर अभियंता से बात करनी चाही मगर, फोन से संपर्क नहीं हो सका। सहायक अभियंता स्नेह लता ने जवाब दिया कि कुदेशिया पुल के आसपास कब्जों की जानकारी उन्हें नहीं है। यदि सड़क घेरी गई है तो कब्जे हटवाए जाएंगे।और कब्जा वाले सभी स्थानों की जांच कराकर कार्रवाई कराएंगे। हम यानी दैनिक जागरण के पत्रकार अभिषेक पांडेय, नीलेश प्रताप सिंह और फोटो जर्नलिस्ट अजय शर्मा दो दिन के प्रयास में कब्जे के पीछे की कहानी समझने के लिए वह पहुंचे। इसी अवैध कब्जे के बाजार में ठिकाना बनाकर पुष्ट करना चाहते थे कि जिम्मेदारों की अनदेखी अथवा उदासीनता से किस तरह स्मार्ट सिटी को बदरंग किया जा रहा है।

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    ठेकेदार और पत्रकारों के बीच संवाद

    ठेकेदार बोलता है कि ‘’यह जमीन कहने को सरकारी है। हम नहीं चाहेंगे तो एक इंच जगह पर पैर नहीं रख सकोगे। तुम्हें झोपड़ी डालनी है? चलो, रहम कर रहा हूं, पांच हजार रुपये का इंतजाम कर लो।’’ कुर्सी पर बैठे ‘ठेकेदार’ की हनक आभास करा रही थी कि उसकी सहमति के बिना कुदेशिया पुल के पास पत्ता भी नहीं हिलता। वो कड़क मिजाज के साथ कुर्सी पर था और हम उसके पैरों के पास बैठकर आसपास की 50 झोपड़ियां, 25 ठेले-फड़ देख रहे थे, जो कि अब कब्जा कर स्थायी रूप ले चुके हैं।

    सच्चाई का खुद पता लगाने पहुंचे पत्रकार

    सौदा तय होने के एक घंटे बाद तक ‘ठेकेदार’ समझाता रहा कि एक साथ सारा सामान लेकर मत आना। पहले कुछ घंटे पुल के पास बैठना, फिर धीरे-धीरे झोपड़ी लगाना शुरू करना। कब्जा करने से पहले उसने हिम्मत दी, कोई रोकने आया तो मैं देख लूंगा। ठेकेदार ने बोला कि- कुछ दिन पहले एक परिवार मेरे पड़ोस में झोपड़ी डालने के बदले 20 हजार रुपये देता रहा मगर, नहीं पड़ने दी। तुम शरीफ लगे रहे हो...जाओ, शाम को आकर झोपड़ी का काम शुरू कर देना। पांच हजार रुपये में सौदे की हामी भरने वाले हम यानी दैनिक जागरण के पत्रकार दो दिन के प्रयास में कब्जे के पीछे की कहानी को समझ सके।

    ‘ठेकेदार’ केवल मोहरा, सरगना कोई और

    पत्रकारों ने बताया कि ‘ठेकेदार’ मोहरा था और चाचा इसका सरगना। पत्रकारों द्वारा दो दिन लगातार प्रयास के बाद भी वह सामने नहीं आया मगर, ठेकेदार उसकी सहमति के बिना एक शब्द तक नहीं बोल रहा था। पहले दिन पुल के पास झोपड़ी डालने का प्रयास किया तो उसने हड़काया, भाग जाने को कहा। अगली शाम को उसने हामी भरी, यह कहकर कि, चाचा से पूछे बिना मैं कोई काम नहीं करता।