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काला पीलिया.. जिसने जान लिया वो जी लिया

देश की करीब दस फीसद आबादी को प्रभावित करने वाली बीमारी हेपेटाइटिस बी से हर साल करीब एक लाख लोग मौत की आगोश में समा रहे हैं।

By JagranEdited By: Published: Sat, 19 May 2018 08:16 AM (IST)Updated: Sat, 19 May 2018 08:16 AM (IST)
काला पीलिया.. जिसने जान लिया वो जी लिया
काला पीलिया.. जिसने जान लिया वो जी लिया

जागरण संवाददाता, बरेली : देश की करीब दस फीसद आबादी को प्रभावित करने वाली बीमारी हेपेटाइटिस बी से हर साल करीब एक लाख लोग मौत की आगोश में समा रहे हैं। हर साल तेजी से शहरों में बीमारी (काला पीलिया) की गिरफ्त में आने वालों की संख्या बढ़ती जा रही है। चौकाने वाली बात यह है कि इस बीमारी के कीटाणु ने स्वस्थ लोगों को भी निशाना बनाना शुरू कर लिया है। राष्ट्रीय कार्यक्रम में शामिल टीकाकरण भी रोग को फैलने से रोक नहीं पा रहा। बावजूद इन सबके समय पर जानकारी और इलाज लोगों को बीमारी से निजात दिलाने में कामयाब है। यानी काला पीलिया को जिसने जान लिया वो जी लिया।

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विशेषज्ञों की माने तो जिले में गरीबी का स्तर बहुत कम नहीं हुआ है। गरीबी के कारण कुपोषण की अब भी लोगों में बड़ी समस्या है। कुपोषण के कारण लोगों में प्रतिरोधक क्षमता की कमी हो रही है। शरीर में प्रतिरोधक क्षमता कम होने के कारण काला पीलिया का वायरस लोगों को जकड़ रहा है। दूसरा नियमित टीकाकरण के नाम पर खानापूर्ति भी इस बीमारी को बढ़ाने में सहायक बन रही है। राष्ट्रीय कार्यक्रम में टीकाकरण होने के बावजूद बच्चों को नियमित तौर पर टीके नहीं लग पा रहे हैं। वही, अशिक्षा के कारण भी बच्चों को टीके नहीं लग पाना इसका कारण बन रहा है। क्या है हेपेटाइटिस बी

हेपेटाइटिस बी को काला पीलिया भी कहा जाता है। यह वायरस के कारण होने वाली एक संक्रमित बीमारी है जो मनुष्य के लीवर को संक्रमित करती है। इसका वायरस शरीर में हल्के से पनपता है और लंबे समय तक रहता है। इस वायरस के कारण लिवर सिरोसिस (यकृत सिकुड़ना) और लिवर कैंसर का भी खतरा रहता है। इस तरह फैलता है वायरस

हेपेटाइटिस बी दूषित पानी पीने, गंदगी, संक्रमित रक्त चढ़ाने, एक ही सि¨रज को बार-बार मरीजों में इस्तेमाल करने, संक्रमित डिप्स चढ़ाने और आप्रकृतिक सेक्स से भी फैलता है। बीमारी के लक्षण

मरीज का स्वास्थ्य गिरना शुरू हो जाता है। उसे भूख भी कम लगने लगती है। मरीज का स्वभाव चिड़चिड़ा हो जाता है। वजन भी कम हो जाता है। इसके साथ ही व्यक्ति को पीलिया हो जाता है। बचाव व जांच के तरीके

दूषित पानी का इस्तेमाल नहीं करें, गंदगी से बचे, सही रक्त चढ़ाए, और सी¨रज नई इस्तेमाल करें। इसके साथ ही इलाज के लिए मरीज में डीएनए का स्तर चेक किया जाता है और लिवर बायोप्सी से भी इसकी जांच की जा सकती है। उपचार से कीटाणु होते सुप्त

शहर के वरिष्ठ फिजिशियन डा. सुदीप सरन ने बताया कि प्रारंभिक चरण में काला पीलिया गंभीर नहीं है। समय पर और पूरा इलाज करने से इसका वायरस सुप्त अवस्था में चला जाता है। डीएनए लेवल बढ़ने और सिरोसिस होने पर इलाज हो सकता है। इसके लिए इंजेक्शन थैरेपी है, जिसमें इंटरफेरॉन का इंजेक्शन एक से डेढ़ साल रोजाना लगाना होता है। यह थोड़ा महंगा है। दूसरी विधि एंटी वायरल थैरेपी है। इसमें टीनोफोबिल दवा रोजाना एक गोली तीन से पांच साल तक खानी होती है। दो फीसद स्वस्थ लोगों में भी वायरस

आइएमए ब्लड बैंक की प्रभारी डा. अंजू उप्पल ने बताया कि किसी भी डोनर का ब्लड लेने के बाद उसकी जांच की जाती है। करीब दो फीसद डोनर के खून की जांच में हेपेटाइटिस बी का वायरस पाया जाता है। उसके खून को हटा देते हैं और संबंधित व्यक्ति को इलाज कराने को बता दिया जाता है। पिछले दस सालों में बीमारी बढ़ी है। स्वस्थ लोगों में भी वायरस मिल रहा है। बच्चों का हो रहा नियमित टीकाकरण

सीएमओ डा. विनीत कुमार शुक्ला ने बताया कि हेपेटाइटिस बी का टीका उनके नियमित टीकाकरण कार्यक्रम में शामिल है। पहला टीका बच्चे को जन्म के 24 घंटे में लगा दिया जाता है। फिर डेढ़, ढाई और साढ़े तीन माह में बच्चों को डोज लगाई जाती है। जिले में जहां भी टीकाकरण बचा है, वहां अभियान चलाकर बच्चों को टीके लगाए जा रहे हैं।


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