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    मुहल्लानामा : कभी यहां से होकर बहती थी गंगा इसलिए नाम पड़ गया गंगापुर Bareilly News

    By Abhishek PandeyEdited By:
    Updated: Thu, 05 Sep 2019 11:16 AM (IST)

    वैसे भी जिले में गंगा नहीं रामगंगा नदी है जिसका संगम शाहजहांपुर के जलालाबाद से आगे जाकर फरूखाबाद के पास गंगा में होता है।

    मुहल्लानामा : कभी यहां से होकर बहती थी गंगा इसलिए नाम पड़ गया गंगापुर Bareilly News

    बरेली, जेएनएन : शहर के पुराने मुहल्लों में से एक है गंगापुर। बुजुर्गो की मानें तो आस्था का प्रतीक पतित पावनी नदी पुराने जमाने में यहीं से होकर बहती थी। इतिहासकारों का तर्क इससे उलट है। उनका कहना है कि कमोबेश हर जिले में एक मुहल्ला गंगापुर के नाम से है।

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    वैसे भी जिले में गंगा नहीं, रामगंगा नदी है, जिसका संगम शाहजहांपुर के जलालाबाद से आगे जाकर फरूखाबाद के पास गंगा में होता है। तहसील नवाबगंज के सेंथल कस्बे में भी गंगापुर नाम का मुहल्ला आबाद है।

    एक हजार साल के इतिहास में गंगा नदी के शहर के इतने पास से बहने का जिक्र किताबों में नहीं मिलता। यह खोज का विषय है कि गंगापुर का नाम गंगा नदी पर पड़ा या कोई और वजह रही, यह खोज का विषय है। वैसे यह जगह अब किराना और तेल के थोक कारोबार के तौर पर पहचानी जाती है।

    डेलापीर मंडी बनने से खत्म हुआ एकाधिकार

    क्षेत्र के प्रमुख व्यापारियों ने बताया कि सन 1970-71 तक शहर के थोक बाजार पर गंगापुर का एकाधिकार रहा। किराना, दालों से लेकर सीमेंट तक लेने लोग यहीं पर आते थे। उस समय में सीमेंट परमिट से मिलता था, लेकिन 1970-71 में आदर्श डेलापीर मंडी बनने के बाद से गंगापुर का थोक बाजार पर एकाधिकार खत्म हुआ। गल्ले, सब्जी आदि की आढ़तें मंडी में शिफ्ट हुई। फिर दाल और किराने का थोक बाजार भी श्यामगंज में शिफ्ट हो गया है, लेकिन अब भी यहां पर काफी दुकानदार और कुछ आढ़तें बाकी हैं।

    गंगापुर का पुराना प्रचलित नाम है अकब श्यामगंज

    मुहल्ले में रहने वाले बताते हैं कि गंगापुर का पुराना प्रचतिल नाम भी अकब श्यामगंज (श्यामगंज के पीछे) है। पुराने लोग इसको इसी नाम से पुकारते हैं।

    गंगापुर से ही शुरू हुई गणोश रथ यात्र

    गणोश चतुर्थी पर निकलने वाली गणोश रथयात्र की शुरुआत भी गंगापुर स्थित मोर कोठी से हुई। शुरुआती वर्षो में यह शोभायात्र का पूजन पाठ यहीं मोर कोठी में होता था। बाद में यह सिविल लाइंस हनुमान मंदिर से निकलना शुरू हुई। यहां से एक झंडी यात्र भी निकलती है, जो कि नकटिया तक जाती है।

    इस मुहल्ले में रहने वाले बुजुर्गो का यही विश्वास लेकिन नदी को लेकर इतिहासकारों के अपने तर्क

    मोर कोठी बनी क्षेत्र की पहचान

    गंगापुर में बनी मोर कोठी क्षेत्र की पहचान बन चुकी है। यह कोठी राजस्थान के खंडेला से आए खंडेलवाल परिवार के लाला रोशन लाल ने बनवाई। उनके नाती सुशील खंडेलवाल ने बताया कि दादा जी ने यह कोठी दादी मोरोदेवी की याद में बनवाई, जो क्षेत्र की पहचान है।

    पुराना कुआं और नाग पंचमी ग्राउंड भी हैं ऐतिहासिक

    गंगापुर में इसके अतिरिक्त एक पुराना कुआं, नाग पंचमी मेला ग्राउंड और माधोगिरि शिव मंदिर भी काफी प्राचीन है। नाग पंचमी मेला ग्राउंड में नाग पंचमी के दिन शोभायात्र निकलती है और मेला भी लगता है।

    शहर के व्यवसाय की धुरी रहा  

    सुशील खंडेलवाल ने बताया कि पुराने समय से ही गंगापुर शहर के व्यवसाय की धुरी रहा है। यहां आढ़तों पर रॉब और गुड़ कलसियों में भरकर आता था। उप्र उद्योग व्यापार मंडल के संस्थापक सदस्यों में पिता प्रहलाद राय खंडेलवाल भी रहे। बसपा से वर्ष 2002 में उन्होंने शहर विधानसभा से चुनाव भी लड़ा।

    सच साबित हुई अपने बारे में की गई मंदिर के पुजारी की भविष्यवाणी

    माधोगिरी शिव मंदिर के अध्यक्ष हरिप्रसाद ने कहा कि माधोगिरि शिव मंदिर की स्थापना माधोगिरि बाबा ने कराई। मंदिर निर्माण के गुंबद पर सांप की आकृति बन रही थी। उसी दिन बाबा ने भविष्यवाणी कर दी थी कि यही एक दिन सांप मुङो डसेगा। उनकी भविष्यवाणी सच साबित हुई। उनकी मृत्यु सांप के काटने से हुई। मंदिर के गेट पर बाबा की मूर्ति बनी है। पूर्वज बताते हैं कि पुराने समय में गंगा यहीं से होकर बहती थी, इसलिए इसका नाम गंगापुर पड़ा।