अब दस्यु नहीं जेलर वाली कही जाएगी कटरी
बरेली (जेएनएन) : कटरी .. दशक पूर्व तक यह नाम दस्युओं की शरण स्थली का पर्याय था। अब इसमें बदलाव आया है।
बरेली (जेएनएन) : कटरी .. दशक पूर्व तक यह नाम दस्युओं की शरण स्थली का पर्याय था। गंगा, रामगंगा के किनारे खड़ी पतेल और पास के खेत कटरी ¨कग कल्लू, नज्जू, दस्यु सुंदरी रानी ठाकुर तथा नरेशा धीमर सरीखे पनाहगार थे। मुठभेड़ में दारोगा राजेश पाठक समेत दर्जनों पुलिस कर्मियों की मौत के बाद पुलिस के जवान भी क्षेत्र में जाने से कतराते थे। कल्लू की मौत के बाद एक-एक कर कई बदमाश मार दिए गए। दर्जनों जेल में है। इसके बाद कटरी में भूमि सुधार कार्यक्रम चला। कटरी का कोना सोना उगलने लगा। मेधा की बेल भी अनकूल वातावरण मिला। दशक भीतर ही इसका परिणाम सामने आ गया है। जिस कटरी को लोग बदमाशों, अपराधियों की शरण स्थली के रूप में जाना जाता था, अब उसे बिगड़े हुए लोगों के सुधार के लिए जाना जाएगा। दरअसल दस्यु सरगना कल्लू के गांव के पड़ोसी गरीब किसान के लाल ने उप्र. लोक सेवा आयोग की परीक्षा में 37वीं रैंक प्राप्त कर डिप्टी जेलर का ओहदा पा लिया है।
बरेली मंडल के शाहजहांपुर की कलान तहसील व थाना परौर क्षेत्र के ग्राम नया गांव बग्गरा निवासी स्व. मुंशीलाल के बेटे खुशीराम ने मेधा व मेहनत से कटरी को नइ पहचान दिलाई है। कलान के श्री मकरंद ¨सह इंटर कॉलेज से 1998 में द्वितीय श्रेणी से हाईस्कूल तथा 2000 में प्रथम श्रेणी इंटर पास करने के बाद खुशीराम ने शहर के जीएफ कॉलेज में प्रवेश लिया। 2003 में जब खुशीराम ने बीएससी की परीक्षा पास की। उन दिनों दस्यु सरगना कल्लू, नज्जू का आतंक चरम पर था। कटरी से नहीं चाहते थे खुद की पहचान
संयोंग से खुशीराम का गांव नया गांव बग्गरा कटरी ¨कग कल्लू के गांव हथिनी तथा उसके प्रतिद्वंदी के गांव कुबेरपुर के पास में है। कल्लू को पकड़ने को पुलिस खुशीराम के गांव में भी दबिश देते थी। एक बार पुलिस ने खुशीराम को भी पकड़ लिया। लेकिन विद्यार्थी जान छोड़ दिया। उस दिन से खुशीराम कटरी के नाम से अपनी पहचान भी छिपाने लगे। इस तरह पाया मुकाम
खुशीराम पांच भाइयों में सबसे बड़ी है। खेतिहर मजदूर पिता की मेहनत देख खुशीराम ने शिक्षक और अफसर बनने की ठानी। इसके लिए उन्होंने जीव विज्ञान विषय चुना। 2009 में वह बिसंवां सीतापुर के इंटर कॉलेज में जीव विज्ञान के प्रवक्ता बन गए। एक ख्वाब पूरा होने के बाद अधिकारी बनने के प्रयास तेज कर दिए। इसके लिए रोजाना घर पर ही आठ से दस घंटे पढ़ाई की। क्लास भी मिस नहीं होने दिया। अब एसडीएम का ख्वाब
इस बार खुशीराम ने आइएएस की भी परीक्षा दी, लेकिन यह उनका आखिरी चांस था। खुशीराम का कहना है कि आइएएस एलाइड में वह जाना नहीं चाहते, इसलिए पीसीएस की परीक्षा देकर एसडीएम का पद पाने की इच्छा है। इनका रहा योगदान
खुशीराम अपनी प्रगति में मां गीता देवी, स्व. पिता मुंशीलाल के साथ ही सहयोगियों का योगदान मान रहे है। उन्होंने बताया पूर्व जिला पंचायत सदस्य महावीर ¨सह, सेवा निवृत्त एडीओ द्वारिका प्रसाद, राजेश अग्निहोत्री, डा.अनूप कुमार, अमर चंद जौहर, राहुल वर्मा तथा जीएफ कॉलेज व मिश्रीपुर छात्रावास के साथियों ने भी प्रोत्साहित किया।
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