बरेली में प्रसिद्ध सितार वादक शाकिर खान बाले, बचपन से ही बच्चों को दें शास्त्रीय संगीत की शिक्षा
शास्त्रीय संगीत के प्रति युवाओं की रुचि कम होना कोई अजीब बात नहीं। जो बच्चे बचपन से ही घर में वेस्टर्न और विदेशी संगीत सुनते हैं वह उसी के दीवाने हो ज ...और पढ़ें

जागरण संवाददाता, बरेली: शास्त्रीय संगीत के प्रति युवाओं की रुचि कम होना कोई अजीब बात नहीं। जो बच्चे बचपन से ही घर में वेस्टर्न और विदेशी संगीत सुनते हैं, वह उसी के दीवाने हो जाते हैं। शास्त्रीय संगीत के प्रति उनका रुझान तब बढ़ता, जब उन्हें इसे सुनने का अवसर मिलता। जब तक बच्चों को बचपन से ही शास्त्रीय संगीत नहीं सुनाया जाएगा, तबतक उनमें रुचि पैदा नहीं होगी। उक्त बातें रविवार को एसआरएमएस रिद्धिमा सभागार में अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त सितार वादक शाकिर खान ने दैनिक जागरण को दिए साक्षात्कार में कहीं।
उन्होंने कहा कि बच्चों में शास्त्रीय संगीत के प्रति रुझान न होना भारतीय संस्कृति के लिए दुर्भाग्यपूर्ण है। ऐसे में सरकार के साथ ही समाज को भी इस ओर ध्यान देने की जरूरत है। सरकार को स्कूल, कालेज व विश्वविद्यालयों में शास्त्रीय संगीत को अनिवार्य करना चाहिए। थोड़े-थोड़े अंतराल पर बच्चों को शास्त्रीय संगीत के कार्यक्रमों से रूबरू कराना चाहिए। इससे उनमें शास्त्रीय संगीत के प्रति रुचि पैदा होगी। दुख की बात है कि जिस संगीत के लिए संगीतकारों ने अपना जीवन समर्पित कर दिया, उस धुन को सुनकर युवा पीढ़ी बोर होने लगती है। तकनीक के इस दौर में सारे संगीत के यंत्र फोन में आ गए हैं। उनसे किसी भी यंत्र की आवाज तो सुनाई दे सकती है लेकिन, सुरों से सराबोर धुन निकालना यंत्र से और संगीत की समझ से ही संभव है।
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फोटो :: सितार से निकले सुरों को सुन मंत्रमुग्ध हुए श्रोता
जासं, बरेली: एसआरएमएस रिद्धिमा में रविवार को इटावा घराने के प्रसिद्ध सितार वादक शाकिर खान ने शास्त्रीय संगीत की विभिन्न विधाओं की प्रस्तुति से कार्यक्रम को यादगार बना दिया। सितार व तबले की संगीतमय जुगलबंदी ने समां बांधा दिया।
एसआरएमएस ट्रस्ट के चेयरमैन देव मूर्ति ने कहा कि शहर में पहली बार इस प्रकार की शास्त्रीय संगीत गोष्ठी हुई है। इसमें करीब 30 बच्चों ने हिस्सा लिया। रविवार शाम को सितार वादक शाकिर खान ने राग श्याम कल्याण से अपनी प्रस्तुति की शुरुआत की, जिसे सुनकर श्रोताओं की तालियों से सभागर गूंज उठा। इसके बाद उन्होंने राग विलंबित और राग रूपक को प्रस्तुत कर प्राचीन और वैभवशाली भारतीय संगीत परंपरा की याद दिलाई। समापन राग मिश्र काफी के साथ हुआ। तबले पर धृति गोविदा दत्ता ने संगत की। आशा मूर्ति, आदित्य मूर्ति, ऋचा मूर्ति, ट्रस्ट एडवाइजर सुभाष मेहरा, रजनी अग्रवाल, सुरेश सुंदरानी, डा. एसबी गुप्ता, बरेली कालेज प्राचार्य डा. अनुराग मोहन, जेसी पालीवल, रीता शर्मा, डा. प्रभाकर गुप्ता, आशीष कुमार आदि रहे।

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