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    UP Heritage: रुहेलखण्ड की कला और संस्कृति को ‘प्रोजेक्ट खोजबीन’ से इतिहास के पन्नो में दर्ज कर रहीं बेटियां

    Rohilkhand के इतिहास को सहेजने का बीड़ा यहां की बेटियों ने प्रोजेक्ट खोजबीन के जरिए उठाया है। इसमें पुरातन कालीन अवशेषों और इमारतों का सूचीकरण कला सभ्यता जीवनशैली परंपरा लोकगीत कथाएं इत्यादि के बारे में जानकारी इकठ्ठा करना इत्यादि शामिल है।

    By Mohammad Aqib KhanEdited By: Mohammad Aqib KhanUpdated: Mon, 06 Feb 2023 07:15 PM (IST)
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    Rohilkhand: ‘प्रोजेक्ट खोजबीन’ से इतिहास के पन्नो में दर्ज कर रहे रुहेलखण्ड का इतिहास : जागरण

    मोहम्मद आकिब खांन, नोएडा / बरेली: रुहेलखंड का इतिहास चार हजार साल से भी पुराना है और इसको सहेजने का बीड़ा यहां की बेटियों ने प्रोजेक्ट खोजबीन के जरिए उठाया है। यह काम दिल्ली की एक संस्था के माध्यम से शुरू किया है जिसमें पुरातन कालीन अवशेषों और इमारतों का सूचीकरण, कला, सभ्यता, जीवनशैली, परंपरा, लोकगीत, कथाएं इत्यादि के बारे में जानकारी इकठ्ठा करना, इत्यादि शामिल है।

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    रुहेलखंड का इतिहास चार हजार साल से भी पुराना है। प्राचीन काल में यह पांचाल राज्य के उत्तरी पंचाल के रुप में, बौद्ध काल में 16 महाजनपदों में पांचाल जनपद, मध्य काल में कठेर या कठेहर और फिर ब्रिटिश काल में इसे रुहेलखंड के नाम से जाना जाने लगा। समय के साथ-साथ रुहेलखंड के भौगोलिक, आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक परिवेश में बदलाव आए लेकिन आज भी इसका गौरवशाली इतिहास और सांस्कृतिक महत्व देश-दुनिया में जाना जाता है।

    रोहिल्ला से अपना नाम और पहचान पाने वाला रोहिलखण्ड क्षेत्र वास्तव में पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कई ज़िलों को मिला कर बनता है। इसमें बिजनौर, अमरोहा, बदायूं, बरेली, शाहजहांपुर, पीलीभीत, मुरादाबाद, रामपुर, संभल आदि शामिल हैं।

    विविधता और सांस्कृति से समृद्ध है रुहेलखण्ड

    अवध और दिल्ली दरबार के निकट होने के कारण यहां की संस्कृति, जीवन शैली, साहित्य, शिल्पकला इत्यादि काफी अनूठी हैं। इतनी विविधता और सांस्कृतिक और ऐतिहासिक रूप से समृद्ध होने के बावजूद, न तो स्थानीय निवासी और न पर्यटकों को इसके बारे में ज़्यादा जानकारी है। समय के साथ लोगों की यादें भी धुंधली होती जा रही हैं। तेज़ी से बदल रहे इन शहरों में अपनी संस्कृति और इतिहास गुम होता जा रहा है।

    स्थानीय लोगों से बातचीत करते टीम के सदस्य

    इतिहास को संजोने का है उद्देश्य

    दिल्ली की वास्तु संरक्षण फर्म आईडीएट (IDEATE) के माध्यम से रोहेलखंड की बेटी दीपिका सक्सेना ने 2011 में ‘प्रोजेक्ट खोजबीन’ के माध्यम से इतिहास को संजोने का काम शुरू किया। उनका उद्देश्य अपनी विरासत और संस्कृति के माध्यम से सामाजिक, आर्थिक और क्षेत्रीय विकास में सहयोग प्रदान करना है।

    अवशेषों और इमारतों का सूचीकरण

    इस पहल में पुरातन कालीन अवशेषों और इमारतों का सूचीकरण, स्थानीय लोगों से बातचीत कर कला, इतिहास, जीवनशैली, विलुप्त हो रही परंपराओं, लोकगीत, कथाएं इत्यादि के बारे में जानकारी इकठ्ठा कर रही हैं। इस पहल में प्रशासन और नागरिक, दोनों की भागीदारी ज़रूरी है - इसलिए सबसे पहले, लोगों को अपने इतिहास और संस्कृति महत्व समझने और गर्व की अनुभूति कराने की इनकी कोशिश रही है।

    इस प्रोजेक्ट में फिलहाल पीलीभीत, बरेली, बदायूं, संभल, मुरादाबाद, अमरोहा जैसे ऐतिहासिक शहरों में काम कर रही है और आने वाले दिनों में बिजनौर व शाहजहांपुर ज़िले का विस्तृत अध्यन शुरू करने की योजना है।

    प्रोजेक्ट खोजबीन की टीम

    इसकी प्रोजेक्ट डायरेक्टर संरक्षण वास्तुकार दीपिका सक्सेना हैं तथा इतिहासकार जया बसेरा, हेरिटेज़ मैनेजमेंट स्पेशलिस्ट ऋचा पांडेय, कांजेर्वेशन आर्किटेक्ट शलाका आदि सहयोगी हैं।