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पर्यावरण और प्रकृति के घावों की सर्जरी कर रही डॉक्टर संगीता मोहन

जमीन के लिए आजकल लोग खून के रिश्तों को ताक पर रख देते हैं, वहीं, डॉ. संगीता ने हरियाली के लिए अपनी आठ बीघा जमीन दान दे दी।

By JagranEdited By: Published: Wed, 10 Oct 2018 01:03 PM (IST)Updated: Wed, 10 Oct 2018 01:03 PM (IST)
पर्यावरण और प्रकृति के घावों की सर्जरी कर रही डॉक्टर संगीता मोहन
पर्यावरण और प्रकृति के घावों की सर्जरी कर रही डॉक्टर संगीता मोहन

शाहजहापुर [अंबुज मिश्र]। जमीन, जिसके लिए लोग खून के रिश्तों को ताक पर रख देते हैं, एक महिला ने पर्यावरण और हरियाली से ऐसा रिश्ता जोड़ा कि खुद की खरीदी जमीन तक दान कर दी। वह भी आठ बीघा। मरीजों का उपचार उनका पेशा है तो पर्यावरण के रोग दूर करना प्रकृति के प्रति समर्पण। इसी शिद्दत ने डॉ. संगीता मोहन को अलग पहचान दी। आज 500 से ज्यादा महिलाएं इस मुहिम में सहयोगी हैं। --पौधा भेंट करते थे पिता, बेटी ने भी अपनाया

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डॉ. संगीता शहर की प्रतिष्ठित चिकित्सक हैं। चिकित्सकीय व्यस्तता के बीच भी पर्यावरण, पौधरोपण और स्वच्छता के लिए सक्रिय रहती हैं। हरियाली के प्रति यह समर्पण और प्रेरणा पिता विजय कुमार जैन से मिली। मेरठ कैंट स्थित घर में पिता बागवानी कर खुद ही पौधे विकसित करते थे। कोई मेहमान आता तो उन्हें गिफ्ट या यादगार के तौर पौधा भेंट करते थे। डॉ. रवि मोहन से शादी के बाद डॉ. संगीता शाहजहांपुर आई तो पिता की यह प्रेरणा साथ लाई। यहां भी कार्यक्रम, आयोजनों में पौधा भेंट करने की पहल की। क्लीनिक में आने वाले मरीजों को भी एक पौधा जरूर लगाने को प्रेरित करना शुरू किया। --कोशिशें पर्याप्त न लगीं तो दान की अपनी भूमि

पौधे भेंट करने के बाद भी धरा को हरा-भरा बनाने की कोशिशें पर्याप्त न लगीं। तब अकर्रा के पास अपनी आठ बीघा जमीन को नर्सरी विकसित करने के लिए दान करने का फैसला किया। एक ऐसे एक ऐसे जरूरतमंद को जमीन दी, जिस पर अपनी तीन बेटियों के साथ ही बड़े भाई के बच्चों की भी जिम्मेदारी थी। मेहनत रंग लाई। अब इस नर्सरी में हजारों किस्म के पौधे हैं। कोलकाता, पुणे आदि क्षेत्रों की वनस्पति के पौधे भी हैं। लोगों को बस न्यूनतम लागत पर ही यह पौधे दिए जाते हैं। --प्रयासों ने भरी प्रेरणा, जुड़ीं सैकड़ों महिलाएं

डॉ. संगीता शहर की समर्पण, यूनिटी, इनरव्हील, सखी, सहेली, लायंस, समेत दर्जन भर संस्थाओं से जुड़ी हैं। उनके इन प्रयासों ने संगठनों, संस्थाओं की महिलाओं को भी प्रेरित किया। अब पाच सौ से ज्यादा महिलाएं सहयोग कर रही हैं। सात साल से वह पॉलीथीन मुक्ति का अभियान चला रही हैं। कपड़े के थैले बांटती हैं।


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