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    हाइड्रोपोनिक फार्मिंग के जरिये 1000 वर्ग गज में तैयार की फसल, चार लाख का निवेश पांच साल में देगा 60 लाख तक का रिटर्न

    By Sanjay PokhriyalEdited By:
    Updated: Sun, 01 Nov 2020 11:59 AM (IST)

    सौरभ ने बताया कि जब भी मौका मिलता है वह भी घर जाकर स्ट्राबेरी की खेती की देखरेख करते हैं। हाइड्रोपोनिक फार्मिंग का आइडिया इसलिए पसंद आया क्योंकि इसमें सिर्फ पानी की जरूरत होती है मिट्टी की जरूरत नहीं।

    इस प्लॉट पर कुल चार लाख का निवेश किया, जो उन्हें पूरे पांच साल तक हर साल भरपूर रिटर्न देगा।

    अंकित शुक्ला, बरेली। आम शहरी बागवान भी छोटे बगीचे में स्ट्राबेरी से भरपूर मुनाफा कमा सकता है और साथ ही बागवानी का शौक भी पूरा कर सकता है। बरेली, उप्र में रहने वाले सौरभ सिंह ने अपने 1000 वर्ग गज के शहरी आवासीय प्लॉट पर स्ट्राबेरी उगाई और पहली बार में 12 लाख रुपये की बढ़िया फसल भी ली। जनवरी-फरवरी में आने वाली दूसरी फसल भी 12-14 लाख रुपये तक की कमाई कराएगी। सौरभ ने इस प्लॉट पर कुल चार लाख का निवेश किया, जो उन्हें पूरे पांच साल तक इसी तरह हर साल भरपूर रिटर्न देगा।

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    एनसीआर में जॉब करने वाले सौरभ ने आइआइटी दिल्ली से एमटेक किया है। वह और उनकी पत्नी ऋचा बागवानी के शौकीन हैं। दो साल पहले इंटरनेट से जानकारी एकत्र कर नोएडा स्थित घर में हाइड्रोपोनिक र्फांिमग से टमाटर उगाए थे। प्रयोग सफल रहा तो तय किया कि बरेली में इसी तरह स्ट्राबेरी की खेती करेंगे। पहले हर माह नोएडा से बरेली आने वाली ऋचा पिछले साल यहीं आकर रुक गईं। सौरभ सिंह, उनके पिता रिटायर्ड बैंक मैनेजर श्याम पाल सिंह और एमसीए की पढ़ाई कर चुकी ऋचा ने घर से लगे 1000 वर्ग गज के अपने खाली प्लॉट को बगीचे के लिए चुना और स्ट्राबेरी की खेती की तैयारी शुरू की। जालीदार गमलों (नेटकप) में नारियल का बुरादा भरकर पौध लगाई। इसके बाद गमलों को पाइपलाइन पर स्थापित कर दिया, जिसमें प्रति फुट दूरी पर छेद बनाए गए थे ताकि इनसे टैंक के जरिये पौधों को पानी के साथ नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटाश, कैल्शियम, सल्फर, जिंक आदि की र्पूित होती रहे। टैंक में हर दो माह में यह पौष्टिक तरल भर दिया जाता है।

    तापमान नियंत्रित करने के लिए प्लांट के ऊपर पारदर्शी प्लास्टिक शीट लगाई गई है। सौरभ बताते हैं कि पाइप की आठ लेयर बनाकर इस तरह 5500 पौधे लगाए गए। एक पौधे की कीमत 10 रुपये पड़ी, जो मुंबई से मंगवाए थे। सारे इंतजाम में करीब चार लाख रुपये खर्च हुए। बीते साल अक्टूबर में पौधे लगाए थे, जिनमें तीन महीने बाद उपज आने लगी। सामान्य तौर पर प्रत्येक पौधे में आधा से एक किलो तक उपज होती है। पौधे के दो साल पूरे हो जाने पर पैदावार बढ़ जाती है। पौधा चार से पांच साल तक फल देता है। खुले बाजार में औसतन 250 रुपये प्रति किलो की दर से बिक्री हुई। पहली फसल करीब 12 लाख रुपये की बिकी। इस सीजन में 14 लाख तक की फसल तैयार होने का अनुमान है।

    सौरभ ने बताया कि जब भी मौका मिलता है वह भी घर जाकर स्ट्राबेरी की खेती की देखरेख करते हैं। हाइड्रोपोनिक फार्मिंग का आइडिया इसलिए पसंद आया क्योंकि इसमें सिर्फ पानी की जरूरत होती है, मिट्टी की जरूरत नहीं। इसमें सामान्य खेती से 40 प्रतिशत कम खर्च होता है। उपज के अनुभव से संतुष्ट सौरभ ने बताया कि अब वह फार्म हाउस में भी स्ट्राबेरी उगाएंगे और जल्द ही अपना ब्रांड बनाकर सुपर मार्केट में बिक्री करेंगे। राज्यों में उद्यानिकी और कृषि विभाग की तरफ से इस प्रकार के उद्यमों के लिए अनुदान भी दिया जाता है, जिसमें प्लास्टिक मल्चिंग और ड्रिप इरीगेशन सिंचाई आदि यंत्र पर 40 से 50 प्रतिशत तक अनुदान भी मिल जाता है।