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बरेली में निर्भया कांड जैसी वारदात करने वाले दो आरोपियों को कोर्ट ने सुनाई फांसी की सजा

बरेली में करीब चार साल पहले हुई निर्भया कांड जैसी वारदात के दोनों आरोपितों को स्थानीय कोर्ट ने फांसी की सजा सुना दी है। 29 जनवरी 2016 को हुई थी घटना।

By Abhishek PandeyEdited By: Published: Fri, 10 Jan 2020 10:59 AM (IST)Updated: Sat, 11 Jan 2020 07:09 AM (IST)
बरेली में निर्भया कांड जैसी वारदात करने वाले दो आरोपियों को कोर्ट ने सुनाई फांसी की सजा
बरेली में निर्भया कांड जैसी वारदात करने वाले दो आरोपियों को कोर्ट ने सुनाई फांसी की सजा

अंकित गुप्ता, बरेली : करीब चार साल पहले बरेली में हुई निर्भया कांड जैसी वारदात के दोनों आरोपितों को स्थानीय कोर्ट ने फांसी की सजा सुना दी है। कोर्ट ने मामले में फैसला आठ जनवरी को ही सुरक्षित कर लिया था, जिसे शुक्रवार दोपहर को कोर्ट ने सुनाया। इस मामले में पीड़ित परिवार और गवाह लगातार चार साल से न्याय पाने के लिए डटे हुए थे।

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करीब चार साल तक चले इस मामले को निर्णय तक लाने में एक नहीं कई अड़चनें आईं। कभी परिजनों तो कभी गवाह को धमकी, लेकिन न गवाह डिगे न परिजन। विवेचक, पुलिस और वकील सभी अपनी अपनी भूमिका रही। इंसाफ की चाह ही थी जो इसे फैसले तक ले आई। अब सबको इंतजार है तो दोषियों को ऐसी सजा मिलने का जो दरिंदगी करने वालों में खौफ पैदा करे।

खेत में मिला था शव

29 जनवरी 2016 की वह शाम जब अंधेरा हो गया था और बिटिया घर नहीं पहुंची थी। परिजन तलाशने निकले तो खेत में उसका शव मिला। शव देखने वालों ने उसी वक्त अंदाजा लगा लिया था कि हुआ क्या है। पुलिस आई शव पोस्टमार्टम को गया। रिपोर्ट आई तो सबके होश उड़ गए। बच्ची के साथ दरिंदगी की गई थी। उसके प्राइवेट पार्ट में लकड़ी मिली थी, कई चोट के निशान थे। पुलिस ने आरोपितों की तलाश की तो काफी प्रयास के बाद भी नहीं मिले। इसी दौरान गांव के रामचंद्र ने पुलिस को बताया कि मुरारीलाल व उमाकांत उससे मदद मांगने आए थे। वह पुलिस से बचाने की बात कह रहे थे। यह जानकारी मिलते ही पुलिस ने दोनों को दबोच लिया। पूछताछ में घटना कुबूल कर ली। दोनों पर मुकदमा दर्ज हुआ था।

सीओ ने की थी जांच

तत्कालीन सीओ नरेश कुमार ने मामले की जांच की। इसमें पोस्टमार्टम रिपोर्ट अपराध को जघन्य बता रही थी। इसमें पीड़िता की दादी, मां के अलावा रामचंद्र गवाह बने। इस मामले में 2017 में चार्जशीट लगा दी गई थी। लेकिन अदालत में यह मामला अब तक चलता रहा।

गवाही में फंसा था पेच

इसमें कई बार गवाही का ही पेंच फंसा। तत्कालीन इंस्पेक्टर आर्यन सिंह और सीओ नरेश कुमार को भी तबादला हो चुका था। वहीं दादी व एक अन्य गवाह को डराने की कोशिश हुई। एक अन्य गवाह तो अदालत में अपने बयानों से पलट भी गया था। दूसरे गवाह यानी रामचंद्र को पुलिस ने सुरक्षित रखने का भरोसा दिया तो वह गवाही देने को तैयार हुए।

डीजीपी ने खुद कर रहे थे मॉनीटरिंग

डीजीपी ओपी सिंह ने इस मामले का संज्ञान लिया। उन्होंने वर्तमान इंस्पेक्टर गौरव सिंह और डीआइजी राजेश पांडेय को लखनऊ बुलाया था। अभियोजन अधिकारी के साथ बैठकर इस पर चर्चा हुई। तत्कालीन सीओ और इंस्पेक्टर को बयान दर्ज कराने बुलाया गया। गवाह रामचंद्र को सुरक्षा देने का भरोसा दिया गया। उसकी ओर से धमकी देने का मुकदमा दर्ज हुआ। इसके बाद पीड़िता की मां और रामचंद्र की गवाही के आधार पर दोनों आरोपितों को दोषी पाया गया।

मामले में इन्होंने निभाई अहम भूमिका

आरोपितों को दोषी करार देने से पहले तीन दिन तक लगातार इस मामले में बहस हुई। वर्तमान सरकारी वकील रीतराम राजपूत ने सभी साक्ष्यों और गवाहों को बड़े सलीके से रखा। वर्तमान इंस्पेक्टर गौरव सिंह लगातार गवाहों के संपर्क में रहे। तत्कालीन एसएसपी मुनिराज जी भी रामचंद्र से संपर्क बनाए रहे और उसे बिना डरे गवाही देने के लिए प्रोत्साहित करते रहे। उन्होंने रामचंद्र को पुरस्कृत करने का भी वादा किया था।

वापस किए थे 15 हजार,  छूट गई शराब

आरोपितों की ओर से गवाही न देने के लिए रामचंद्र को 15 हजार रुपये भी दिए गए थे। लेकिन रामचंद्र ने वह वापस कर दिए। रामचंद्र बताते हैं कि इस मामले को लेकर इतना दवाब था कि वह प्रतिदिन शराब पीने लगे थे। लेकिन जबसे गवाही दी है, उसके बाद से मन से बोझ हल्का हो गया। नेक कार्य का नतीजा यह रहा कि अब शराब पीने का मन ही नहीं होता।

माता पिता की मंशा थी मिले फांसी की सजा

बिटिया के माता, पिता चाहते थे, कि आरोपितों को फांसी की सजा मिले। उनका कहना था कि सजा ऐसी हो जो दरिंदों के लिए नजीर बने। जिससे कोई भी ऐसा काम करने से पहले चार बार सोचे। सरकारी वकील रीतराम राजपूत की ओर से भी कोर्ट से फांसी की सजा की मांग की गई थी।

झकझोर देने वाली घटना का हुआ फैसला : इंस्पेक्टर

इंस्पेक्टर गौरव सिंह ने कहा कि निश्चित तौर पर घटना झकझोर देने वाली थी। गवाहों को संरक्षित और सुरक्षा का भरोसा दिया था। उनसे हर दूसरे चौथे दिन संवाद किया था। एक गवाह पलटा, लेकिन मां और रामचंद्र की गवाही और तत्कालीन इंस्पेक्टर और सीओ के बयानों ने केस को मजबूती दी थी। इसके बाद ही इस मामले को फैसले तक लाया जा सका।

पीड़िता कक्षा एक की थी छात्रा

थाना बिशारतगंज के एक गांव में झोपड़ी डालकर रह रहे एक परिवार का मुखिया दूसरे प्रांत में मजदूरी करता है। यहां उसकी पत्नी, नौ वर्षीय बेटी, एक बेटा रहते थे। घटना 12 दिसंबर 2018 को हुई थी। गांव ही स्कूल में कक्षा एक में पढ़ने वाली बेटी शाम को अचानक लापता हो गई थी। कहीं पता न चलने पर 14 को पिता भी गांव आ गया। उसी दिन बच्ची का शव निर्वस्त्र स्थिति में गांव के पास गन्ने के खेत में मिला था।

पकड़ा गया था बदायूं निवासी आरोपित

थाने की पुलिस और क्राइम ब्रांच ने छानबीन की। तब बदायूं के दातागंज क्षेत्र में ग्राम कनपुर बेलाडंडी निवासी आरोपित विकास को दबोचा। उसकी बहन की शादी बच्ची के घर के पास वाले घर में हुई है। यह बच्चे भी उसे मामा कहते थे। बताया जाता है कि आरोपित उस दिन शराब के नशे में था और बच्ची को टॉफी दिलाने का लालच देकर खेत में ले गया था।

समझौते का दबाव बनाने के लिए  दे रहे धमकियां

बेटी के साथ दर्दनाक वारदात के गम में 16 दिसंबर 2019 को उसकी मां की मौत हो गई थी। बच्ची के पिता ने बताया कि आरोपित की बहन का परिवार समझौता करने का दबाव डाल रहा था। उन्हें गंभीर परिणाम भुगतने की धमकी मिल रही हैं। पिता का कहना है कि वह मुकदमे की लगातार पैरवी करते रहे। कोर्ट ने अब अपना फैसला सुना दिया है।


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