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    UP News: हल्के में न लें गले की खिचखिच, जान भी जा सकती है...शाेध में सामने आए चौंकाने वाले रिजल्ट

    Updated: Wed, 27 Nov 2024 01:16 PM (IST)

    Bareilly News गले की खिचखिच को हल्के में न लें यह जानलेवा भी हो सकती है। स्ट्रेप्टोकोकस बैक्टीरिया के कारण होने वाली यह खराश लंबे समय तक रहे तो गठिया रोग के अलावा दिल का जानलेवा दर्द भी दे सकती है। आइवीआरआइ के महामारी विज्ञान विभाग के विभागाध्यक्ष डा.भोजराज सिंह के नेतृत्व में 507 सैंपलों पर हुए शोध में सामने आया।

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    गले की खिचखिच का सांकेतिक फोटो उपयोग किया गया है।

    दीपेंद्र प्रताप सिंह, बरेली। ‘गले में खिचखिच है... कोई नहीं, कुछ दिन में खुद ही ठीक हो जाएगी या ‘वो’ वाली गोली ले लूंगा।’ आमतौर पर लोग गले की खराश को कुछ ऐसे ही हल्के में लेते हैं, लेकिन यह खिचखिच जानलेवा भी हो सकती है।

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    भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान (आइवीआरआइ) के महामारी विज्ञान विभाग के विभागाध्यक्ष डा. भोजराज सिंह के निर्देशन में चार साल तक शोध के मुताबिक स्ट्रेप्टोकोकस नामक बैक्टीरिया से गले में होने वाली खराश लंबे समय तक रहे तो यह गठिया रोग के अलावा दिल का जानलेवा दर्द भी दे सकती है।

    डा. सिंह के मुताबिक कोविड काल में मरीजों के कई सैंपल आइवीआरआइ आए। इसके अलावा अन्य बीमारी से मरने वाले जानवरों के सैंपल भी थे। 507 सैंपलों की जांच में पता चला कि अधिकांश लोगों के शरीर में स्ट्रैप्टोकोकस बैक्टीरिया था। यह बैक्टीरिया गले में खराश के प्रमुख कारणों में से एक है। जांच में पता चला कि गले में खराश व लगातार खांसी की वजह से अधिकांश लोगों के टाउंसिल सूज गए थे।

    दिल व गठिया के कारणों में से एक है स्ट्रैप्टोकोकस

    विज्ञानी बताते हैं कि बैक्टीरिया को शुरुआती खांसी या खराश के दौरान मारना ज्यादा आसान हो जाता है। अगर खराश दो से ज्यादा दिन रह चुकी है तो यह बैक्टीरिया गले से नीचे उतरकर शरीर के अन्य अंगों पर असर डालता है। यह बैक्टीरिया शरीर में मौजूद प्रोटीन को प्रभावित करता है, जिस वजह से शरीर अपने ही खिलाफ एंटीबाडी बनाने लगता है। अलग-अलग अंगों पर इसका असर अलग-अलग होता है। मसलन, गठिया जनित दिल की बीमारी हो सकती है, जिसमें दिल का दौरा पड़ने से मृत्यु भी हो सकती है। इसके अलावा जोड़ों का दर्द भी यह बैक्टीरिया देता है।

    अस्पताल के आसपास बैक्टीरिया का ज्यादा खतरा

    विज्ञानियों के अनुसार वैसे तो यह बैक्टीरिया हवा में लगभग हर जगह रहता है, लेकिन अस्पताल के आसपास इसकी अधिकता होती है। यहां लोगों के खांसने और छींकने के जरिए ये दूसरे शख्स के शरीर में मुंह या नाक के रास्ते इंसान या जानवर के शरीर में प्रवेश कर जाते हैं।

    एस्पिरिन या डिस्पिरिन का गरारा सबसे बेहतर

    डा.भोजराज सिंह बताते हैं कि बैक्टीरिया को मारने या कमजोर करने वाली दवाओं के बारे में अध्ययन किया गया। इसमें पता चला कि कुल 38 एंटीबायोटिक व 15 हर्बल दवाएं बैक्टीरिया के विरुद्ध अलग-अलग मात्रा में असर डालती हैं। यह भी पता चला कि स्ट्रैप्टोकोकस बैक्टीरिया को शरीर में प्रवेश करते समय ही सबसे ज्यादा आराम से निष्क्रिय किया जा सकता है।

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    ऐसे में खराश के शुरुआती दौर में ही एस्पिरिन या डिस्पिरिन पानी में डालकर इसका गुनगुना करें। यह बैक्टीरिया मारने में 100 प्रतिशत तक कारगर साबित हुआ। इसके अलावा एलोपैथी में इमीपैनम 87 प्रतिशत असरकारक रही। हालांकि, विज्ञानी किसी भी उपचार से पहले एक बार डाक्टर से सलाह लेने की राय देते हैं।

    दालचीनी व अजवाइन 75 प्रतिशत तक कारगर

    आयुर्वेदिक पद्धति में जो 15 दवाएं बैक्टीरिया के विरुद्ध असरकारक दिखीं, उनमें दालचीनी और अजवाइन थीं। इनका सेवन 75 प्रतिशत तक बैक्टीरिया मारने में कारगर साबित हुई। इसके अलावा तुलसी (50 प्रतिशत) व लौंग के साथ पान के पत्ते (48 प्रतिशत) तक असर डालते हैं।