मुहल्लानामा : खतरनाक साजिशों और डरावने रहस्यों वाला है चौधरी मुहल्ला Bareilly News
400 साल बाद अब राजा साहब के बजाय लोग रानी साहिबा के बारे में ज्यादा जानते हैं। उनका ननाम रानी लक्ष्मीबाई था उन्हीं के नाम पर मुहल्ले में रानी साहिबा का फाटक मशहूर है।
बरेली [वसीम अख्तर] : वो जोर-जोर से आवाज लगा रहे थे, शाही कालीन ले लो... शाही कालीन। महल के गेट पर तैनात सैनिकों को दिलचस्पी पैदा हुई। कालनी बेचने वालों को रोक। कालीन दिखाने को कहा तो उन्होंने यह कहकर मना कर दिया कि इस वे सिर्फ राजा साहब को दिखा सकते हैं। किसी और को नहीं।
खबर राजा साहब तक पहुंचाई गई। वह कालीन देखने को तैयार हो गए। बस यहीं गजब हो गया। कालीन बेचने वालों के भेष में कातिल थे। भले ही कातिल कामयाब हो गए लेकिन उनकी जान भी न बची। राजा साहब के पालतू कुत्ते ने पीछा करके कातिलों को मार डाला।
यह रोचक किस्सा चौधरी बसंत राव का है, जिनके नाम पर चौधरी मुहल्ला आबाद हुआ। मुहल्ले के बुजुर्ग बताते हैं, करीब 400 साल पहले यह पूरा इलाका बसंत राव के पास था। वह राजा साहब के नाम से मशहूर थे। रुहेलों से उनकी बनती नहीं थी। दोनों तरफ से हमले होते रहते थे। राजा साहब ने अपनी हिफाजत के लिए शाहबाद और लखना से अपने रिश्तेदारों को बुला लिया था। उन्हें महल के आसपास आबाद किया। कुछ लोगों को जोड़कर फौज खड़ी की थी।
मुहल्ले के बुजुर्गों का कहना है कि जब राजा साहब का कत्ल किया गया तो उनका वफादार कुत्ता जंजीर से बंधा था। उसने जंजीर तोड़ ली। तब तक कातिल महल से निकल चुके थे। कुत्ते ने पीछा करके कातिलों को पुराना शहर में दौड़ाककर और काटकर मार डाला था।
यह भी दिलचस्प बात है कि 400 साल बाद अब राजा साहब के बजाय लोग रानी साहिबा के बारे में ज्यादा जानते हैं। उनका ननाम रानी लक्ष्मीबाई था, उन्हीं के नाम पर मुहल्ले में रानी साहिबा का फाटक मशहूर है। हालांकि, फाटक तो अब टूट चुका है।
एक दिलचस्प किस्सा यह भी है कि जब फाटक बन रहा था तो दीवार बार-बार टूट रही थी। तब उसे रोकने के लिए नरबलि दी गई थी। स्थानीय लोगों के मुताबिक राजा-रानी के कोई संतान नहीं होने के लिए बेगुनाहों की नरबलि को जिम्मेदार माना गया।
बादशाह शाहजहां की बेटी के इलाज का इनाम थी रियासत
शैलेंद्र कुमार शुक्ला ने बताया कि लोगों से बातचीत और इतिहास के पन्ने पलटने से साफ होता है कि बसंत राव और उनके पूर्वज ब्राह्मण थे। वैद्य थे। यह मुगलिया दौर की बात है। बादशाह शाहजहां की गर्भवती बेटी की हालत नाजुक हो गई थी। उसे ठीक करने में शाही वैद्य नाकाम होने लगे। मुहल्ले में रहने वाले शैलेंद्र कुमार शुक्ला बताते हैं कि तब बसंत राव के पिता ने शाहजहां की बेटी का इलाज किया था। उस दौर में पर्दे का चलन बहुत ज्यादा था, इसलिए हाथ में डोर बांधकर नब्ज परखते थे। उनकी दवा से बेटी ठीक हुई तो शाहजहां ने खुश होकर बरेली का यह इलाका इनाम में उन्हें दिया था। चौधरी के खिताब से भी नवाजा था।
अधेला जुर्माना डाला तो नहीं चलाई बग्घी
प्रेम कुमार गुप्ता ने कहा कि राजा साहब के बारे में एक किस्सा यह भी मशहूर है कि मुगलिया हुकूमत के दौरान जब वह एक घोड़े की बग्घी लेकर निकले तो उन पर जुर्माना डाल दिया गया। तब वह दो, फिर तीन और आखिर में 20 घोड़ों की बग्घी पर बैठकर गए। हुकूमत ने जब देखा कि राजा साहब मान नहीं रहे तब अधेले (आधा पैसा) का जुर्माना डाला। वर्तमान पार्षद के पिता प्रेमकुमार गुप्ता बताते हैं इसे राजा ने अपनी तौहीन समझा और फिर बग्घी से नहीं निकले।
गोद लिया था एक लड़का
सतीश कुमार मिश्र ने बताया कि अपनी संतान न होने पर राजा और रानी ने एक लड़के को गोद लिया था। उसका नाम छुन्ना था। इस खानदान की एक लड़की बची हैं, लेकिन वह इस मुहल्ले में नहीं रहतीं। सतीश कुमार मिश्र बताते हैं कि ज्यादातर संपत्ति भी बिक चुकी है। फाटक टूट चुका है तो तालाब पर भी कब्जा हो रहा है।
200 साल पुरानी रामलीला
रानी साहिबा का एक तालाब और वहीं मंदिर भी है। यहां अब भी रामलीला होती है। तालाब पहले बहुत सुंदर हुआ करता था। उसमें नाव चलती थी। शंकर भगवान का मंदिर है। निखिल दीक्षित बताते हैं कि अब तो राजा साहब और रानी साहिबा को लेकर बस किस्से व कहानियां ही शेष हैं। मुहल्ले में ही ज्यादातर लोग उनसे वाकिफ भी नहीं हैं।