लोक संस्कृति का उत्सव चौबारी मेला: ग्रामीण संस्कृति में आस्था और रोजगार का अनूठा संगम
चौबारी मेला लोक संस्कृति का उत्सव है, जो ग्रामीण संस्कृति में आस्था और रोजगार का अनूठा संगम है। यह मेला ग्रामीण जीवन का अभिन्न अंग है, जो लोगों को सांस्कृतिक विरासत को जीवित रखने का अवसर देता है। यहाँ लोग विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आनंद लेते हैं, जो आस्था और मनोरंजन का संगम है।
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कमलेश शर्मा, जागरण बरेली : पतित पावनी, जीवनदायिनी नदियों के किनारे प्राचीन लोक संस्कृतियां अनवरत पुष्पित, पल्लवित होती आ रही हैं। इन्हें समृद्ध करने में मां के स्वरूप में नदियों के प्रति हमारी आस्था बड़ी वजह है। कार्तिक पूर्णिमा पर चौबारी मेले में इसका जीवंत उदाहरण दिखाई दिया। लाखों की भीड़ जुटी थी, हर कोई अपनी धुन में मगन था।
गंगा स्नान के साथ लोग मनोरंजन का लुत्फ उठा रहे थे। रोजमर्रा की जरूरत वाली वस्तुओं की खरीदारी करते हुए आगे निकल रहे थे। आस्था, श्रद्धा और लोक संस्कृति की त्रिवेणी में खेतों में टेंट लगाकर सजाई गई छोटी-बड़ी दुकानों पर हजारों हाथों को रोजगार मिला और कुछ ही घंटों में करोड़ों का कारोबार हो गया।
चौबारी मेला शहर के करीब भले ही लगा है, लेकिन यह पूरी तरह से ग्रामीण परिवेश में रचा-बसा दिखाई दिया। स्वजन के साथ उछलते-कूदते बच्चे, घूंघट की ओट लिए निकलती महिलाएं, युवाओं और बुजुर्गों में क्षेत्रीयता की झलक दिखाई पड़ी। मेले में कोई ढोलक का माेलभाव कर रहा था तो कोई सूप और चलनी, चौकी-बेलना और फूंकनी खरीद रहा था।
सिलबट्टा के बाजार में भी महिलाओं की भीड़ दिखाई पड़ी। जिन घरों में बेटियों की शादी तय हो चुकी है, उनके स्वजन बक्सा और आलमारी की खरीदारी करते दिखाई दिए। मीना बाजार की रौनक अलग दिखाई पड़ी।चूड़ी, बिंदी से लेकर सौंदर्य प्रसाधन की खरीदारी चलती रही। विहंगम मेला लगा, भीड़ अच्छी रही, लेकिन प्रशासन और मेला आयोजन कमेटी के बीच समन्वय न होने से कई कमियां भी दिखाई पड़ीं।
आयोजन समिति की 19 सदस्यीय कमेटी के गठन में विलंब हुआ, फिर घाट की तैयारी भी आनन-फानन में कराई गई। यही वजह रही कि भीड़ बढ़ी तो घाट छोटा पड़ गया। मेले में भीड़ मंगलवार शाम को ही जुट गई थी, लेकिन झूला-चरखा चालू कराने की अनुमति लेने में आयोजन कमेटी के सदस्यों को पसीने छूट गए। बुधवार सुबह से ही इनकी शुरूआत हो सकी।
नौटंकी इस मेले के आकर्षण का केंद्र रहा है, लेकिन इस बार डांस पार्टी की भी अनुमति नहीं मिल सकी। घोड़ों के नखासा स्थल पर भी इंतजाम के नाम पर खानापूरी ही दिखाई पड़ी। बहरहाल, मुख्य स्नान पर्व सकुशल निपट गया। शुरूआत से ही आयोजन समिति और अधिकारियों के बीच समन्वय बना रहता तो मेला और व्यवस्थित लग सकता था।

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