मुहल्लानामा : सूबे की तीन में से एक ब्राह्मण स्टेट थी बरेली Bareilly News
करीब सौ साल बाद कोठी की बाहरी चमक-दमक तो फीकी पड़ गई है लेकिन भारतीयता के संस्कार उतने ही गहरे हैं। यहां दिन का आरंभ पूजा-पाठ से होता है और रसोई में बाहरी व्यक्ति को जाने की इजाजत एक सदी गुजरने के बाद भी नहीं है।
बरेली [वसीम अख्तर] : एक जमाना था जब वे राव और फिर राय साहब कहलाए। चीनी का कारोबार था। अपने बैंक थे। ब्रिटिश हुकूमत में उन्हें राजा का खिताब मिला। तब सूबे की तीन ब्राह्मण स्टेट में एक बरेली थी। जहां राजा काली मोहन नाथ मिश्र उर्फ कालीचरण मिश्र और उनसे पहले उनके पुरखों का एक बड़े हिस्से पर राज्य था।
कोठी में इसी चबूतरे पर रखा जाता था राजा साहब का सिंहासन। जागरण
फूलबाग में 60 बीघा से ज्यादा क्षेत्रफल में फैली उनकी कोठी का उद्घाटन करने लेफ्टिनेंट गवर्नर सर जेम्स स्कोरसी मेस्टन आए थे। करीब सौ साल बाद कोठी की बाहरी चमक-दमक तो फीकी पड़ गई है लेकिन भारतीयता के संस्कार उतने ही गहरे हैं। यहां दिन का आरंभ पूजा-पाठ से होता है और रसोई में बाहरी व्यक्ति को जाने की इजाजत एक सदी गुजरने के बाद भी नहीं है। यह कोठी घरों के अंदर खड़ी हो रही दीवारों के बीच अब भी संयुक्त परिवार की सीख दे रही है।
राजा साहब की कोठी में लगा शिलान्यास का पत्थर। जागरण
छावनी राजा कालीचरण कहलाया इलाका
खानदान के लोग बताते हैं कि राजा कालीचरण और उनके काफी बाद तक यह इलाका छावनी राजा कालीचरण कहलाया। बाद में इसे किला छावनी कहा जाने लगा। किला क्रॉसिंग के इस पार से शुरू होकर मिनी बाईपास तक फूलबाग था। राजस्व रिकॉर्ड में इसका नाम स्वालेनगर जबकि नगर निगम में छावनी राजा कालीचरण दर्ज है।
मंदिर व कॉलेज को दी जमीन
राजा साहब के परिवार ने तिलक इंटर कॉलेज और बाद में 1977 में बने किला पुल के लिए जमीन दी थी। राजा कालका प्रसाद मिश्र ने मुहल्ला गढ़ी में गौरीशंकर मंदिर बनवाया था। आसपास रहने वाले बुजुर्ग बताते हैं कि जब कोठी फूलबाग बनी तो उसमें लगने वाली ईंट के लिए सामने ही भट्ठे लगवाए गए थे।
इनके पास रही राजा की उपाधि
- राजा बैजनाथ मिश्र
- राजा कालका प्रसाद
- राजा कालीचरण मिश्र
- राजा श्याम मोहन नाथ मिश्र
राजा कालीचरण मिश्र तलवार के साथ। फाइल फोटो
जीवनर्पयत रहे एमएलसी
राजा कालीचरण मिश्र जीवनर्पयत एमएलसी रहे। उनकी 1932 में मृत्यु हुई थी। वह गो¨वद वल्लभ पंत के साथ भी रहे। कुंवर दीपक मिश्र बाबा के बारे में जानकारी देते हुए बताते हैं कि 1917 में पहली बार राजा कालीचरण को एमएलसी बनाया गया था। उस समय विधान परिषद सदस्य का कार्यकाल तीन साल होता था। तब वोट डालने का अधिकार मालगुजारी देने वाले को ही होता था। मुलायम सिंह यादव मुख्यमंत्री रहते दो मर्तबा राजा कालीचरण की कोठी आए। तब रानी चंद्र कुंवर जिंदा थीं, जो राजा कालीचरण की पत्नी और इटावा के राजा चंद्रनगर की पुत्री थीं।
सौ साल से ज्यादा पुरानी एलबम दिखाते राजा साहब के पोते पद्मनाभ मिश्र व आशुतोष मिश्र। जागरण
दशहरे पर लगता था दरबार
राजा कालीचरण के पुत्र राजा श्याम मोहन नाथ मिश्र बताते हैं कि सभी त्योहारों में दशहरा बहुत धूमधाम से मनाया जाता था। राजा साहब पारंपरिक पोशाक पहनते। सबसे पहले कुलदेवी का पूजन किया जाता। इसके बाद ब्राह्मणों को भोजन शुरू होता। आम जनता के लिए भंडारा किया जाता था, जो देर शाम तक चलता। बगीचे में बने चबूतरे पर दरबार लगता था। चबूतरे पर राजा साहब का सिंहासन रखा जाता था। उनके सहयोगी चबूतरे के नीचे इर्द-गिर्द रहते। राजा साहब हर एक की फरियाद सुनते और पूरी करते। चबूतरे के ऊपर कपड़े से बना भारी भरकम पंखा कड़ियों के सहारे टंगा हुआ था। दो दरबान रस्सियों के सहारे पंखा झलते थे।
राजा कालीचरण के वंशज कुंवर दीपक मिश्र अपने परिवार के साथ। जागरण
सदियों पुरानी परंपराएं बरकरार
राजा श्याम मोहन नाथ मिश्र के पुत्र कुंवर दीपक मिश्र एडवोकेट बताते हैं कि कोठी फूलबाग में कुलदेवी का प्राचीन मंदिर है। भगवान की 100 से ज्यादा मूर्तियां हैं। पूर्व की तरह सुबह जल्दी जागकर परिवार के लोग साफ सफाई और पूजा-अर्चना करते हैं। खाना परिवार की महिलाएं बनाती हैं। रसोई में बाहरी व्यक्ति अब भी नहीं जाता। राजा श्याम मोहन नाथ मिश्र अपने चारों बेटों के परिवार के साथ रहते हैं।
इन तीन स्टेट में ब्राह्मण राजा
- बरेली
- जौनपुर
- सिसेंदी
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।