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    Bareilly News : बरेली के किलों इतिहास जानकर रह जाएंगे हैरान, यहां छिपीं हैं शौर्य की कई कहानियां

    By Ravi MishraEdited By:
    Updated: Sat, 17 Sep 2022 05:53 PM (IST)

    Rohilkhand Fort News देखने में जर्जर लेकिन महसूस करेंगे तो ये दीवारें शौर्य की कहानियां सुनाएंगी। इनके पीछे ऐसा कालखंड छिपा है जिसने इतिहास को नये पन्ने दिए। हम जिले के ऐसे ही किलों के बारे में बता रहे।

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    Bareilly News : बरेली के किलों इतिहास जानकर रह जाएंगे हैरान, यहां छिपीं हैं शौर्य की कई कहानियां

    बरेली, नीलेश, प्रताप सिंह। Rohilkhand Fort News : देखने में जर्जर, लेकिन महसूस करेंगे तो ये दीवारें शौर्य की कहानियां सुनाएंगी। इनके पीछे ऐसा कालखंड छिपा है, जिसने इतिहास को नये पन्ने दिए। हम जिले के ऐसे ही किलों के बारे में बता रहे। जिन लोगों ने इनका निर्माण कराया, उनके माध्यम से क्षेत्र को पहचान मिल गई। इनमें राजा और नवाब रहते थे।वे अपनी हुकुमत संचालित करते थे। नीलेश प्रताप सिंह की रिपोर्ट... |

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    वर्ष 1857 की क्रांति के समय रुहेलखंड के क्रांतिकारियों की गौरवगाथा से पूरा देश परिचित हो चुका था।उससे पहले भी यहां के नवाब और राजाओं का यश दूर तक था। इतिहासकार बताते हैं कि वर्ष 1500 के आसपास राजा जगत सिंह कठेरिया ने अपने शासनकाल में जगतपुर गांव की स्थापना की थी। बाद में उनके बेटे बांस देव और बरल देव ने विस्तार किया। वर्ष 1537 में एक कोट (किला) बनवाया और शहर को उन्नति के पथ पर सवार रखा।

    वह क्षेत्र अब पुराना शहर के नाम से जाना जाता है। बांस देव और बरल देव के बनवाए किले के द्वार अब भी हैं। उनके बाद शाहजहां के समय यहां के नाजिम व फौजदार मकरंद राय खत्री ने किला बनवाया था। बाद में इस क्षेत्र की पहचान किला मुहल्ले के नाम से होने लगी । उस किले की कुछ दीवारें आज भी हैं। किला थाना भी उसी परिसर में हैं।

    द्रौपदी की जन्मस्थली और रुहेलखंड का वैभव

    रुहेलखंड का इतिहास चार हजार साल से भी पुराना है। प्राचीन काल में यह पांचाल राज्य के उत्तरी पांचाल के रूप में, वौद्ध काल में 16 महाजनपदों में पांचाल जनपद, मध्य काल में कटेर या कटेहर और फिर ब्रिटिश काल में इसे रुहेलखंड के नाम से जाना जाने लगा।समय के साथ-साथ रुहेलखंड के भौगोलिक, आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक परिवेश में बदलाव आए लेकिन, आज भी इसका गौरवशाली इतिहास और सांस्कृतिक महत्व देश-दुनिया में जाना जाता है।

    कहा जाता है कि महाभारत काल में दुपद उत्तर पांचाल (अहिछत्र) व दक्षिण पांचाल ( काम्पिल्य) दोनों के राजा थे। उनकी पुत्री द्रौपदी का जन्म अहिच्छत्र में हुआ था। एक कथा के अनुसार, गुरु द्रोणाचार्य ने राजा द्रुपद को परास्त किया और आधे अहिच्छत्र के शासक बने। हालांकि उनका राज्य कौरव ही चलाया करते थे। द्रोणाचार्य तो सदा हस्तिनापुर में ही बने रहे।

    कौरव पांडवों का यहां अधिकार होने के कारण अहिच्छत्र का किला पांडव कालीन किला कहलाया। अहिच्छत्र अपने समय का प्रसिद्ध व्यावसायिक नगर था। यह काशी, पाटलिपुत्र, कौशांबी, मथुरा एवं तक्षशिला से जुड़ा था। यहां माला के मनके, हाथी दांत की गुडिया एवं खिलौने विशेष रूप से बनाए जाते थे। रामनगर में बनाया गया किला आज भी पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र बना हुआ है।

    रुहेलखंड रियासत की निशानी आंवला का किला

    रुहेलखंड रियासत की नींव रखने वाला आवंला का किला अब भी जीवंत है। इतिहासकार बताते हैं कि वर्ष 1730 के बाद नवाब अली मोहम्मद खां ने रुहेलखंड रियासत की स्थापना की। सहारनपुर के नाजिम सैफुद्दीन की बगावत के बाद मुरादाबाद के नाजिम को दिल्ली दरवार से आदेश आया कि वह नाजिम सैफुद्दीन को कब्जे (अधिकार) में लें। उन्होंने यहां के अली मो. खां को सहायता के लिए भेजा। अली मो. ने सहारनपुर के नाजिम पर विजय प्राप्त कर ली।

    बाद में उनके विरुद्ध भी आवाज उठने लगीं तो दिल्ली से राजा हरनंद सिंह को मो. अली खां को कब्जे (अधिकार) में लेने के लिए भेजा गया। मुरादाबाद के जारई में हुए युद्ध में राजा हरनंद सिंह मारे गए। रुहेलखंड रियासत पर नवाब मो . अली खां का अधिकार हो गया। आंवला के नवाब अली मोहम्मद ने 1737 से 1749 के मध्य अपने शासनकाल में किला का निर्माण कराया था, जो उनकी स्मृतियों को अब भी सहेजे हुए है।

    नवाब हाफिज रहमत खां का मकबरा अब भी जीवंत

    वरिष्ठ इतिहासकार प्रो. गिरिराज नंदन बताते हैं कि, रुहेला नवाब हाफिज खां का अवध के नवाब सुजाउद्दौला व अंग्रेजों से 23 अप्रैल 1774 को घनघोर युद्ध हुआ। उसमें नवाब हाफिज खां की मृत्यु हो गई थी। उनके पार्थिव शरीर को शहर के बाहर दफनाया गया, जो अब बाकरगंज के नाम से जाना जाता है।

    वर्ष 1775 में नवाब हाफिज रहमत खां के दीवान पहाड़ सिंह ने उनके मकबरे का निर्माण शुरू कराया था मगर, उनकी मृत्यु हो गई। जिसके बाद उस मकबरे को पूरा कराने का काम उनके बेटे जुल्फीकार खां ने किया। वर्ष 1819 में लाई मोरिया के आदेश पर एक गुम्बद, बड़ा गेट, मस्जिद, बनवाई गई।

    चीनी यात्री ह्वेनसांग ने भी किया है अहिच्छत्र का वर्णन

    सातवीं शताब्दी में महाराजा हर्ष के शासनकाल में अहिच्छत्र कन्नौज साम्राज्य का अंग था। उस काल में चीनी यात्री ह्वेनसांग ने भारत का भ्रमण किया था। उस समय अहिच्छत्र एक समृद्धशाली नगर था। वह यहां भी आया था जिसका अपने यात्रा वृत्तांत में वर्णन किया है। उसके अनुसार अहिच्छत्र एक वैभवशाली नगर था।

    उसके विवरण के अनुसार यह नगर 5.6 किमी में फैला हुआ था। यहां के निवासियों उसने सत्यनिष्ठ लिखा है। उन्हें धर्म और विद्याभ्यास से बहुत प्रेम था। उस समय अहिच्छत्र में 10 बौद्ध विहार और नौ देव मंदिर भी थे, जिनमें पाशुपत मत के मानने वाले 300 साधु रहते थे।