बदायूं की इंजीनियर बेटी पर गर्व से चौड़ा हुआ पिता का सीना, फेसबुक वाल पर लिखा- जरूरी नहीं कि रोशनी चिरागों से हो...
Badaun Ki Beti जरूरी नहीं कि रोशनी चिरागों से हो बेटियां भी घर में उजाला करती हैं। यह लाइनें भले ही किसी शायर की हों फिलहाल इन्हें बदायूं में परचून की दुकान चलाने वाले सुरेश चंद्र सक्सेना ने अपनी बेटी के लिए फेसबुक वाल पर लिखा है।
बरेली, अंकित गुप्ता। Badaun Ki Beti : जरूरी नहीं कि रोशनी चिरागों से हो, बेटियां भी घर में उजाला करती हैं। यह लाइनें भले ही किसी शायर की हों, फिलहाल इन्हें बदायूं जिले के छोटे से कस्बे के परचून दुकान सुरेश चंद्र सक्सेना ने अपनी इंजीनियर बेटी प्रियंका के लिए अपनी फेसबुक वाल पर उसकी फोटो के साथ लिखा है। इसके पीछे वजह थी, उनके सपनों की, उनके संघर्षों की। सपना वह जो बेटी के जन्म के बाद से देखते आ रहे थे, संघर्ष जो वह बेटी को सफलता के मुकाम पर पहुंचाने के लिए करते आ रहे थे। इसके लिए उनकी बेटी ने भी कोई कसर नहीं छोड़ी और वह कर दिखाया, जो पिता चाहते थे।
यह कहानी है बदायूं के छोटे से कस्बे म्याऊं के रहने वाले सुरेश चंद्र सक्सेना और उनकी बेटी प्रियंका की। कस्बे में परचून की दुकान चलाने वाले सुरेश चंद्र पर अपनी बेटी की पढ़ाई के अलावा घर का खर्च और बेटे की पढ़ाई की जिम्मेदारी भी थी। इन सब जिम्मेदारियों के साथ उन्होंने बेटी को इंजीनियरिंग कराई। इंजीनियरिंग पूरा करने करने के बाद वह घर लौटी और इजराइल की एक कंपनी में उसने ऑनलाइन आवेदन किया। कुछ ही दिन बीते थे कि इजराइल की साफ्टवेयर कंपनी एल्गोसेक के अधिकारियों ने घर पहुंच कर उसके सलेक्शन की बधाई दी। इतना ही नहीं घर में ही एक आफिस का सेटअप लगा कर दिया। कोरोना के प्रभाव रहने तक वह घर में ही रहकर कंपनी के लिए काम कर रही हैं।
बेटी ने गर्व से ऊंचा किया सिर
25 वर्ष पहले कस्बे में कोई अंग्रेजी माध्यम का स्कूल नहीं हुआ करता था। लेकिन सुरेश चंद्र सक्सेना की तमन्ना थी कि बेटी प्रियंका अंग्रेजी माध्यम स्कूल में ही पढ़े। इसके लिए उन्होंने अपनी बेटी को नाना के पास शाहजहांपुर भेज दिया, जहां प्रियंका ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा एक अंग्रेजी माध्यम स्कूल से ग्रहण की। हाइस्कूल और इंटरमीडिएट में टॉप करने के बाद बेटी के इच्छानुरूप पिता ने उसे कानपुर से बीसीए और गाजियाबाद से एमसीए कराया। इस बीच पिता सुरेश चंद्र ने कई बार मुसीबतों का सामना भी किया, लेकिन बेटी को इसका अहसास तक नहीं होने दिया। बेटी ने भी कोई कसर नहीं छोड़ी। उसने मेरा और पूरे परिवार का सिर गर्व से ऊंचा कर दिया।
सिर्फ इतना कहना चाहती हूं कि सभी को मेरे जैसे पिता मिले। छोटा कस्बा था कई बार लोगों ने उनसे कहा कि बेटी को विदा करना है क्यों इतनी पढ़ाई लिखाई करा रहे हो, लेकिन पिता ने किसी की बात पर ध्यान नहीं दिया। ध्यान दिया तो सिर्फ मेरी पढ़ाई पर। आज जो कुछ हूं अपनी पिता की बदौलत हूं। - प्रियंका सक्सेना