Bareilly: दुर्लभ बीमारी हार्लेक्विन इचथ्योसिस से बच्ची की गर्भ में हुई मौत, पांच लाख में एक को होता है ये रोग
Bareilly News हार्लेक्विन इचथ्योसिस बीमारी से ग्रसित शिशु का आकार सामान्य से बड़ा होता है इसलिए पहचान का एक रास्ता है। पांच से छह माह की गर्भावस्था में मां का थ्री डी अल्ट्रासाउंड करें तो अनुमान लगाया जा सकता है कि शिशु किस अवस्था में है?

जागरण संवाददाता, बरेली: मानस अस्पताल में दुर्लभ बीमारी हार्लेक्विन इचथ्योसिस ग्रसित मृत बच्ची का गुरुवार को प्रसव कराया गया। तेल ग्रंथियां न होने से उसकी त्वचा कई जगह से फट गई, खून निकल रहा था। पूरे शरीर पर परत चढ़ी थी, मुंह में सभी दांत और आंखें बाहर की ओर थीं। डॉक्टरों का कहना है कि इस तरह की बीमारी पांच लाख में किसी एक बच्चे को होती है।
बरेली मंडल में ऐसी कोई केस संज्ञान में नहीं बताया जा रहा। इस बीमारी के कारण से जुड़े तथ्य समझने के लिए डाक्टरों ने दो सैंपल लिए हैं। इनके आधार पर गुणसूत्रों एवं स्किन की जांच होगी। अस्पताल संचालक एवं स्त्री रोग विशेषज्ञ नीरा अग्रवाल ने बताया कि बुधवार रात को भोजीपुरा से आई गर्भवती को भर्ती किया था।
वह सात माह की गर्भवती थी मगर, पीड़ा अधिक होने पर गुरुवार को प्रसव की तैयारी की गई। अल्ट्रासाउंड में मृत शिशु होने की जानकारी पर सामान्य प्रसव कराया।
फोटोः डॉ. अतुल अग्रवाल
फोटोः डॉ. नीरा अग्रवाल
क्या इसका कोई उपचार है?
डॉ. अतुल बताते हैं कि यदि किसी तरह गर्भस्थ शिशु के इस बीमारी से ग्रसित होने की जानकारी मिल भी जाए तो उपचार नहीं है। ऐसे में एक ही रास्ता बचता है कि गर्भपात करा दिया जाए।
क्या जन्म से पहले पता लग सकता है?
गर्भ में पल रहे शिशु को क्या बीमारी है, इसकी जानकारी नहीं मिल सकती। हार्लेक्विन इचथ्योसिस बीमारी से ग्रसित शिशु का आकार सामान्य से बड़ा होता है, इसलिए पहचान का एक रास्ता है।
चिकित्सक बताते हैं कि यदि पांच से छह माह की गर्भावस्था में मां का थ्री डी अल्ट्रासाउंड करें तो अनुमान लगाया जा सकता है कि शिशु किस अवस्था में है, वह रूप से विकसित हो रहा या असामान्य है। भोजीपुरा की महिला का यह पहला शिशु था। दूसरी बार गर्भावस्था में महिला की कुछ जांचें होंगी, ताकि ऐसी पुनरावृत्ति न हो।
क्यों होती है यह बीमारी?
बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. अतुल ने बताया कि गर्भ में जीन्स में सही क्रम में बदलाव नहीं होने से शिशु का शारीरिक आकार, अंग आदि विकृत हो जाते हैं। कुछ अंग पूरी तरह बन भी नहीं पाते। ऐसी स्थिति में तेल ग्रंथियां नहीं बनतीं, जिससे त्वचा रुखी होती है। वह जगह-जगह से टूटने लगती और खून बहने लगता है। ऐसे अधिकतर बच्चों की जन्म से पूर्व या जन्म के समय ही मृत्यु हो जाती है।
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