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    अभिनेता राजपाल यादव बोले, ओटीटी पर कलाकारों के लिए अपार संभावनाएं, जरूरी है सेंसर का नियंत्रण

    राजपाल ने कहा ओटीटी पर अभी सेंसर का नियंत्रण कम है। यहां गाली गलौज हिंसा ज्यादा है। निर्देशक तर्क देते हैं कि वे सच्चाई दिखा रहे हैं। समाज में जो हो रहा है वह उसी तरह उसे पेश कर रहे हैं लेकिन मेरा मानना है कि यह सही नहीं है।

    By Vivek BajpaiEdited By: Updated: Mon, 13 Jun 2022 09:40 AM (IST)
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    अभिनेता यादव ने ओटीटी प्‍लेटफार्म को नए कलाकारों के लिए सुनहरा अवसर बताया।

    शाहजहांपुर, जेएनएन। बालीवुड हास्‍य अभिनेता राजपाल यादव ने अपनी नई फिल्‍म 'अर्ध' के साथ ओटीटी पर कदम रख दिया। फिल्‍म को लेकर अभिनेता ने दैनिक जागरण से खास बातचीत की। उन्‍होंने जहां ओटीटी को जहां नए कलाकारों के लिए एक खुला आसमान बताया, वहीं इस पर सेंसरशिप न होने के चलते चिंता भी प्रकट की। कहा कि ओटीटी पर भी सेंसर का नियंत्रण जरूरी है।

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    यह भी पढ़ें:- Actor Rajpal Yadav का 'अर्ध' के साथ ओटीटी पर आगाज, बोलेे- आम लोगों के संघर्ष की कहानी है यह फिल्‍म

    अर्ध ओटीटी पर राजपाल यादव की यह पहली फिल्म है। पहले रंगमंच, फिर टेलीविजन व फिल्म और अब ओटीटी, कैसा रहा अनुभव। इस सवाल पर राजपाल कहते हैं कि वह इस प्लेटफार्म के फैन हो गए हैं। क्योंकि यहां कलाकार के लिए अपार संभावनाएं हैं। नये लोगों के लिए अवसर बढ़ गए हैं। बालीवुड में जमे जमाए अभिनेताओं के आगे जगह बनाना जितना मुश्किल था। ओटीटी के रूप में उन लोगों को नया आकाश मिल गया है। अगर प्रतिभा के पंख हैं तो यहां ऊंची उड़ान उड़ सकते हैं। यहां आइपीएल की तरह है। जो खिलाड़ी प्रतिभा होते हुए भी अंतिम 11 में स्थान नहीं बना सकते थे वह अब बड़े खिलाड़ियों के साथ खेल रहे हैं। 

    अभिनेता राजपाल यादव कहते हैं कि ओटीटी निर्माता निर्देशकों की मुश्किलें कम की हैं। अब पर्दे पर रिलीज का इंतजार नहीं करना होता। एक बार फिल्म आने पर पूरा विश्व देख लेता है। हालांकि ओटीटी पर अभी सेंसर का नियंत्रण कम है। यहां गाली गलौज, हिंसा ज्यादा है। निर्देशक तर्क देते हैं कि वे सच्चाई दिखा रहे हैं। समाज में जो हो रहा है वह उसी तरह उसे पेश कर रहे हैं, लेकिन मेरा मानना है कि यह सही नहीं है। राजपाल यादव इस तरह की फिल्मों में नहीं दिखेंगे। साफ सुथरी और अच्छी फिल्म ही करेंगे। उन्‍होंने कहा कि ओटीटी प्‍लेटफार्म पर नियंत्रण लगने से अच्‍छी और सामाजिक फिल्‍मों को एक नई पहचान मिलेगी। साथ ही युुुवाओं भी नकारात्‍मक प्रभाव नहीं पड़ेगा।