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    नवजात के लिए ज्यादा आक्सीजन भी है खतरनाक

    By Edited By:
    Updated: Sun, 15 Apr 2012 09:06 PM (IST)

    यूपी नियोकॉन

    -आइएमए हाल में जुटे देश भर के बाल रोग विशेषज्ञ

    बरेली, जागरण संवाददाता : जन्म लेने वाले प्रति हजार बच्चों में से केवल एक से दो प्रतिशत बच्चों को ही ऑक्सीजन की जरूरत होती है। इनके अलावा कमरे में मौजूद आक्सीजन ही बच्चों के लिए पर्याप्त है, क्योंकि पहले दिन बच्चे का फेफड़ा आम इंसान की अपेक्षा केवल 20 प्रतिशत ही क्रियाशील होता है। ऑक्सीजन का इस्तेमाल दवा के रूप में किया जाता है, इसलिए इसकी ज्यादा मात्रा नवजात के लिए खतरनाक हो सकती है।

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    आइएमए में चल रही यूपी नियोकॉन में जुटे देश के वरिष्ठ बाल रोग विशेषज्ञ ने ऐसे कई जानकारियों का साझा किया। कहा कि नवजात मृत्यु दर कम करने के लिए मशीनों से ज्यादा ट्रेंड स्टाफ की जरूरत है। संसाधन भले ही कम हों, लेकिन यदि ट्रेंड स्टाफ है तो बच्चों की मृत्युदर को काफी हद तक कम किया जा सकता है। नेशनल नियोनेटोलॉजी फोरम के महासचिव डॉ. अजय गंभीर ने कहा कि देश में सबसे ज्यादा बच्चों का जन्म यूपी में ही होता है। साथ ही सबसे ज्यादा बच्चों की मृत्यु भी इसी प्रदेश में होती है। इस पर रोक के लिए नवजात शिशु सुरक्षा कार्यक्रम के जरिए स्टाफ को प्रशिक्षित किया जा रहा है, ताकि संसाधनों के अभाव में भी नवजात मृत्यु दर को कम किया जा सके।

    अंतिम दिन सेमिनार में पंद्रह से अधिक विशेषज्ञों ने नवजात शिशुओं की देखभाल, सूबे में इनकी मृत्यु दर कम करने के उपायों पर अपने विचार व्यक्त किए। विशेषज्ञों ने नवजात को जन्म के दो घंटे बाद से ही मां का स्तनपान भी शुरू कराने की बात पर जोर दिया। कहा कि इससे बढि़या सुपाच्य और पौष्टिक भोजन नवजात के लिए कुछ भी नहीं है। इस पर गौर किया जाए, इसके लिए समाज में जागरूकता लाने की बहुत जरूरत है। अपने देश में अभी भी बहुत सी जगह ऐसी है जहां पर बच्चे के जन्म के बाद चौबीस घंटे तक उसे मां का दूध नहीं पिलाया जाता है। इसमें गुड़गांव के डॉ. संजय बजीर, दिल्ली के डॉ. आशीष जैन, लुधियाना के डॉ. नवीन बजाज, प्रोफेसर विक्रम दत्ता दिल्ली, प्रोफेसर अशोक कुमार वाराणसी, प्रोफेसर अरविंद दिल्ली आदि ने विचार व्यक्त किए।

    आयोजन में डॉ. अतुल अग्रवाल, डॉ. गिरीश अग्रवाल, डॉ. केसी गुप्ता, डॉ. रवि खन्ना, डॉ. धमेन्द्रनाथ गुप्ता आदि का सहयोग रहा।

    सेप्टीसीमिया है नवजातों की मृत्यु का मुख्य कारण

    डीएम नियानेटोलॉजी डॉ. अमित उपाध्याय ने कहा कि यूपी में 28 दिन के नवजातों की मृत्यु दर 42 प्रतिशत है। इसमें सबसे अधिक बच्चों की मृत्यु सेप्टीसीमिया फिर जन्म के बाद ऑक्सीजन की कमी और प्री मैच्योरिटी से होती है। उन्होंने कहा कि सेप्टीसीमिया घर पर डिलीवरी या प्रसव के दौरान साफ सफाई पर ध्यान नहीं होने की वजह से होती है। इसलिए कोशिश रहे कि बच्चों का जन्म अस्पताल में ही कराया जाए। साथ ही जन्म के तुरंत बाद ही मां का दूध नहीं मिलने से भी बच्चों के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल असर पड़ता है। इससे उनमें रोग प्रतिरोधक क्षमता विकसित नहीं हो पाने से इंफेक्शन होने की संभावना रहती है।

    बच्चों के गुर्दे में आई खराबी भविष्य में भी करती है परेशान

    बच्चों के गुर्दारोग विशेषज्ञ डॉ. एएस वासुदेव ने कहा कि बच्चों के गुर्दे सामान्य तौर पर मां की बीमारी, गर्भावस्था दौरान ली गई दवा के साइड इफैक्ट या गर्भ में पानी की कमी से होती है। इससे पीड़ित बच्चों के शरीर पर सूजन होती है और पेशाब देर से आती है। ऐसे लक्षण दिखने पर बच्चों को तत्काल चिकित्सक को दिखाना चाहिए। उन्होंने कहा कि इस बीमारी से पीड़ित 40 फीसदी से अधिक बच्चों की मृत्यु हो जाती है। बचने वाले बच्चों में भविष्य में भी इसी प्रकार की समस्या से पीड़ित रहने की संभावना रहती है। इसके अलावा प्री मैच्योर बेबी जो लंबे समय तक नर्सरी में रहते है। वह भी गुर्दा रोग से पीड़ित हो सकते है।

    दिमागी रूप से कमजोर भी हो सकते है बच्चे

    डॉ. आशीष जैन ने कहा कि यूपी में एक साल से नीचे के बच्चों की मृत्यु दर 70 प्रतिशत है। इसमें से भी जन्म के तुरंत बाद नहीं रोने वाले बच्चों की मृत्यु दर 21 प्रतिशत है। इसलिए नवजात शिशु सुरक्षा कार्यक्रम द्वारा स्टाफ को ट्रेंड किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि ऐसी परिस्थितियों वाले जो बच्चे बच जाते हैं कि उनके दिमाग में ऑक्सीजन की कमी होने से दिमागी रूप से असक्षम होने की संभावना रहती है।

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