सर्व धर्म समभाव से होगा महान भारत का निर्माण
हमारा देश धर्म निरपेक्ष है। यहां प्रत्येक धर्म, संप्रदाय, जाति, वर्ण आदि के व्यक्तियों को अपनी मान्य
हमारा देश धर्म निरपेक्ष है। यहां प्रत्येक धर्म, संप्रदाय, जाति, वर्ण आदि के व्यक्तियों को अपनी मान्यताओं के अनुरूप धर्म या संप्रदाय अपनाने तथा इच्छानुसार पूजा पाठ करने का संवैधानिक अधिकार है। प्राचीन काल में राज्य का प्रतिनिधि राजा होता था और राजा के धर्म को ही राज धर्म माना जाता था। सदियों तक राज्य और धर्म का संबंध राजा पर ही आश्रित रहा। यही वजह रही कि संविधान का निर्माण करने के दौरान भारत के सभी धर्मो के हितों को ध्यान में रखकर धर्म निरपेक्ष शासन की घोषणा की गई। आज की राजनीति में धर्म का स्थान व्यापक बना दिया गया है। अब मानव धर्म को विश्व के सभी देश मान रहे हैं, भारतीयता का मूल मंत्र यही है। इसका प्रसार पूरी दुनिया कर रही है लेकिन, अफसोस की बात यह है कि लोगों के मन से दूसरे के धर्म के प्रति सम्मान खत्म हो रहा है। हमारे देश में सर्वत्र एकदूसरे के धर्म और संप्रदायों को भला बुरा कहा जाता है। यही नहीं, कभी-कभी तो सर्व धर्म समभाव वाले भारत में लोग विपरीत धर्मावलंबियों का नुकसान पहुंचाने में भी पीछे नहीं हटते। आज हमारे देश के लोगों को इससे ऊपर उठकर सोचने की जरूरत है, जिससे महान भारत का निर्माण कर सकें।
धर्म का वास्तविक स्वरूप लोगों को जोड़ना
धर्म लोगों को जोड़ने का काम करता है, क्योंकि इससे लोग एक स्थल पर एकत्र होकर पूजा और इबादत करते हैं। हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, बौद्ध आदि सभी धर्माें के प्रवर्तकों ने धर्म का मूल उद्देश्य ईश्वर अथवा मुक्ति को प्राप्त करना बताया है। इसके लिए वे मन की पवित्रता, ईश्वर की आराधना, आचार एवं विचारों में शुद्धता, मानव मात्र से प्रेम आदि पर बल देते हैं। कोई भी धर्म एवं संप्रदाय ¨हसा का समर्थन नहीं करता है। यही वजह है कि हमारे देश में प्रत्येक मनुष्य को अपने धर्म एवं मजहब के अनुसार जीवन यापन करने की सुविधा मिली हुई है। समस्त योनियों में मानव योनि को सर्वश्रेष्ठ मानी गई है। इसकी वजह यह है कि मनुष्य में धार्मिकता होती है।
आपस में कटुता बढ़ा रहे नेता
धर्म के लौकिक एवं आध्यात्मिक दोनों पक्षों का पालन राज्य के लिए आवश्यक है। यहां राजा और प्रजा के सिद्धांत व्यापक और शाश्वत हैं। शासक वर्ग के चरित्र और कार्य व्यवहारों का प्रजा पर गहरा प्रभाव पड़ता है। जनता अपने राजा और नेताओं अनादिकाल से अनुसरण करती चली रही है। आज हमारे देश में सांप्रदायिकता और तनाव फैला हुआ है, जिसमें देश के कुछ नेता और धर्म गुरुओं का स्वार्थ सिद्धि छिपी हुई है। वे अपने पद के मोह में विभिन्न धमरें के अनुयायियों में कटुता बढ़ा रहे हैं। इससे देश में सांप्रदायिकता बढ़ रही है और आपसी सदभाव कम हो रहा है। अब जरूरत इस बात की है कि हम सभी धर्मो का समान रूप से आदर करें और किसी की धार्मिक भावनाएं भड़काए या ठेस पहुंचाए बिना जीवन यापन करें, क्योंकि
मजहब नहीं सिखाता,
आपस में बैर रखना
¨हदी है हम वतन,
¨हदोस्तां हमारा ..
वहीं, कबीरदास जी ने कहा कि
सौ ¨हदू, सौ मुसलमान
जिनका दुरुस्त रहे ईमान
-फराह, कक्षा 12,
-इस्लामिया गर्ल्स इंटर कॉलेज,
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