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    परोपकारी बनिए, इंसानियत को जिंदा रखिए

    बरेली: परोपकराय फलंति वृक्षा: परोपकाराय वहन्ति नद्य:। परोपकाराय दुहन्ति गाव: परोपकारार्थ मिदं शरीरम।

    By Edited By: Updated: Mon, 28 Sep 2015 08:44 PM (IST)

    बरेली: परोपकराय फलंति वृक्षा: परोपकाराय वहन्ति नद्य:। परोपकाराय दुहन्ति गाव: परोपकारार्थ मिदं शरीरम। संस्कृत के इस श्लोक का मतलब है कि परोपकार के लिए वृक्ष फल देते हैं। नदियां बहती हैं। गाय दूध देती है और यह शरीर भी परोपकार के लिए है। इससे साफ पता चलता है कि संसार में परोपकार का कितना महत्व है। नदी, वृक्ष से लेकर पशु सब परोपकार में लगे हैं। सवाल उठता है कि जब ये सब परोपकार कर रहे हैं तो क्या हम मनुष्यों को पीछे रहना चाहिए। जबकि मनुष्य संसार का सर्वश्रेष्ठ प्राणी माना गया है। क्योंकि हमारे पास सोचने और समझने की क्षमता सबसे ज्यादा है। परोपकार एक ऐसा विषय है, जिसका दायरा बहुत व्यापक है। इसका शाब्दिक अर्थ है कि दूसरों की बिना किसी स्वार्थ के सहायता करना। यह सहायता नाना रूपों में हो सकती है। कोई भूखा है तो उसके लिए भोजन की व्यवस्था कर देना और बाद में वह भोजन की व्यवस्था खुद कर सके इसके लायक बना देना। न कि उसे अपने या दूसरे के ऊपर आश्रित कर देना। कोई शारीरिक रूप से अशक्त है तो मौका पड़ने पर उसकी मदद करना। कोई बच्चा गरीबी के कारण शिक्षा हासिल करने से चूक रहा है तो उसकी शिक्षा का बंदोबस्त कर देना। कोई बीमार है और इलाज कराने में सक्षम नहीं है उसके इलाज का प्रबंध करना। कोई दबा-कुचला या शोषित किसी का सताया हुआ है तो उसकी सक्षम स्तर तक पैरवी कर न्याय दिलाना। ये सब परोपकार के उदाहरण हैं। परोपकार एक मानवीय गुण ही नहीं बल्कि संस्कार है। यह हमारे अंदर इंसानियत के भाव जगाता है।

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    पारुष अरोड़ा, चेयरमैन, पद्मावती स्कूल

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    जो संवेदनशील वही परोपकारी

    जब तक किसी के अंदर जरा भी संवेदनशीलता नहीं होगी तब तक उसमें परोपकार के गुण नहीं होंगे। संवेदनशीलता के कारण ही हम दूसरों की मदद करने के बारे में सोचते हैं। इस नाते जरूरी है कि हम पहले संवेदनशील बनें।

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    घर में दें माहौल

    बच्चे जो देखते हैं वहीं करते हैं। इस नाते घर में हमें ऐसा माहौल देना चाहिए, जिससे बच्चे भी प्रेरित हो सकें। बच्चों को घर में न केवल परोपकार के बारे में बताएं बल्कि उनके सामने करके दिखाएं भी। जब बच्चे अपने मां-बाप को किसी की नि:स्वार्थ भाव से मदद करना देखेंगे तो वे भी स्वत:स्फूर्त भावना से दूसरों की मदद करेंगे।

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    स्कूल में मिले परोपकार की शिक्षा

    घर के बाद बारी स्कूलों की आती है। स्कूलों में बच्चों को आम पाठ्यक्रम के अलावा नैतिक शिक्षा के तहत परोपकार की शिक्षा जरूर देनी चाहिए। भारतीय इतिहास के उन महापुरुषों के बारे में बताना चाहिए जिन्होंने परोपकार के लिए अपना जीवन भी दांव पर लगा दिया। राजा दिलीप को कौन भूल सकता है, उन्होंने शेर के चंगुल में फंसी गाय को बचाने के लिए अपने शरीर को आहार बनाने का प्रस्ताव भी शेर के सामने रख दिया था। तब देवता उनके परोपकार की परीक्षा ले रहे थे, जिसमें वे सफल रहे। इसी तरह महर्षि दधीचि, कर्ण सहित तमाम दानवीर हैं। जो अपने परोपकार के लिए जाने जाते हैं।

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    अभिभावक की बात

    बच्चों को परोपकार के बारे में सिर्फ बताया न जाए बल्कि करके दिखाया जाए। तभी वे परोपकार की भावना को बखूबी समझ सकेंगे। बच्चों को संवेदनशील बनाएं। बच्चों को बताएं कि उनकी छोटी सी मदद से किस प्रकार लोगों का जीवन सुधर सकता है। जब बच्चे घर के लोगों को परोपकार करते देखेंगे तो निश्चित तौर पर वे दूसरों की नि:स्वार्थ भाव से मदद करने की कोशिश करेंगे।

    पिंकी तवर, अभिभावक