बलात्कारी को संगसार करने का हुक्म
बरेली: शरीयत में जिनाकार (बलात्कारी) को संगसार करने का हुक्म है, यानी उस पर तब तक पत्थर बरसाए जाएं, जब तक कि सांस का जिस्म से रिश्ता न टूट जाए। यह फतवा दरगाह आला हजरत की मरकज न्यूज से जारी किया गया है, जिसे दिल्ली के चर्चित दुष्कर्म कांड की रोशनी में मांगा गया था। सवाल यह था कि इस्लाम बलात्कारियों के लिए क्या सजा मुतय्यन (तय) करता है?
दिल्ली में जाकिर नगर के रहने वाले नासिर खां और मुहम्मद इकबाल जानना चाहते थे कि जिनाकारी पर इस्लाम का क्या नजरिया है? क्या जिना हराम है या ऐसा करने वाले को माफ भी किया जा सकता है? आला हजरत दरगाह में चलने वाले मदरसा मंजर ए इस्लाम के मुफ्ती जमील खां ने इस अहम मसले पर फतवा जारी कर दिया है। उन्होंने कहा है कि इस्लाम में जिना को हराम करार दिया गया है। इस हराम काम को करने वाले पर अल्लाह लानत फरमाता है। शरीयत ने ऐसे शख्स के लिए मौत की सजा तय की है। अगर जिना करने वाला शादीशुदा है तो उसे सब मिलकर संगसार करेंगे। तब तक पत्थर मारते रहेंगे, जब तक कि वह मर न जाए। शादीशुदा नहीं है तो उसे 100 कोड़े मारे जाने का हुक्म है। इतने कोड़ों से अगर मर जाता है तो उसे शरीयत के एतबार से सुपुर्द ए खाक कर दिया जाए। जिंदा रहे तो कोड़ों से बने जख्म का वह खुद इलाज कराएगा।
मुफ्ती कहते हैं, जिना करते वक्त मर्द, औरत या लड़का, लड़की पकड़े जाते हैं और यह हराम काम दोनों की मर्जी से हो रहा है तो सजा के हकदार दोनों होंगे। लड़की से जबर्दस्ती हुई है तो अकेले लड़का ही कसूरवार होगा। सजा उसे ही मिलेगी। मुफ्ती जमील खां ने फतवे में यह भी साफ किया है कि शरीयत के मुताबिक यह सजा वहीं दी जा सकती है, जहां इस्लामी कानून राइज (लागू) है। जिनाकार को एक सूरत में माफी भी दी जा सकती है। किसी ने अगर जिना किया और इसका किसी को पता नहीं है। अब अगर जिना करने वाला अपने गुनाह पर शर्मिदा होकर इसका एतराफ (स्वीकारोक्ति) खुद करता है तो हाकिम को इख्तेयार है कि उसे माफ कर दे।
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