17 साल बाद श्रीराम स्वरूप मेमोरियल विश्वविद्यालय जमीन की पैमाइश शुरू, अब खुली प्रशासन की नींद
बाराबंकी में श्रीराम स्वरूप मेमोरियल विश्वविद्यालय पर सरकारी जमीन कब्जाने का आरोप है। ग्राम प्रधान ने कई बार अधिकारियों से शिकायत की लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई। विश्वविद्यालय ने धीरे-धीरे ग्राम समाज की दो हेक्टेयर जमीन पर कब्जा कर लिया। छात्रों के विवाद के बाद प्रशासन ने जमीन की पैमाइश शुरू कर दी है। प्रधान ने अधिकारियों को कई बार पत्र लिखा पर कार्रवाई नहीं हुई।

संवाद सूत्र, जागरण बाराबंकी। श्रीराम स्वरूप मेमोरियल विश्वविद्यालय ने 17 वर्षों से सरकारी जमीन पर कब्जा कर रखा है। ग्राम प्रधान लगातार अफसरों के चक्कर काटते रहे, लेखपाल से लेकर उपजिलाधिकारी तक के समक्ष कई बार कब्जे छुड़वाने की गोहार लगाई, लेकिन किसी ने कोई सुनवाई नहीं की।
धीरे-धीरे विश्वविद्यालय ने ग्राम समाज की दो हेक्टेयर जमीन अपने कब्जे में कर ली। प्रधान ने पांच बार अधिकारियों को चिट्ठी लिखी, लेकिन कार्रवाई शून्य रही। छात्रों से विवाद के बाद प्रशासन को अब पैमाइश कराने की याद आई और शनिवार से नाप-जोख शुरू हो गई।
श्रीराम स्वरूप मेमोरियल विश्वविद्यालय परिसर में दो सितंबर को छात्रों और अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के कार्यकर्ताओं पर लाठी चार्ज के बाद कार्रवाई शुरू हुई है। पुलिसकर्मियों पर कार्रवाई के बाद अब विश्वविद्यालय की ओर से ग्राम समाज की जमीन कब्जाने का मामला सामने आया है, जिसकी नाप-जोख शुरू कर दी गई है। उपजिलाधिकारी आनंद तिवारी ने बताया कि जमीन की पैमाइश कराई जा रही है।
वर्षों दौड़ते रहे प्रधान, कब्जा कर ली गई जमीन : विकास खंड देवा के खूजर गांव के प्रधान रामनाथ यादव प्रधान संघ के ब्लाक अध्यक्ष है। इन्होंने 23 अप्रैल 2025 को उपजिलाधिकारी नवाबगंज को पत्र लिखा और एसडीएम से मिलकर पत्र दिया। प्रधान का आरोप था कि श्रीराम स्वरूप मेमोरियल विश्वविद्यालय ने ग्राम समाज, दो तालाब और चकमार्ग, नाली की जमीन पर कब्जा करना चाहते हैं। कुछ जमीन पर कब्जा कर लिया है।
उन्होंने बताया कि जमीन की कब्जेदारी में लेखपाल शामिल है, लेकिन एसडीएम ने एक भी न सुनी। ग्राम प्रधान ने बताया कि इसके बाद 24 अप्रैल को अपर जिलाधिकारी को पत्र दिया। 29 अप्रैल को राजस्व परिषद के अध्यक्ष को पत्र लिखा गया।
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इसी दौरान विश्वविद्यालय ने सरकारी जमीन पर कब्जा कर लिया। लगभग दो हेक्टेयर जमीन पर टीनशेड डालकर श्रमिकों के रुकने के लिए स्थान बना दिया। फिर 20 मई को उपजिलाधिकारी को पत्र लिखा, लेकिन तहसील प्रशासन ने संज्ञान नहीं लिया।
पूर्व प्रधान रानी ने भी वर्ष 2013 में शिकायत की, लेकिन संज्ञान नहीं लिया गया था। अब विवाद होने के बाद चर्चा में विश्वविद्यालय की जमीन की पैमाइश कराई जा रही है।
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