पोटाश की किल्लत, ने बढ़ाई एनपीके खाद की मांग
बाराबंकी : पोटाश की किल्लत ने एनपीके खाद की मांग बढ़ा दी है। आलू व सरसों बोने वाले किसान अभी से एनपीके खाद खरीद कर डंप करने लगे हैं। इससे डीएपी की मांग घटी है। एनपीके खाद में नाइट्रोजन, फास्फोरस व पोटेशियम का मिश्रण होता है, जबकि डीएपी में नाइट्रोजन व फास्फेट का मिश्रण होता है। डीएपी के साथ पोटाश किसानों को मिलानी पड़ती है। गेहूं की फसल में सीधे डीएपी डालने से ही काम चल जाता है, लेकिन आलू, सरसों व केला की फसल में एनपीके का उपयोग बेहतर माना जाता है। पोटाश 50 किलो की एक बोरी 1700 रुपये, डीएपी 1350 व एनपीके 1470 की मिलती है। डीएपी व पोटाश अलग-अलग खरीदने से किसानों पर आर्थिक बोझ भी ज्यादा पड़ता है। इसलिए बीच के विकल्प के रूप में एनपीके खाद किसानों की पहली पसंद बन गई है। इस समय एनपीके तीन तरह की 12:32:16, 10:26:26 व 15:15:15 आती है। इसका आशय क्रमश : नाइट्रोजन, फास्फोरस व पोटेशियम की मात्रा से है। किसान 12:32:16 को ज्यादा पसंद करते हैं। इस समय एनपीके खाद की जरूरत नहीं है फिर भी इसकी मांग का अनुमान कृषि विभाग के आंकड़े से पता चलता है। खरीफ में एनपीके खाद का कुल लक्ष्य 27,013 मीट्रिक टन है। अगस्त तक का लक्ष्य 13,240 मीट्रिक टन है। इसके सापेक्ष बिक्री केंद्रों पर 11,140 मीट्रिक टन है। 5,879 मीट्रिक टन का वितरण हो चुका है। जिला कृषि अधिकारी संजीव कुमार का कहना है कि पोटाश की कमी के चलते उसके दाम भी ज्यादा हैं। पोटाश मांग के सापेक्ष मिल भी नहीं पा रही है। इसलिए एनपीके खाद किसानों के लिए बेहतर विकल्प है। विदेश से आती है पोटाश व फास्फोरस : पोटाश व फास्पोरस खाद विदेश से आती है। इसलिए इसका दाम महंगा है। इसीलिए एक बोरी डीएपी खाद पर सरकार किसानों को 2600 रुपये सब्सिडी देती है। तब जाकर 1470 रुपये की बोरी किसान को मिलती है।
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