मनुष्य अपने मन में शुद्धि और पवित्रता को धारण कर लोभ का करता त्याग
बाराबंकी शरीर को शुद्ध करना जितना जरूरी है उतना ही मन का भी शुद्धीकरण जरूरी है। ...और पढ़ें

बाराबंकी : शरीर को शुद्ध करना जितना जरूरी है उतना ही मन का भी शुद्धीकरण जरूरी है। लेकिन, मनुष्य नित्य क्रिया कर अपने बाह्य शरीर को तो शुद्ध करता है कितु अंत:करण को शुद्ध नहीं करता। दसलक्षण धर्म में अन्त:मन को शुद्ध करने के लिए शौच धर्म का पालन करना बताया गया है। यह बात ़फतेहपुर के त्यागी भवन में दसलक्षण धर्म के चौथे दिन सोमवार को आर्यिका विकाम्या श्री ने कहीं।
उन्होंने कहा कि शौच धर्म का अर्थ है मन के अंदर में व्याप्त गंदगी को धोना। जो मनुष्य अपने मन में शुद्धि और पवित्रता को धारण कर लोभ का त्याग करता है वह संसार में अनेक सुख की अनुभूति करता है। इसलिए सभी को लोभ का त्याग करना चाहिए। पार्श्वनाथ दिगम्बर जैन मंदिर में सोमवार की सुबह भगवान बाहुबली का मस्तकाभिषेक व पूजन-आरती की गई। शाम को गुरु वंदना, प्रश्नमंच व प्रतियोगिताएं भी हुईं। विजेताओं को समाज की ओर से पुरस्कृत किया गया। बेलहरा कस्बे के श्री चंद्र प्रभु दिगंबर जैन मंदिर में भी दसलक्षण धर्म में शौच धर्म मनाया गया। चंद्र प्रभु भगवान का चालीसा पाठ, मंगल आरती की गई। जैन समाज बेलहरा के अध्यक्ष अरविद जैन, मनोज जैन, उमेश जैन, जैन कुमार जैन, रजत जैन, आशीष जैन, विनोद जैन आदि मौजूद रहे। 'श्रीराम के आदर्शों से लें प्रेरणा' हैदरगढ़ : प्रभु श्रीराम मर्यादा पुरुषोत्तम हैं। मर्यादित जीवन जीने के लिए उनके आदर्शों को अपनाना चाहिए। यह विचार अवसानेश्वर महादेव मंदिर परिसर पर श्रीराम कथा में कथावाचिका संगीता सिंह शास्त्री ने व्यक्त किए। संजय गिरि, विपिन गिरि, सियानंद गिरि, राकेश सिंह, अंजनी यादव, सरदार गिरी, राम गिरि, उदयराज, मुन्ना गोस्वामी मौजूद रहे।

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