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    दो वर्षों में बढ़े प्रीमेच्योर डिलीवरी के मामले

    By JagranEdited By:
    Updated: Fri, 27 May 2022 12:54 AM (IST)

    जिला चिकित्सालय में प्रत्येक वर्ष होती है 16 से 20 बचों की प्रीमेयोर डिलीवरी जिला महिला चिकित्सालय में वर्ष भर में करीब 70 प्रतिशत केस सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र से रेफर होकर आते

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    दो वर्षों में बढ़े प्रीमेच्योर डिलीवरी के मामले

    बाराबंकी : कोरोना काल में जांच न करवा पाने व अन्य कारणों से प्रीमेच्योर बच्चों की डिलीवरी बढ़ी है। जिला चिकित्सालय में इनबोर्न और रेफर होकर बड़ी संख्या में प्रीमेच्योर बच्चे आते हैं। आंकड़ों के अनुसार जिला महिला चिकित्सालय पर वर्ष भर में करीब 70 प्रतिशत सीएचसी, पीएचसी व निजी अस्पतालों में रेफर होकर केस आते हैं। इसके अलावा इनबोर्न में करीब 30 प्रतिशत लोग रहते हैं। यानि वर्ष भर में 300 से 400 के मध्य जिले में प्रसूताओं की डिलीवरी होती है। इनमें से करीब 20 बच्चे प्रीमेच्योर होते हैं।

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    प्रीमेच्योर बच्चों के फेफड़े नहीं होते डेवलप:

    जिला महिला चिकित्सालय के सीएमएस डा. प्रदीप श्रीवास्तव का कहना है कि प्रीमेच्योर बच्चों के फेफड़े डेवलप नहीं होती है। उनका वजन भी कम होता है। सांस लेने में बच्चों को तकलीफ होती है। ऐसे में प्रसव गर्भावस्था के 37 सप्ताह पूरे करने से पहले ही हो जाते है। इसके प्रीटर्म या प्रीमेच्योर बर्थ भी कहा जाता है।

    समय से पहले प्रसव के कई कारण: इस संबंध में सीएमओ डा. रामजी वर्मा का कहना है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार नवजात की मृत्य का सबसे बडा कारण प्रीमेच्योर बर्थ ही है। समय से पहले प्रसव कई कारणो से हो सकता है। मेडिकल कंडीशन में यह वर्ष 18 से कम या 35 वर्ष से अधिक उम्र के बाद की गर्भावस्था, पिछली गर्भावस्था में प्रीमेच्योर डिलीवरी होना, मधुमेह, पोषक तत्वों की कमी, किसी प्रकार का संक्रमण आदि के कारण होता है। सीएचसी पर न्यू बोर्न स्टबलाइजेशन यूनिट स्थापित है। जिला चिकित्सालय पर सिक न्यू बोर्न केयर यूनिट स्थापित है। यहां पर प्रसव के बाद बच्चों की देखरेख बेहतर ढंग से की जाती है।