मास्टर डिग्री से परंपरागत रोजगार को धार
एमबीए की डिग्री लेकर गुड़ से बनाने लगे देसी बर्फी
श्रीकांत तिवारी, रामसनेहीघाट (बाराबंकी) : शिक्षा का मकसद सिर्फ नौकरी पाना नहीं, बल्कि स्वरोजगार को अपनाकर इसे बढ़ावा देना भी है। रामसनेहीघाट क्षेत्र के ग्राम बैसनपुरवा निवासी अखिलेश कुमार ने एमबीए की डिग्री हासिल करने के बाद परंपरागत रोजगार को ही धार देना मुनासिब समझा। अब वह गुड़ की बर्फी बनाकर चार से पांच लाख रुपये एक साल में कमा लेते हैं। वे पिता के गुड़ बनाने के ही कार्य को आगे बढ़ाने का काम कर रहे हैं।
इस तरह से बना रहे बर्फी
अखिलेश ने गुड़ से मसाला बर्फी बनाने का नायाब तरीका निकाला है। तिल, सोठ, मेवा मिलाकर गुड़ से देसी बर्फी तैयार की है, जो बाजार में गुड़ के भाव से तीन से चार गुना महंगा बिक रहा है। अखिलेश के पिता गन्ना पिराई कर गुड़ बनाकर 50 रुपये में बेचते थे। अखिलेश ने इसे नया कलेवर देते हुए बर्फी का रूप दिया जो डेढ़ सौ से लेकर दो सौ रुपये किलो बेच रहे हैं।
पैकिग कर बेचते हैं मसाला बर्फी
अखिलेश बताते है कि गन्ना की पेराई कर रस को बड़े बर्तन में लेकर भट्टी पर गर्म किया जाता है। जब रस गुड़ के आकार में आ जाता है तो मानक के अनुसार मिश्रित मसाला मिलाकर उसे बर्फी के सांचे में डाला जाता है। बाद में उसकी पैकिग 500 ग्राम व एक किलोग्राम के डिब्बों में कर बेच जाता है। साथ ही राब, खांड, सिरका, भी बनाकर बेचते हैं। जो प्राकृतिक रूप से शुद्ध गन्ने से तैयार किया जाता है। सीजन भर में चार से पांच लाख रुपये तक मुनाफा कमा ले रहे हैं।
पिता को अकेले देख छोड़ी नौकरी
अखिलेश यादव के पिता प्रेमसागर गन्ना की पेराई कर गुड़ बनाकर बेचते थे। इस बीच उनकी माता का निधन हो गया। पिता को अकेले देख नौकरी छोड़ दी और उनके ही काम में हाथ बंटाने लगे। अखिलेश ने गुड़ को बर्फी का रूप देते हुए दुकानदारों से संपर्क स्थापित किया। जिसे दुकानदारों ने हाथों-हाथ लिया, और उनका काम चल निकला।
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