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    मजीठा मेला शुरू, नाग बाबा के जयकारों से गूंजा माहौल

    By JagranEdited By:
    Updated: Sun, 09 Jul 2017 12:30 AM (IST)

    बाराबंकी : मजीठा के नाग देवता मेले में रविवार को आषाढ़ की गुरु पूर्णिमा पर श्रद्धालुओं का सैलाब उमड़े ...और पढ़ें

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    मजीठा मेला शुरू, नाग बाबा के जयकारों से गूंजा माहौल

    बाराबंकी : मजीठा के नाग देवता मेले में रविवार को आषाढ़ की गुरु पूर्णिमा पर श्रद्धालुओं का सैलाब उमड़ेगा। शनिवार को भाजपा सांसद प्रियंका ¨सह रावत ने समारोहपूर्वक फीता काट कर मेले का उद्घाटन किया। इस अवसर पर उन्होंने तालाब का सुंदरीकरण कराने और मंदिर के पीछे खड़ंजा मार्ग का चौड़ीकरण कराकर सड़क बनाने का आश्वासन दिया।

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    मजीठा में वर्षों से नाग देवता का मेला लगता चला आ रहा है। मेले में जिले के साथ ही अन्य दूरदराज के क्षेत्रों से भी बड़ी संख्या में श्रद्धालु आते हैं। इस अवसर पर नाग बाबा के मठ पर दूध चावल चढ़ाकर मनौती मांगते हैं। आषाढ़ पूर्णिमा की रात से भारी सैलाब उमड़ने लगता है। यहां दिन में इतनी अधिक भीड़ जुटती है कि बाराबंकी-हैदरगढ़ मार्ग सहित अन्य मार्गों पर जाम जैसे हालात बने रहते हैं। मेला क्षेत्र में बगैर धक्का मुक्की के निकलना आसान नहीं रहता है।

    उद्घाटन मौके पर सांसद ने कहा कि नाग देवता का ऐतिहासिक मंदिर हजारों लोगों की आस्था से जुड़ा है। यहां सर्पदंश से पीड़ितों को जीवन मिलता है। मेला क्षेत्र की हर जरूरत पूरी करने का प्रयास किया जाएगा। उन्होंने मंदिर के निकट बने तालाब का सौदर्यीकरण कराने और खड़ंजा मार्ग पर सड़क बनवाने का आश्वासन दिया। इस मौके पर विधायक उपेंद्र ¨सह रावत, भाजपा नेता सुधीर कुमार ¨सह, मेला समिति के अध्यक्ष देवकीनंदन वर्मा, लालता प्रसाद, प्रधान प्रतिनिधि उमेश गौतम, पुष्पेंद्र कुमार, राजबहादुर वर्मा, सत्यनाम सहित अन्य लोग मौजूद थे।

    इसलिए लगता है मेला

    मजीठा में जिस स्थान पर नाग देवता का भव्य मंदिर बना है, वहां कभी घना जंगल हुआ करता था। उस जंगल में विषैला सर्प रहता था। वह कई लोगों का डस चुका था। सर्प के भय से लोग जंगल के किनारे भी नहीं जाते थे। मेला समिति के अध्यक्ष देवकीनंदन वर्मा बताते हैं कि एक दिन साधु के भेष में महात्मा बुद्ध जंगल की ओर से गुजरे। उस समय वहां कुछ लोग जानवर चरा रहे थे। महात्मा बुद्ध को सर्प का हवाला देकर जंगल में जाने से रोका।

    बताया जाता है कि यह बात सुनकर महात्मा बुद्ध मुस्कुराए और जंगल में चले गए। काफी देर तक वापस नहीं लौटे तो चरवाहों को ¨चता हुई। सोचा बाबा भी सर्प का शिकार बन गए ¨कतु थोड़ी देर बात वह मुस्कराते हुए सर्प के साथ जंगल के बाहर निकले। चरवाहों के साथ ही गांव वालों को भी मौके पर बुलवाया। उनसे सांपों पर जुल्म न करने का वचन लिया।

    महात्मा बुद्ध ने ग्रामीणों से कहा कि मैंने सर्प को दूध पिलाकर उसके गुस्से को शांत कर दिया है। अब यह मनुष्यों को डसेंगे नहीं, बल्कि उनका कल्याण करेंगे। इसके बाद सर्प जंगल में चला गया और महात्मा बुद्ध विलुप्त हो गए। तभी से मजीठा में मेला लगना शुरू हो गया। वर्तमान में नाग देवता का भव्य मंदिर बना हुआ है। इसमें नाग बाबा की बांबी (मठ) है। श्रद्धालु मिट्टी की छोटी-छोटी मटकियों में दूध चावल भरकर मठ पर चढ़ाकर मनौती मांगते हैं। मान्यता है कि अषाढ़ की पूर्णिमा को दूध चावल चढ़ाने से मनोकामनाएं अवश्य पूर्ण होती हैं। मटकी को प्रसाद स्वरूप श्रद्धालु घरों में ले जाकर चारों कोनों में रख देते हैं। उनका कहना है कि मटकी घर में होने से सर्प नहीं आते हैं।