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    ...तो क्या हर रोज 3 लाख लीटर दूध के जरिए बंट रहा ‘जिदंगी का जहर’, यूपी के इस जिले में बड़े पैमाने पर हो रही मिलावट

    Updated: Tue, 20 May 2025 08:34 PM (IST)

    बांदा जिले में दूध के उत्पादन और खपत में भारी अंतर है जिसके चलते मिलावटी दूध का कारोबार फलफूल रहा है। त्योहारों के समय मिलावट और भी बढ़ जाती है जिससे लोगों के स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ रहा है। खाद्य विभाग की कार्रवाई नाकाफी साबित हो रही है और मिलावटखोरों पर नकेल कसना मुश्किल हो रहा है।

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    ... तो क्या हर रोज तीन लाख लीटर दूध बांट रहा ‘जिदंगी का जहर’

    जागरण संवाददाता, बांदा। दूध का उत्पादन और खपत के बीच बड़ा अंतर है। रोजाना चार लाख लीटर दूध का उत्पादन हो रहा है। जबकि वर्तमान में खपत सात लाख लीटर की है। मसलन रोजाना तीन सौ लीटर मिलावटी दूध तैयार किया जाता है। बाजारों में बिकने वाला पनीर, मिठाई की शुद्धता पर सवाल है।

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    यह बात साफ है कि जिले की बीस प्रतिशत से ज्यादा की आबादी सिंथेटिक और मिलावटी दूध का सेवन कर रही है। कहने को तो खाद्य आपूर्ति विभाग है लेकिन कार्रवाई के नाम पर सिर्फ औपचारिकता निभा रहा है। आठ ब्लाकों में दूध का रोजाना उत्पादन चार लाख लीटर होता है।

    लगभग 39 हजार गाय और 62 हजार भैंस हैं। सात हजार से अधिक दूधियों के माध्यम से आम लोगों के घरों और दुकानों में इसकी खपत कराई जाती है। जिले में रोजाना दो लाख लीटर दूध स्थानीय लोगों की आवश्यकता के लिए होता है।

    एक अनुमान के अनुसार रोजाना जिले में दो से तीन लाख लीटर मिलावटी दूध यहां पनीर और मिठाइयों के प्रयोग में लाया जा रहा है। जिले में कुल दूध को गांव-गांव एकत्र करने के लिए 58 दुग्ध समितियां कार्यरत हैं। जिले में 20 हजार से अधिक पशुपालक ऐसे हैं जो दुग्ध कारोबार से जुड़े हैं।

    दुग्ध विभाग की मानें तो जिले में उत्पादन चार लाख लीटर है। इसके सापेक्ष जिले का दो लाख लीटर दूध कर्वी स्थित प्लांट समेत दूसरे प्रदेशों को बेचा जाता है। जानकार लोगों की माने तो जिले में रोजाना डेढ़ से दो लाख लीटर की खपत केवल पनीर और मिठाइयों में हो रही है।

    अगर ऐसा है तो जिले में मिठाइयों और अन्य जरूरतों के लिए दूध आता कहां से है। सीधे तौर यह बात कही जा सकती है कि रोजाना जिले में मिलावटी दूध तैयार किया जा रहा है। त्योहारों में होती है सबसे ज्यादा आवक जिले में त्योहार के समय नकली दूध की सबसे ज्यादा आवक होती है।

    त्योहार आते ही मिलावटखोर सक्रिय हो जाते हैं। दूध, खोवा में मिलावट होने लगती है। त्योहार में इसकी मांग भी दो से तीन गुना बढ़ गई है। उत्पादन से कहीं अधिक दूध की मांग बढ़ने से कारोबारी दूध में मिलावट करने से परहेज नहीं करते हैं।

    इस दौरान दो सौ गांवों में खोवे की भट्टी धधकती रहती है और मिलावटी खोवा बाजार में खपा देती है। बावजूद इसके आम लोगों की सेहत से खिलवाड़ करने वाले कारोबारियों पर खाद्य सुरक्षा एवं औषधि प्रशासन विभाग नकेल नहीं कस पा रहा है। हर परिवार में प्रयोग किए जाने वाला दूध भी मिलावट से नहीं बचा पा रहा है। उत्पादन से अधिक दूध की मांग होने पर कारोबारी मिलावट करके इसकी पूर्ति करते हैं।

    खोवे में भी मिलावट का खेल

    जनपद में बड़ी तादाद में खोवा बनाया जाता है। कारोबारी कैथी बाजार स्थित खोवा मंडी में खोवा बेच रहे हैं। होली पर खोवे की मांग बढ़ जाने तथा उत्पादन कम होने के कारण लोग मांग को पूरा करने के लिए इसमें अरारोट, आलू, शकरकंद, स्टार्च व मैदा मिला कर लोगों की सेहत से खिलवाड़ कर रहे हैं।

    कैसे जाने कि दूध में मिलावट है

    दूध में पानी के साथ ही नुकसान देय पदार्थ, डिटर्जेंट, रिफाइंड, अरारोट तथा मिठास के लिए ग्लूकोज की मिलावट की जाती है। दूध का नमूना लेकर परखनली में गर्म करें, उसमें दो-तीन दाने चीनी के मिलाएं, दूध की मात्रा के आधार पर हाइड्रोक्लोरिन अम्ल डालें, गुलाबी लाल हो जाता है तो मिलावट है। वहीं खोवे में मिलावट जांचने के लिए इसमें आयोडिन सेल्यूशन मिलाने से अगर खोवे का रंग नीला पड़ जाए तो जान लीजिए मिलावट है।

    मिलावट के खिलाफ जांच अभियान चलाया जा रहा है। इसके अतिरिक्त यदि कोई निजी तौर पर जांच कराना चाहे, तो एक हजार रुपये विभाग में जमा कराके जांच करा सकता है। गत वर्ष 34 नमूने फेल हुए थे, जिनमें 21 मामलों में चार लाख जुर्माना तथा दो लोगों को छह-छह माह की सजा हुई है। - जयप्रकाश तिवारी, सहायक आयुक्त, खाद्य विभाग