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    बुंदेलखंड के कठिया गेहूं को मिला जीआई टैग, इन उत्पादों को बनाने में होता है प्रयोग… मिलती है अच्छी आमदनी

    Updated: Mon, 01 Apr 2024 02:24 AM (IST)

    Kathia wheat - चार दशक पहले से बुंदेलखंड में तैयार हो रहे लाल गेहूं (कठिया) को आखिरकार अंतरराष्ट्रीय फलक मिल गया। प्रदेश सरकार ने कठिया गेहूं को अब जीआई टैग दिया है। विश्व स्तर पर अपनी पहचान बनाने वाले कठिया गेहूं के उत्पादन में अब काफी सहूलियत मिलेगी। इसकी खेती करने वाले किसानों को अब फसल का अच्छा दाम भी मिलेगा।

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    कठिया गेहूं को जीआई टैग मिलने से मिलेगी नई पहचान।

    जागरण संवाददाता, उरई। चार दशक पहले से बुंदेलखंड में तैयार हो रहे लाल गेहूं (कठिया) को आखिरकार अंतरराष्ट्रीय फलक मिल गया। प्रदेश सरकार ने कठिया गेहूं को अब जीआई टैग दिया है। 

    विश्व स्तर पर अपनी पहचान बनाने वाले कठिया गेहूं के उत्पादन में अब काफी सहूलियत मिलेगी। इसकी खेती करने वाले किसानों को अब फसल का अच्छा दाम भी मिलेगा। बांदा के शजर पत्थर के बाद दूसरी बार यहां के कठिया गेहूं को जीआई टैग की उपलब्धि मिली है। 

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    स्थानीय किसान इस उपलब्धि से काफी खुश हैं। बुंदेलखंड के किसानों की पहचान हमेशा से यहां के कठिया गेहूं से ही रही है। बुंदेलखंड में यह गेहूं हमीरपुर, झांसी, महोबा और ललितपुर में पाया जाता है। 

    कृषि विश्वविद्यालय के जनसंपर्क अधिकारी डॉ. वी के गुप्त कहते हैं कि सरकार द्वारा जीआई टैग दिए जाने के बाद यहां के किसानों को अपनी फसल को उत्पादित करने में काफी सहूलियत मिलेगी। 

    वह कहते हैं कि कृषि विश्वविद्यालय भी इस कार्य में किसानों का भरपूर सहयोग करेगा। कृषि विद्यालय में कठिया की कई प्रजातियों पर शोध किए जा रहे हैं। वर्तमान में कठिया गेहूं की मांग पूरे विश्व में है। 

    कठिया का दलिया और सूजी के जरिए अच्छी आमदनी ली जा रही है। प्रगतिशील किसान प्रेम सिंह कहते हैं कि कठिया गेहूं को जीआई टैग मिलने से अब इसका उत्पादन बढ़ेगा। इसे उद्यम के रूप में प्रोत्साहित किया जा सकेगा।