दिवारी नृत्य में बुंदेली महिलाओं ने छोड़ी छाप
जागरण संवाददाता बांदा बड़ोखर खुर्द के महावीरन मंदिर में बुंदेली लोकनृत्य दिवारी मेला महो

जागरण संवाददाता, बांदा : बड़ोखर खुर्द के महावीरन मंदिर में बुंदेली लोकनृत्य दिवारी मेला महोत्सव का आयोजन किया गया। इसमें बुंदेली महिलाओं की टीम ने दिवारी नृत्य के जरिए एक अलग छाप छोड़ी। कौशिल्या और जानकी की टीम को गायिका मालिनी अवस्थी ने शील्ड देकर सम्मानित किया। प्रतियोगिता में जिले की 14 टीमों ने अपना प्रदर्शन किया।
नटराज जन कल्याण समिति बड़ोखर खुर्द के तत्वावधान में महावीरन मंदिर के पुजारी कंधीलाल दुबे व समिति अध्यक्ष रमेश पाल ने दीवारी प्रतियोगिता शुरू कराई। टीमों ने अलग-अलग प्रदर्शन किया। इसमें बड़ोखर खुर्द की कौशिल्या की टीम ने प्रथम, इसी गांव की चंद्रपाल की टीम द्वितीय और बांधा पुरवा की जानकी यादव की टीम ने तीसरा स्थान हासिल किया। मशहूर लोक गायिका मालिनी अवस्थी ने महिला खिलाड़ियों की प्रशंसा की। उन्हें शील्ड देकर पुरस्कृत किया। इस मौके पर सांसद आरके सिंह पटेल, सदर विधायक प्रकाश द्विवेदी, कांग्रेस जिलाध्यक्ष लालू दूबे, व्यापारी नेता अमित सेठ भोलू, पूर्व चेयरमैन अशोक अवस्थी, भाजपा नेता अशोक त्रिपाठी जीतू, राकेश कुमार दद्दू, डा.मनीष गुप्ता, लल्लू शिवहरे, सबल सिंह, ओमप्रकाश मसुरहा आदि मौजूद रहे।
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ट्वीट कर मालिनी की बुंदेली वीरांगनाओं की सराहना
बांदा : सुप्रसिद्ध लोकगायिका मालिनी अवस्थी ने ट्वीट कर बुंदेलखंड की दीवारी नृत्य से जुड़ी महिलाओं की सराहना की। कहा कि जिस बुंदेलखंड में कभी बेटियां बेटों से कम समझी जाती थीं,आज उसी धरती में बेटियों ने पुरुषों द्वारा किये जाने वाले दीवारी लोकनृत्य को मेरे सम्मुख प्रस्तुत किया। दीवारी युद्धकला नृत्य यानी मार्शलआर्ट है। बेटियों के लिए ग्रामीण अंचल में बजती ये तालियां नए भारत की तस्वीर है। उन्होंने लखनऊ से बनारस और वहां से बुंदेलखंड में बांदा की यात्रा देवोत्थानी एकादशी पर की।
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मालिनी के लोग गीतों पर झूम उठे दर्शक
जागरण संवाददाता, बांदा :
भोजपुरी, बुंदेली और अवधी गीतों की स्वर साधिका मालिनी अवस्थी का कार्यक्रम शहर के अतर्रा रोड में महावीरन मंदिर (बड़ोखर खुर्द) में आयोजित किया गया। मालिनी अवस्थी ने सबसे पहले धोबिया लोक गीत हमके अंचरा के छैंया झूला ल बलमा..प्रस्तुत किया। उनके इस गीत पर मेला परिसर में मौजूद सैकड़ों दर्शकों ने तालियों से स्वागत किया। इसके बाद उन्होंने अपने चिर-परिचत अंदाज में सइयां मिले लरकइयां, मैं का करूं गीत प्रस्तुत किया। दर्शकों की मांग पर उन्होंने कई बुंदेली लोक गीत भी गाए। उन्होंने गायन के साथ नृत्य भी प्रस्तुत किया और लोक शैली की कलात्मक प्रस्तुति दी। इसके अलावा उन्होंने हरे राम हीरा जड़ी.., सोने की थाली में जेवना परोसूं, , सिया संग झूलें बगिया में राम ललना, रिमझिम बरसे ला पनिया आव चलीं धान रोपे धनिया, जैसे लोक गीतों के माध्यम से ग्रामीण अंचल का पूरा लोक जीवन जीवंत कर दिया। उन्होने अपनी गुरु पद्म विभूषण गिरिजा देवी की कजरी को कुछ इस प्रकार गाया घेरि आई कारी बदरिया रे, राधा बिन लागे न मोरा जिया।

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