अजोला घास से सुधर रही बुंदेली पशुओं की सेहत
बुंदेलखंड में पर्याप्त कृषि क्षेत्र होने के बाद भी हरे चारे की कमी है। ऐसे में पशुओं में दुग्ध उत्पादन कम होने से पशु अन्ना भटक रहे हैं। ऐसे में प्रगत ...और पढ़ें

प्रदीप द्विवेदी, जागरण संवाददाता, बांदा: बुंदेलखंड में पर्याप्त कृषि क्षेत्र होने के बाद भी चारे की कमी से अन्ना पशुओं की बड़ी समस्या खड़ी है। लेकिन अब अजोला घास इस समस्या को हल कर सकती है। एक बार बोने के बाद 15 दिन में दो गुना उत्पादन देने वाली यह घास पशुओं को सेहतमंद बनाने के साथ उनमें दूध देने की क्षमता बढ़ाती है। बड़ोखर खुर्द ब्लाक के छनेहरा लालपुर के प्रगतिशील किसान असलम ने अपने जैविक फार्म में इसकी खेती करने के साथ किसानों को इससे जोड़ रहे हैं। उन्होने जबलपुर से लाकर इस घास की खेती शुरू की है। वह किसानों को इसका बीज मुफ्त दे रहे हैं।
असलम खां जैविक कृषि फार्म तैयार कर बुंदेलखंड में चार साल पहले चर्चा में आए थे, जिसके बाद तेजी से जिले में जैविक कृषि फार्म तैयार हो रहे हैं। अब उनके द्वारा शुरू की गई अजोला घास की खेती पशुपालकों की समस्या हल करेगी। असलम का कहना है कि इसमें न तो लागत लगती है न बहुत श्रम। घर या खेत कहीं भी 6-7 मीटर की जगह यह चारा तैयार किया जा सकता है। असलम ने पहले 10 किसानों को इसकी खेती से जोड़ा। अब कृषि विश्वविद्यालय, उद्यान व कृषि विभाग द्वारा किसानों का उनके यहां भ्रमण कराया जा रहा है। 137 किसानों ने इस साल इसकी खेती कर रहे हैं।
इसके फायदे :
यह गाय,बकरी, मुर्गी बड़े चाव से खाते हैं । इसमें 32 प्रतिशत प्रोटीन व 60 फीसद अन्य पोषक तत्व होते हैं। इसे खाने से पशु 20 से 30 फीसद अधिक दूध देते हैं , जबकि मुर्गियों में अंडा देने की क्षमता बढ़ती है। उनमें रोगों से लड़ने की क्षमता भी बढ़ती है।
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जैविक खाद भी: इसका प्रयोग जैविक खाद के रूप में किया जा सकता है। इससे मिट्टंी की सेहत बढ़ने के साथ उत्पादन भी बढ़ता है।
ऐसे तैयार करें घास :
खेत, घर व कहीं भी दस इंच गहरा व डेढ़ मीटर चौड़ा व छह मीटर लंबा गढ्डा खोदें। उसमें पॉलीथिन सीट बिछाएं। खेत की उपजाऊ मिट्टी व गोबर डालें। नौ इंच तक पानी भर दें। इसके बाद अजोला कल्चर डालें। ज्यादा धूप हो तो छाया कर दें। इसमें एक किलो बीज डालें। हर 15 दिन में आधा काट लें।
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कृषि फार्म व केबीके से लें बीज
अजोला का बीज वैसे तो 200 रुपये किलो है। असलम यह बीज किसानों को मुफ्त उपलब्ध करा रहे हैं। साथ ही कृषि विज्ञान केंद्रों में भी इसकी उपलब्धता हो गई है।

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