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और बड़ी लाइन की उम्मीदों पर फिर गया पानी

संवादसूत्र, तुलसीपुर (बलरामपुर): जरवा निवासियों को अभी भी इस क्षेत्र में ट्रेन आने का इंतजार है। वह लोग करीब एक दशक पहले ट्रेन बंद हो जाने से मायूस है। सीमा क्षेत्र पर बसे करीब पचास हजार की आबादी के लिए रेल की सुविधा खत्म हो गई है। करीब 15 साल पहले यहां पर एक ट्रेन प्रतिदिन आती थी। पत्थरों के यहां कारोबार होता था। लेकिन अभयारण्य घोषित होने के बाद पत्थर निकासी बंद हो गई मालगाड़ी का काम खत्म हो गया। जिसके कुछ दिन बाद सवारी गाड़ी भी बंद कर दी गई। अब

By JagranEdited By: Published: Thu, 20 Dec 2018 09:34 PM (IST)Updated: Thu, 20 Dec 2018 09:34 PM (IST)
और बड़ी लाइन की उम्मीदों पर फिर गया पानी

बलरामपुर :भारत-नेपाल सीमा पर बसे जरवा क्षेत्र के बा¨शदे रेल सेवा से महरूम हैं। करीब एक दशक पहले यहां ट्रेनों का संचालन बंद कर दिया गया था। गोंडा-गोरखपुर लूपलाइन पर आमान परिवर्तन के बाद बड़ी लाइन तो बन गई, लेकिन जरवा से गैंसड़ी लाइन को छोड़ दिया गया। जिससे सीमावर्ती क्षेत्र की करीब 50 हजार आबादी रेल सुविधा से वंचित हो गई। इस लाइन का आमान परिवर्तन न होने से अब यहां के लोगों को ट्रेन पकड़ने के लिए तुलसीपुर व गैंसड़ी जाना पड़ता है।

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कभी होता था पत्थरों का कारोबार :

-करीब 15 साल पहले गैंसड़ी से जरवा स्टेशन तक प्रतिदिन एक ट्रेन का संचालन होना था। यहां पत्थरों का कारोबार होता था, लेकिन अभयारण्य घोषित होने के बाद पत्थर की निकासी बंद हो गई। जिससे मालगाड़ी का काम खत्म हो गया। कुछ दिन बाद इस लाइन पर सवारी गाड़ी भी बंद कर दी गई। ब्रॉडगेज बनने के बाद इस लाइन का आमान परिवर्तन न होने से लोगों की आशाएं धूमिल हो गईं।

ग्रामीणों का छलका दर्द :

-जरवा निवासी नीरज मिश्र का कहना है कि यह थारू बहुल इलाका है। रेल परिवहन सेवा थारुओं के उत्थान में काफी मददगार थी, लेकिन अब लोगों को रोजगार के लिए महानगरों का रुख करना पड़ रहा है। अजय ने बताया कि आमान परिवर्तन शुरू होने पर बड़ी लाइन का सफर करने की आस जगी थी, लेकिन लोगों की मंशा पर पानी फिर गया। कमलेश बताते हैं कि पहले यहीं पर लोग ट्रेन पर बैठकर सीधे गोरखपुर तक सफर करते थे। अब गैंसड़ी व तुलसीपुर तक दौड़ लगानी पड़ती है।


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