बलरामपुर में मतांतरण के मास्टरमाइंड जलालुद्दीन उर्फ छांगुर का नेटवर्क सामने आया है। वह गरीब और विधवा महिलाओं को प्रेम जाल में फंसाकर मतांतरण कराता था। जांच में विदेशी फंडिंग और मदरसों के माध्यम से फैले नेटवर्क का खुलासा हुआ है। प्रशासन ने कई अवैध मदरसे सील किए हैं। छांगुर के तरीके में प्रेम जाल आर्थिक लालच और धार्मिक ब्रेनवाश शामिल थे।
अम्बिका वाजपेयी, बलरामपुर। गरीब, विधवा और प्रेमजाल में फांसी गई हजारों हिंदू महिलाओं के मतांरण की जो कहानी बलरामपुर से सामने आ रही है, वह केवल मजहबी परिवर्तन की नहीं, बल्कि एक सुव्यवस्थित और बहुस्तरीय साजिश की परतें खोल रही है। इसका मुख्य किरदार है जलालुद्दीन उर्फ छांगुर- एक ऐसा नाम, जो अब अंतरराष्ट्रीय साजिश का मास्टरमाइंड बनकर सामने आया है।
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अब तक की जांच में सामने आया है कि छांगुर अपने साथियों से बातचीत में कोडवर्ड का प्रयोग करता था। एक अधिकारी के अनुसार छांगुर के कुछ आडियो क्लिप जांच टीम को मिले हैं, जिनमें वह मतांतरण को मिट्टी पलटना कहता था और लड़कियों को प्रोजेक्ट नाम से पुकारता था। काजल करना का अर्थ था मानसिक रूप से प्रभावित करना और दर्शन से आशय था बाबा से मिलवाना।
वह आर्थिक रूप से कमजोर, विधवा तथा गैर मजहब की लड़कियों को बहला-फुसलाकर मतांतरण के लिए इस्तेमाल करता था। इस काम के लिए वह मुस्लिम युवकों को पैसा देता था। इसमें हर धर्म की लड़की के लिए धनराशि तय थी। कोठी का आधा हिस्सा ध्वस्त करने के बाद बुलडोजर भले शांत हो गए, लेकिन शनिवार को छांगुर, नीतू औऱ नवीन को लेकर पहुंची एटीएस की टीम ने जिले में कयासों का शोर बढ़ा दिया है।
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टीम के जाते ही चर्चा होने लगी कि छांगुर ने किसी रियाज का जिक्र करने साथ ही जिले में तैनात रहे एक आइपीएस का नाम लिया है। एटीएस ने तीनों के साथ 45 मिनट तक कोठी के बंद कमरों की तलाशी ली, इस दौरान कोठी जाने वाला रास्ता बंदकर दिया गया था। कुछ दस्तावेज लेकर टीम रवाना हो गई।
प्राप्त जानकारी के मुताबिक छांगुर का नेटवर्क केवल बलरामपुर तक सीमित नहीं था। उसने नेपाल सीमा से सटे जिलों में मजहबी संस्थाओं के ज़रिए नेटवर्क फैलाया और विदेशी फंडिंग के माध्यम से शिक्षा की आड़ में कई मदरसों को खड़ा किया।
15 साल पहले तक साइकिल से नगीने और पत्थर बेचने वाले छांगुर के पास अपनी कोई बड़ी विरासत नहीं थी, लेकिन उसने सरकारी ज़मीनों पर धीरे-धीरे कब्जा कर मदरसे और खड़ी कीं। यह उसकी रणनीति का अहम हिस्सा था — सस्ती या मुफ्त ज़मीन पर धार्मिक संस्थान बनाओ, विदेशी चंदा इकट्ठा करो और उस क्षेत्र में मजहबी प्रभाव बढ़ाओ।
अब तक की जांच में सौ करोड़ से अधिक विदेशी फंडिग की बात सामने आई और 40 से अधिक बैंक खातों की जानकारी मिली है। जाहिर सी बात है कि सारे खाते नीतू, छांगुर और नवीन के नाम पर नहीं है तो यह कहना मुश्किल है कि कितने पैसे की फंडिंग की गई। सहयोगियों के बारे में पडजाल जारी है और उसी के आधार पर बैंक खातों की जानकारी सामने आएगी।
स्थानीय लोगों के मुताबिक जुमे यानी शुक्रवार को छोड़कर बाकी दिन छांगुर घूमता रहता था। आसपास के लोगों से बस दुआ-सलाम तक ही सीमित था और उसका आवागमन श्रावस्ती, बहराइच और नेपाल में ज्यादा था। इस वर्ष प्रशासन ने सील किए 130 अवैध मदरसे जिले में इस वर्ष प्रशासन ने 130 अवैध मदरसे चिन्हित कर सील किए हैं, जबकि 25 को पूरी तरह ध्वस्त किया गया है।
बलरामपुर में यह संख्या 50 तक पहुंच चुकी है। इन सभी मदरसों के संचालन के पीछे फंडिंग की कड़ियां छांगुर से जुड़ी बताई जा रही हैं। इसलिए पुलिस ने जिलों में सील किए गए मदरसों की आय के स्रोत मांगे हैं, आशंका है कि छांगुर ने दर्जनों मदरसों को पैसा दिया है। छांगुर की नेपाल यात्राएं भी जांच के घेरे में हैं।
सूत्र बताते हैं कि वह समय-समय पर नेपाल जाता था, जहां कुछ विदेशी एनजीओ से उसका संपर्क था। इन्हीं माध्यमों से मदरसों के लिए फंड आता था। जांच एजेंसियों को संदेह है कि इन पैसों का इस्तेमाल न केवल मतांतरण के लिए किया गया, बल्कि कट्टरता फैलाने वाले साहित्य, प्रचार और कुछ संदिग्ध प्रशिक्षण कार्यक्रमों के लिए भी किया गया।
उतरौला के भाजपा विधायक राम प्रताप वर्मा ने कहा कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की कार्रवाई एक नजीर है। छांगुर कोई अकेला व्यक्ति नहीं, बल्कि एक संगठित साजिश का चेहरा है जिसमें नेपाल से लेकर उत्तर प्रदेश की प्रशासनिक चुप्पी तक सब कुछ शामिल है।
यह एक ऐसा मामला है जो बताता है कि मतांतरण सिर्फ व्यक्तिगत मामला नहीं, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा और सामाजिक संतुलन से जुड़ा गंभीर विषय है। अब यह जरूरी हो गया है कि जांच एजेंसियां केवल छांगुर तक न रुकें, बल्कि उस पूरे नेटवर्क को सामने लाएं जिसने लड़कियों को प्रोजेक्ट बना दिया।
एलआइयू और सरकारी महकमों की चुप्पी पर सवाल
उतरौला–मनकापुर मार्ग से 200 मीटर अंदर खेतों के बीच छांगुर की आलीशान कोठी बनी थी। केवल इस कोठी तक पक्की आरसीसी सड़क बनाई गई थी। इससे स्पष्ट होता है कि छांगुर का रसूख स्थानीय प्रशासन और विभागीय महकमों तक था।
इस साजिश का सबसे खतरनाक पक्ष यह रहा कि यह सब वर्षों तक चलता रहा, लेकिन न तो खुफिया एजेंसियां जागीं न स्थानीय प्रशासन ने गंभीरता दिखाई। जब सरकारी जमीन पर यह निर्मााण हो रहा था, तब स्थानीय लेखपाल से लेकर जिम्मेदार अफसर चुप्पी साधे रहे।
छांगुर की कोठी से दो किलोमीटर दूर उसके गांव रेहरा माफी में डर दबाव या सहमति के कारण कोई बोलने को तैयार नहीं। कोठी के ठीक पीछे बनी चांद औलिया की मजार पर भी इक्का दुक्का लोग ही दिखे। एक व्यक्ति ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि साइिकल से अगूठियों के पत्थर और नग बेचने वाले छांगुर के पास अचानक बहुत पैसा आया था।
बाहर से गाड़ियां आती थीं। लड़कियां यहां लाकर रखी जाती थीं। यह कोठी आधिकारिक रिकार्ड में नीतू के नाम पर दर्ज है, वही नीतू उर्फ नसरीन जिसके नाम पर छांगुर ने अधिकतर संपत्तियां खरीदी थीं। जांच एजेंसियों को शक है कि नीतू और नवीन केवल मोहरे थे, जबकि संचालन पूरी तरह करता था।
कोठी के परिसर में जो भवन बन रहा था, उसके बारे में स्प्ष्ट नहीं है कि वहां क्या खोला जाना था। छांगुर यहां अस्पताल, डिग्री कालेज या अनाथालय बनाने की बात कहता था। उसने एक बार कहा था कि जो कहा जाएगा, वही बनेगा। इसका अर्थ है कि उसे कोई और निर्देशित कर रहा था, क्योंकि भवन की डिजाइन कई बार बदली गई।
छांगुर के मतांतरण के प्रमुख तरीके
प्रेमजाल और निकाह का झांसा छांगुर का सबसे प्रभावी तरीका हिंदू लड़कियों को प्रेमजाल में फंसाना था। उसके संपर्क में रहने वाले युवक खुद को हिंदू नाम से पेश करते थे। इंटरनेट मीडिया पर फर्जी आइडी बनाकर संपर्क करते और लड़कियों को भावनात्मक रूप से बांध लेते।
निकाह और शादी का वादा करने के बाद मतांतरण को नया जीवन शुरू करने की शर्त बताई जाती। आर्थिक लालच और विदेश भेजने का सपना लड़कियों और युवाओं को नौकरी, स्कॉलरशिप या विदेश जाने का सपना दिखाया जाता था। कुछ युवाओं को कथित तौर पर इस्लामी शिक्षण संस्थानों में मुफ्त पढ़ाई और विदेश में काम का प्रलोभन दिया गया। नेपाल या खाड़ी देशों के संपर्कों का हवाला दिया जाता था।
धार्मिक आलोचना और ब्रेनवाश
वह स्वयं को सच्चा मार्ग दिखाने वाला बताकर प्रचार करवाता था। हिंदू धर्म को गलत तरीके से प्रस्तुत करता और इस्लाम की व्याख्या मनमाने ढंग से करता। कमजोर सामाजिक और मानसिक स्थिति में फंसी लड़कियों को धर्म की सच्चा बताकर भ्रमित करता था।
स्थानीय मदरसों और एनजीओ के जरिए संपर्क नेपाल सीमा से सटे कुछ मदरसों से उसका संपर्क था। वहां से आए फंड और कार्यकर्ताओं के जरिए उसने गरीब तबके के बच्चों और युवाओं को प्रभावित किया। कुछ एनजीओ और धार्मिक शिक्षकों के साथ उसका नियमित संपर्क था जो धार्मिक कक्षाएं संचालित करते थे।
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