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    नेपाल से सटे सीमावर्ती इलाकों में सामाजिक सरोकारों का सारथी बनकर उभरा SSB, संवार रहा थारुओं की तकदीर

    Updated: Mon, 15 Sep 2025 05:39 PM (IST)

    चांदनी और पार्वती सिलाई का प्रशिक्षण लेकर अपना और अपने परिवार का भरण पोषण कर रही हैं। प्रशिक्षण से पहले दोनों घर पर रहकर चूल्हा चौका करतीं थी। सशस्त्र सीमा बल (एसएसबी) के प्रशिक्षण अभियान से जुड़कर सिलाई का हुनर सीखा। एसएसबी से मिली सिलाई मशीन से दोनों ने मोहकमपुर गांव में कपड़ा सिलाई शुरू की।

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    नेपाल से सटे सीमावर्ती इलाकों में सामाजिक सरोकारों का सारथी बनकर उभरा एसएसबी।

    अमित श्रीवास्तव, बलरामपुर। चांदनी और पार्वती सिलाई का प्रशिक्षण लेकर अपना और अपने परिवार का भरण पोषण कर रही हैं। प्रशिक्षण से पहले दोनों घर पर रहकर चूल्हा चौका करतीं थी। सशस्त्र सीमा बल (एसएसबी) के प्रशिक्षण अभियान से जुड़कर सिलाई का हुनर सीखा। एसएसबी से मिली सिलाई मशीन से दोनों ने मोहकमपुर गांव में कपड़ा सिलाई शुरू की। साथ ही गांव की बेटियों को सिलाई का पाठ भी पढ़ा रही हैं। चांदनी बताती हैं कि आसपास गांव के लाेग कपड़ा सिलवाने के लिए आते हैं। 500 से 800 रुपये प्रतिदिन की कमाई हो जाती है। इससे अपना और परिवार का खर्च चलाने में मदद मिलती है।

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    यह सब संभव हो सका है सीमा की सुरक्षा के साथ बेटियों को आत्मनिर्भर बनाने का बीड़ा उठाने वाले सशस्त्र सीमा बल (एसएसबी) के अभियान से। भारत-नेपाल सीमा पर एसएसबी तैनात है। सीमा पर नजर रखने के लिए रात दिन पगडंडियों और जंगल में गश्त कर रही है। इसके साथ ही थारू जनजाति की बेटियों को कंप्यूटर शिक्षा का निश्शुल्क प्रशिक्षण दे रहे हैं। यही नहीं, जनजाति के लोगों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए मधुमक्खी पालन, ब्यूटीशियन का भी पाठ पढ़ाया। मुर्गी पालन का रोजगार करने के लिए कड़कनाथ मुर्गे के बच्चों का निश्शुल्क वितरण भी किया है। कंप्यूटर प्रशिक्षण नौंंवी वाहिनी एसएसबी करा रही है, यहीं से इसकी शुरुआत है।

    कंप्यूटर का ज्ञान 30 बेटियों के साथ पांच युवाओं को भी मिल रहा है। 20 दिन का कोर्स है। इसके लिए प्रेरणा फाउंडेशन को जिम्मेदारी दी गई है। मोहकमपुर पंचायत सचिवालय में इसी गांव की थारू जनजाति की बेटियों और युवाओं को डिजिटल की दुनिया से जोड़ने की पहल है। इसमें कंप्यूटर की मूल जानकारी दी जा रही है। आगे 15 युवाओं को वाहन चलाने (ड्राइविंग) का प्रशिक्षण देने की योजना है। एसएसबी सीमा की सुरक्षा के साथ सामाजिक सरोकारों की भी सारथी बनकर उभरी है। इसमें लाभार्थी लड़कियों की आर्थिक व सामाजिक स्थिति, प्रशिक्षण से उनके जीवन में बदलाव आया है।

    अब तक 1000 को मिला लाभ 

    बलरामपुर की 85 किमी लंबी सीमा नेपाल से जुड़ती है। सीमा की निगरानी के लिए एसएसबी तैनात है। सीमा पर ही सोहेलवा जंगल है। करीब 50 गांवों के लोगों को आर्थिक और सामाजिक रूप से सुदृढ़ करने के लिए उनको समय-समय पर विभिन्न ट्रेड में प्रशिक्षण दिला कर हुनरमंद बनाने में एसएसबी जुटी है। इसका लाभ भी अब तक करीब 1000 लोगों को मिल चुका है। एसएसबी गृह मंत्रालय के निर्देशानुसार सीमावर्ती क्षेत्र में सामाजिक और आर्थिक रूप से मजबूत करने का काम कर रही है।

    भारत-नेपाल सीमा पर बसी थारू जनजाति की बेटियों व युवाओं को हुनरमंद बनाने के लिए प्रशिक्षण कराया जाता है। इससे उन्हें विकास की मुख्य धारा से जुड़ने का अवसर मिल रहा है। आगे भी इन्हें अन्य कई विधाओं में पारंगत बनाने की योजना है। इसमें सामाजिक संस्थाओं को भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लेना चाहिए।- नैनसी सिंगल, उप कमांडेंट एसएसबी