ऐसा गांव जहां टीकाकरण कराने के लिए करनी पड़ती है मनुहार
200 परिवारों में किसी बचे को टीका नहीं लगा। ग्रामीणों की जिद के आगे प्रशासन भी बेबस।
बलरामपुर : नगर से सटा जोकहिया ऐसा गांव है। जहां आज तक स्वास्थ्य योजनाओं की छांव नहीं पहुंची। 1500 आबादी वाले इस गांव की हालत सुधारने को प्रयास तो बहुत हुए, लेकिन सब बेकार रहा। गांव के बीच में ही अस्पताल है।फिर भी गांव के बच्चों को टीका नहीं लगाया गया। अंधविश्वास की बेड़ियों में जकड़े 200 परिवारों की महिलाएं व बच्चे कई कल्याणकारी योजनाओं का नाम तक नहीं जानते हैं। यही वजह है कि टीकाकरण के लिए तो प्रशासन ने कई बार सख्ती की, लेकिन कोशिशें नाकाम रहीं। ग्रामीणों की जिद देख अफसर भी चुप बैठ गए।
झगड़ा करने पर हो जाते हैं उतारू :
यहां के ग्रामीण अस्पताल सिर्फ प्रसव के लिए आते हैं। जब टीकाकरण की बात होती है तो झगड़ा करने पर उतारू हो जाते हैं। ऐसे में प्रसव समय ही प्रसूता व बच्चे को टीके लग पाते हैं। जन्म के बाद में लगने वाले पोलियो, पेंटा, जेई,खसरा, रूबेला,रोटा सहित टीकों से प्रसूताएं व बच्चे वंचित रह जाते हैं।
गंदगी देख बदल दिया रास्ता : फुलवरिया बाईपास के निकट इस गांव में गंदगी का ऐसा हाल है कि लोग उधर जाना तक नहीं चाहते हैं। प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र का रास्ता इसी गांव से है, लेकिन चिकित्सक व स्वास्थ्य कर्मी अधिक दूरी तय कर अन्य रास्ते से आते-जाते हैं। चिकित्सक डॉ. रेनू सिंह ने बताया कि सड़क पर कीचड़ व बहती नालियों के चलते नाक दबाकर गुजरना पड़ता है जिससे कोई इधर आना जाना पसंद नहीं करता है।
प्रशासन की सख्ती रही बेअसर : गत दिसंबर में चले टीकाकरण अभियान में स्वास्थ्य कर्मी, लेखपाल, शिक्षक, कोटेदार, आंनबाड़ी व ग्रामप्रधान ने प्रतिरोधी परिवारों की की मनुहार की, लेकिन वह नहीं माने। राशनकार्ड जब्त कर मुकदमा दर्ज कराने की चेतावनी दी, लेकिन इसका असर नहीं हुआ।
जिम्मेदार के बोल : पीएचसी जोकहिया के अधीक्षक डॉ. जावेद अख्तर का कहना है कि टीकाकरण के लिए हर बार प्रयास होता है,लेकिन प्रतिरोधी परिवारों के आगे सब बेबस हो जाते हैं। हालांकि पहले से काफी सुधार हुआ है। अब लोग टीकाकरण कराने लगे हैं।
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