दुर्लभ जड़ी बूटियों का भंडार है सोहेलवा जंगल
बलरामपुर : भारत-नेपाल सीमावर्ती क्षेत्र में 452 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला सोहेलवा जंगल वैसे तो
बलरामपुर : भारत-नेपाल सीमावर्ती क्षेत्र में 452 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला सोहेलवा जंगल वैसे तो अन्य जीव अभ्यारण के मामले में अलग पहचान रखता है। बेशकीमती वृक्षों के अलावा इस जंगल में दुर्लभ जड़ी बूटियों का भी अकूत भंडार है। औषधीय पौधों की पहचान रखने वाले वैद्य बताते हैं कि इस जंगल में जो जड़ी बूटी पाई जाती है वो अपने आप में अनूठी है। इनका दूसरे स्थान पर मिलना भी दुर्लभ है। नाग दामिनी औषधीय पौधा भी है। यहां मिलने वाली जड़ी बूटी में ग्रह दोष नाशक, बात ज्वर नाशक, विष हरण के गुण हैं जिससे दूसरों की जिंदगी बचाई जा सकती है। कालमेघ (चिरैता) त्रिदोष नाशक, कुष्ठरोग नाशक, विदोष ज्वर, रक्त पित नाशक, क्षय रोग व कीटाणु नाशक बताया जाता है। इसी तरह सफेद मूसली, कामराज, काली मूसली, विलराकंद, अगुसा, कालिहारी, वृद्धितकी, चित्रक, अपराजिता, अमलताश, सुदर्शन, कांगिनी, एकांगी समेत सैकड़ों प्रजाति के औषधीय पौधों से सोहेलवा जंगल अच्छादित है। ये जड़ी बूटी विभिन्न रोगों को दूर करने के साथ शारीरिक वर्धक, पौरूष शक्ति बढ़ाने में भी अचूक हैं।
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जड़ी बूटी का नाम - औषधीय गुण
कामराज : धातुवर्धक, वाजीकरण, नपुंसकता, शुक्राणुवर्धक
अपराजिता : कुष्ठ रोग, शोध रोग, नष्टावर्त, असभरीहर, यौन दोष
सफेद मूसली : वृजवर्धक, शुक्रकारक, वाजीकरण, पुष्टता कारक, हदयरोग, नपुंसकतानाशक
काली मूसली : दुग्ध वर्धक, लिंग वर्धक, केश काला
विलरा कंद : - शोथहर, हदयबल, रक्तचाप, मूलक, हुदावर्धक, स्मरीनाशक
अंकोल : रक्त वर्ग नाशक, त्वचादोष नाशक, रक्त विकार, सर्पविष नाशक, स्थूल नाशक
कलिहारी : कुष्ठ रोग, वर्षानाशक, शोधहर
चित्रक : पितवर्धक, गांठ, अस्थूल कारक, दर्दनाशक काय गोला
वृश्चिकी : रक्तचाप, मूत्रक, रचमा, वात ज्वर नाशक
बाराही कंद : कब्जनाशक, बवासीर नाशक, हुधावर्धक
अमलताश : दस्त, कब्जनाशक, कुष्टनाश, वातनाश
सुदर्शन : कप पित्त नाशक, कंठ दोष नाशक
कालमेघ (चिरैता): त्रिदोष नाशक, ज्वरनाशक, क्षय रोग नाशक, फीताकृति दोषनाशक, केशवर्धक
लांगिनी : सर्वविष नाशक, भूतनाशक, विषहर, कुष्ठनाशक
एपोत्री : लक्ष्मीदायक, धनदायक
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-जड़ी बूटियों पर रहती है वैद्यों की निगाहें
जंगल में मौजूद दुर्लभ जड़ी बूटियां आम आदमी की नजरों में भले ही घासफूस की तरह नजर आती हैं, लेकिन औषधीय गुणों के कारण बाजार में काफी महंगे दरों पर यही जड़ी बूटी बिकती है। जंगल के अंदर भी औषधीय पौधों की पहचान रखने वाले वैद्यों की नजरें इन पर टिकी रहती है। बताया जाता है कि वन कर्मियों की इनकी भनक तक नहीं लग पाती है। भांभर रेंज के वीरपुर वन कार्यालय पर कुछ वर्षो पहले एक जीप चिरैता जड़ी बूटी पकड़ी गई थी। जो जंगल से बाहर बिकने जा रही थी। अगर एक - दो मामले को अपवाद मान लिया जाए तो कभी कोई पकड़ में नहीं आया है।
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सोहेलवा जंगल में जड़ी बूटियों के संरक्षण की दिशा में भी प्रयास किया जाएगा। वैसे विभिन्न वन रेंज कार्यालयों के जरिए पूरे जंगल पर नजर रखी जा रही है।
-एसएस श्रीवास्तव
प्रभागीय वनाधिकारी, सोहेलवा वन्य क्षेत्र
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