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    क्रांतिकारियों की रोमांचक गाथा- अंग्रेजों से बंदूक छीन पहना दी धोती, आज भी याद किए जाते हैं सुखपुरा के शूरवीर

    देश की आजादी के लिए क्रांतिवीरों ने अंग्रेजों से लोहा लिया था। कई क्रांतिकारी और आजादी के दीवाने तो इतिहास के पन्नों में बिना समेटे ही गुमनाम हो गए हालांकि ऐसे क्रांतिकारियों को उनका परिवार-गांव नहीं भूला है। इन क्रांतिकारियों की याद में आज भी उनकी वीर गाथाएं सुनाई जाती हैं जिनमें से एक रोमांचक गाथा कुछ ऐसी है -

    By Sangram SinghEdited By: Shivam YadavUpdated: Tue, 22 Aug 2023 08:28 PM (IST)
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    अंग्रेज सैनिकों की छीन ली थी बंदूकें, धोती पहनाकर किया था विदा

    बलिया, जागरण टीम: भारत देश को स्वाधीन बनाने के लिए देश के क्रांतिवीरों ने अंग्रेजों से लोहा लिया था। इन क्रांतिवीरों में कुछ ऐसे भी हैं, जिन्हें शायद ही हर कोई जानता हो। कई क्रांतिकारी और आजादी के दीवाने तो इतिहास के पन्नों में बिना समेटे ही गुमनाम हो गए, हालांकि ऐसे क्रांतिकारियों को उनका परिवार-गांव नहीं भूला है। इन क्रांतिकारियों की याद में आज भी उनकी वीर गाथाएं सुनाई जाती हैं, जिनमें से एक रोमांचक गाथा कुछ ऐसी है-

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    1942 में आजादी की जंग में सुखपुरा के वीरों ने भी अहम किरदार निभाया था। देवरिया से सरयू नदी पार कर पैदल ही अंग्रेजी हुकूमत के पांच सिपाही सुखपुरा के रास्ते जिला मुख्यालय जा रहे थे। इसकी भनक यहां के क्रांतिकारियों को लगी तो बैठकों का दौर चला व घटना को अंजाम देने का प्लान बनाया गया।

    बंदूकें छीनकर उतरवा ली वर्दी

    भरखरा गांव के समीप मुसाफिर चौधरी के नेतृत्व में पांच सिपाहियों को आजादी के दीवानों ने घेर लिया। इनकी बंदूकें छीनकर वर्दी उतरवा ली और पहनने के लिए एक-एक धोती दी। क्रांतिकारियों के अचानक हमले से अनजान अंग्रेज सिपाही बलिया की तरफ चल पड़े।

    दुर्दशा देख गांव के लोगों ने कराया था भोजन

    इधर, आंदोलनकारी हीरा गोंड, रामकिशुन सिंह, जीउत राम, नागेश्वर राय, बैजनाथ पांडेय, कुलदीप सिंह आदि बंदूकों के साथ फरार हो गए। अंग्रेज सिपाही सुखपुरा चट्टी पर पहुंचे। उनकी दुर्दशा देख वहां के लोगों को दया आ गई। उन्हें भरपेट भोजन कराया। भोजन करते समय कस्बे के एक नौजवान गौरी शंकर ने उन्हें चिढ़ा दिया। 

    खीझे अंग्रेजों ने मचाया था उत्पात

    19 अगस्त को बलिया के आजाद होने से जला भुना अंग्रेज प्रशासन भरखरा में बंदूक छीने जाने से काफी नाराज था। 23 अगस्त 1942 को अंग्रेजी फौज ने सुखपुरा कस्बे पर हमला बोल दिया। इसके पहले समीप के गांव सोबईबांध के लोगों को जब यह पता चला कि अंग्रेजी फौज सुखपुरा पर हमला बोलने जा रही है तो बोड़िया गांव के समीप आंवला नाले पर बने पुल को तोड़ दिया, ताकि अंग्रेजी फौज सुखपुरा नहीं पहुंच सके। बावजूद इसके अंग्रेजी फौज सुखपुरा पहुंच गई और जमकर उत्पात मचाया। 

    कांग्रेसी नेता चंडी प्रसाद को अंग्रेजी फौज ने गोली मार दी, अपने घर पर बैठे गौरी शंकर को भी गोलियों से छलनी कर दिया। कुलदीप सिंह फरार हुए तो उनका पता नहीं चला। फरारी हालत में ही उनका देहांत हो गया।

    रणबांकुरों की याद में फहराया जाता है तिरंगा

    आजादी के बाद सुखपुरा के तीनों रणबांकुरे चंडी प्रसाद, गौरी शंकर और कुलदीप सिंह के बलिदान की याद में स्थानीय चट्टी पर स्मारक का निर्माण कराया गया, जहां बलिदानियों को नमन करने के लिए हर साल 23 अगस्त को राष्ट्रीय ध्वज फहराया जाता है।