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    बेबी की वे तीन सहेलियां..संवार दीं जिदगी

    By JagranEdited By:
    Updated: Wed, 16 Sep 2020 05:45 PM (IST)

    आज के संस्कारशाला में मैं उन चार छात्राओं की दोस्ती की कहानी बयां करना चाहती हूं जिनक

    बेबी की वे तीन सहेलियां..संवार दीं जिदगी

    आज के संस्कारशाला में मैं उन चार छात्राओं की दोस्ती की कहानी बयां करना चाहती हूं, जिनके आपस के उस भावनात्मक प्रेम को मैं कभी नहीं भूल पाऊंगी। तब मैं एक अन्य विद्यालय में तैनात थीं। वहां चार छात्राओं की दोस्ती ऐसी थी कि उनमें से एक भी किसी दिन विद्यालय न आए तो तीनों का मन पढ़ाई में भी नहीं लगता था। चारों पढ़ाई में अव्वल थीं। विद्यालय में सांस्कृतिक कार्यक्रम हो या कोई अन्य प्रतियोगिता, उन चारों का दबदबा हमेशा कायम रहता था। सभी शिक्षक भी उन चारों पर गर्व करते थे। उनमें से अचानक एक छात्रा बेबी ने विद्यालय आना बंद कर दिया जबकि तीन आ रहीं थीं। लेकिन उनके चेहरे के भाव बता रहे थे कि वे इन दिनों वे बोझिल टाइप से पढ़ाई कर रहीं हैं। उनके होमवर्क भी अब अधूरे रहने लगे थे। कारण क्या है, इस बात की जानकारी किसी को भी नहीं हो रही थी। लगभग एक माह की अवधि समाप्त होने के बाद अचानक एक दिन तीनों छात्राएं निधि, शिल्पी व स्नेहा आफिस में दाखिल हुईं और बताया कि उनके साथ पढ़ने वाली बेबी के पिता का निधन हो गया हैं, अब वह आगे पढ़ाई नहीं करना चाहती हैं। उसकी मां भी यही चाहती हैं।

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    यह बात सुनते ही मैं कुछ देर तक सोच में पड़ गईं। मैंने सवाल किया, ऐसा क्यों कर रही हैं। इस पर छात्राओं ने जवाब दिया कि उसकी मां ने अपनी हालात लेकर ऐसा निर्णय लिया हैं। अब उनका कोई सहारा नहीं हैं। बेबी के अलावा दो और बेटियां हैं, एक पुत्र है। सभी को उच्च शिक्षा दिलाने में अब वह सक्षम नहीं हैं। उन पर बहुत बड़ी आफत आ पड़ी है। छात्राओं की इन बातों ने मेरे मन को पूरी तरह झकझोर दिया। मैंने पूछा..आप सब मुझसे क्या अपेक्षा रखती हैं।

    छात्राओं का जवाब था..मैडम, एक बार आप उसकी मां को समझाएं। उसकी पढ़ाई का खर्च हम तीनों उठा लेंगे। उनके इस निर्णय से मेरा सिर गर्व से ऊंचा होने के साथ मन के अंदर यह भाव उत्पन्न हुूआ कि जब ये तीन अपनी एक असहाय सहेली के लिए इतना कुछ करने की सोचती हैं तो मैं अपनी एक विवश छात्रा के लिए कुछ बेहतर प्रयास क्यों नहीं कर सकती। उसी दिन शाम को उसके घर जाने का प्लान तैयार हुआ।

    मैं एक अन्य शिक्षिका के साथ उसके घर पहुंचीं तो वहां उसकी वे तीनों सहेलियां भी वहां पहले से मौजूद थीं। उस छात्रा के दरवाजे पर बैठकर बात शुरू हुई। बड़ी मुश्किल से उसकी मां ने सामने बैठकर अपनी पीड़ा बयां करना शुरू किया। मेरे लाख समझाने के बाद भी उनका यही जवाब था कि केवल यह ही नहीं है, मेरे ऊपर कुल चार बच्चों के देखभाल की जिम्मेदारी है। कुछ देर के बाद बेबी से भी पूछा गया..तुम्हारी इच्छा क्या है, क्या सच में अब तुम नहीं पढ़ना चाहती। इस पर बिना कोई जवाब दिए, वह डबडबाई आखों से पलट कर रोने लगी।

    इसके बाद मुझे कुछ कहने की जरूरत ही नहीं पड़ी। उसकी तीनों सहेलियों ने बेबी की मां का पैर पकड़ लिया। उनसे यह विनती भरे अंदाज में कहने लगी..आंटी ऐसा न करो, बेबी की पढ़ाई का जिम्मा विद्यालय ने लिया है, इसकी पढ़ाई के लिए आपको कोई फीस नहीं देनी है, किताब, कॉपी तक की व्यवस्था विद्यालय की ओर से की जा रही है, फिर भी यदि आप अपनी बात पर अडिग हैं तो आपकी कसम.. हम तीनों भी आगे की पढ़ाई छोड़ देंगे। तीनों सहेलियों के ये शब्द बेबी की मां के कलेजे को पिघलाने में सफल रहे। कुछ देर की चुप्पी के बाद मां बोली..चलो ठीक है, अपने हालात के चलते मैं चार बेटियों का भविष्य बर्बाद नहीं करूंगी।

    मां के मुंह से ये शब्द सुनकर चारों बेटियां उछल पड़ी। अगले दिन बेबी पुन: विद्यालय आने लगी। उसकी पढ़ाई के खर्च का इंतजाम भी विद्यालय की ओर से कर दिया गया। इंटर पास करने के बाद चारों सहेलियों ने साथ-साथ स्नातक की डिग्री भी प्राप्त की। इन चार बेटियों के चलते चार परिवार के बीच भी गहरे रिश्ते हो चले थे। उसके बाद बेबी एक प्राइवेट विद्यालय में पढ़ाकर अपनी जिदगी संवारने के साथ ही अपनी छोटी बहनों व भाई को भी पढ़ाने में सहयोग करने लगी। अब बेबी के बदौलत उसका पूरा परिवार खुशहाल है। बेबी की उन तीनों सहेलियों ने उसकी जिदगी संवार दी। दोस्ती का असल मतलब यही होना चाहिए।

    अर्चना पांडेय,

    प्रधानाचार्य

    उच्च्तर माध्यमिक विद्यालय, रूद्रपुर, गायघाट, बलिया

    भरत हो सकता भाई, यदि हम राम बने..

    रामायण पारिवारिक धर्म का अद्भुत शास्त्र है। इसमें पिता, पुत्र, सास, ससुर, गुरु, शिष्य, मित्र, प्रजा, राजा व भाई आदि के मर्यादित जीवन जीने का शाश्वत संदेश है। रामचरित मानस में भरत चरित्र यही कहता है कि हमारा छोटा भाई भरत हो सकता है यदि हम बड़े होकर राम बने। सास कौशल्या हो सकती है यदि वधू सीता बने। आचरण स्वयं करना होता है, तभी व्यक्ति और समाज प्रभावित व प्रेरित होता है। दैनिक जागरण में बुधवार को प्रकाशित संस्कारशाला में दो सहेलियों की मित्रता की कहानी के साथ रामचरित मानस की चौपाई के माध्यम से भी मित्रता के अनमोल महत्व को समझाया गया है, यह बहुत ही प्रशंसनीय है। रामचरित मानस में गोस्वामी जी ने सही लिखा है कि सच्चा मित्र वह है जो अपने दुख को कम और अपने मित्र के दु्ख को भारी समझ कर उसके दुख में साथ देता है। ऐसे मित्र जो सामने कोमल बचन बोलते हैं और पीठ पीछे बुराई करतें हैं, वे मित्र नहीं, कुमित्र हैं, उन्हें त्यागने में ही भलाई है।

    प्रफुल कुमार,

    प्रधानाचार्य

    राजकीय इंटर कालेज, बलिया