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लोक कलाओं का जीवंत मिशाल है सोनाडीह का मेला

विकास खण्ड चिलकहर के प्रसिद्ध उचेड़ा स्थित मां चण्डी मंदिर पर लगे इण्डिया मार्का हैण्डपंप व पानी की मशीनें खराब होने से श्रद्धालुओं की दुश्वारियां बढ़ गई हैं। लोगों की अनदेखी के चलते मंदिर का निरीक्षण नवरात्र शुरू होने से पहले किया गया पर हैण्डपंप नहीं बन सका। इस बावत जलनिगम के अधिकारियों का कहना है कि गांवों में खराब पड़े इण्डिया मार्का हैण्डपंपों को ठीक कराना ग्रामसभा के जिम्मे है। मंदिर पर दर्शन पूजन को जाने वाले श्रद्धालुओं को हाथ पैर धोने के लिए प्राथमिक विद्यालय जाना पड़ रहा है या फिर सिर्फ दुकानदार के यहां थोड़े से पानी से काम चलाना पड़ रहा है।

By JagranEdited By: Published: Tue, 09 Apr 2019 05:29 PM (IST)Updated: Wed, 10 Apr 2019 07:47 AM (IST)
लोक कलाओं का जीवंत मिशाल है सोनाडीह का मेला
लोक कलाओं का जीवंत मिशाल है सोनाडीह का मेला

जागरण संवाददाता, बिल्थरारोड (बलिया): चैत्र नवरात्र शुरू होते ही यूं तो मां भगवती के दरबार में भक्तों का रेला लगना शुरु हो जाता है लेकिन क्षेत्र के सोनाडीह धाम की महिमा कई मायनों में खास है। श्रद्धालुओं में मंदिर के प्रति अटूट आस्था है। यहां की परम्परा भी एकदम अलग और अनूठी है। श्रद्धालुओं की मनौती पूरी होने पर यहां धूमधाम से गोंडऊ व मृदंगी नाच कराने की परम्परा प्रचलित है। जो आज भी आकर्षण का केंद्र है।

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शायद यही वजह है कि क्षेत्र में आज भी गोंडऊ व मृदंगी नाच जीवंत है। यही नहीं शूकर की बलि चढ़ाना भी मुद्दतों से जारी है। यहां सैकड़ों की संख्या में मौजूद बंदरों से न सिर्फ मंदिर प्रांगण की शोभा बढ़ जाती है बल्कि मां भवानी का प्रसाद पाने के लिए भी ये काफी लालायित रहते हैं। तहसील मुख्यालय से करीब 8 किमी. पश्चिम स्थित सोनाडीह का मां भगेश्वरी-परमेश्वरी मंदिर महिमा के कायल गैर जनपदों व प्रांतों के भक्तों की यहां भीड़ लगी रहती है। हर वर्ष लाखों श्रद्धालु अपना मत्था टेक कर मां से कुशल की कामना करते हैं। इस बार भी चैत्र नवरात्र में प्रति दिन हजारों की संख्या में भक्त हर रोज पहुंच रहे हैं।

मंदिर के आसपास करीब 52 बिगहा दायरे में इन बंदरों का साम्राज्य फैला है। ये कभी इस परिधि से न तो बाहर जाते हैं और न ही बाहर के बंदरों व मवेशियों को मंदिर की परिधि में प्रवेश ही करने देते हैं। यहां के बंदरों की विशेषता है कि मंदिर में हर रोज सुबह-शाम आरती व पूजा के दौरान वे मां शेरावाली की भक्ति भी करते हैं और सबसे बड़ी बात कि मंदिर से पूजा कर बाहर आने वालों से प्रसाद लेने के लिए सदैव लालायित रहते हैं। यही कारण है कि यहां आने वाला हर शख्स अपनी मन्नत पूरी होने की कामना कर निकलते ही सबसे पहले यहां के पहरेदार भक्त बंदरों को प्रसाद स्वरूप चना व अन्य चीजें देने के बाद ही आगे बढ़ता है।

इनसेट

14 से शुरू होगा मेला

मुख्य रूप से चैत्र नवरात्र से पूर्णिमा तक चलने वाला विख्यात सोनाडीह मेला इस बार 14 अप्रैल से शुरु होगा। दुकानदार लगाई जाने वाली दुकानों को सेट करने में जुटे हैं। एक समय था जब यहां का विख्यात व विशाल सोनाडीह मेला में गैर प्रांतों के व्यापारियों की टोली पहुंचती थी कितु आज यहां की रौनक घटने लगी है। कभी यहां कोलकाता, इलाहाबाद, बिहार व अन्य प्रांतों से सैकड़ों की संख्या में फुटकर दुकानदार पहुंचते थे और इनके दम पर नवरात्र में विशाल मेला लगता था कितु पिछले एक दशक से यहां के मेला की रौनक कम हो गयी है।


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