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    ऐतिहासिक ददरी मेले में तैयार हो रहा सबसे बड़ा 'भारतेंदु मंच', धर्मगुरु और अनुयायी रहेंगे मौजूद

    Updated: Mon, 10 Nov 2025 08:01 PM (IST)

    बलिया के ऐतिहासिक ददरी मेले में इस बार सबसे बड़ा 'भारतेंदु मंच' बनाया जा रहा है, जहां धर्मगुरु और उनके अनुयायी उपस्थित रहेंगे। प्रशासन ने मेले की सुरक्षा व्यवस्था को भी मजबूत किया है ताकि किसी भी अप्रिय घटना से बचा जा सके और शांति बनी रहे।

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    ददरी मेले में आज तैयार हो जाएगा सबसे बड़ा भारतेंदु मंच।

    जागरण संवाददाता, बलिया। ददरी मेला में भारतेंदु मंच मंगलवार को तैयार हो जाएगा। इसके लिए जर्मन हैंगर लगाया जा रहा है। अब तक का सबसे वृहद जर्मन हैंगर लगभग 100×350 फीट का यहा लगाया जा रहा है। इसी जर्मन हैंगर के नीचे भारतेंदु मंच पर संत समागम का आयोजन होगा। अब पंथों की संख्या लगभग 20 हो गई है, जिसके धर्मगुरु के साथ शिष्य और अनुयायियों भी मौजूद रहेंगे। हिंदी साहित्य के जनक भारतेंदु हरिश्चंद्र की स्मृति में इस मंच को स्थापित किया गया था।

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    इस मंच पर रामाशंकर दास महाराज कामेश्वरधाम कारों, महामंडलेश्वर कौशलेन्द्र गिरि श्रीनाथ मठ रसड़ा, बालकदास महाराज लखनेश्वरडीह, अमरजीत महाराज शिवनारायणी पंथ, राजीवानंद महाराज उदासीन पंथ नागाजी मठ, ब्रह्माकुमारी उमा बहन, गुरुप्रीत सिंह रागी हजूरी सिक्ख पंथ, बिजेंद्र नाथ चौबे जी गायत्री परिवार और आचार्य ज्ञानप्रकाश वैदिक आर्यसमाज से संदेश मिलेगा।

    वहीं, आनंद गौरांग दास श्रीकृष्णाभक्तामृत इस्कान, रामगोपाल उपादेष्टा, विहंगम योग, भंते राहुल बौद्ध धम्म समेत अन्य की जुटान होगी। इस समागम में राष्ट्र निर्माण सहित समाजिक एकता, सद्भाव और सेवा का संदेश मिलेगा। भौतिक प्रगति के साथ आध्यात्मिक उन्नति और विश्व शांति का संदेश भी गुथा जाएगा।

    हिंदी साहित्य व रंगमंच की गौरव गाथा

    भारतेंदु हरिश्चंद्र ने 'भारतवर्षोन्नति कैसे हो सकती है' विषय पर ददरी मेले में राष्ट्र चिंतन किया था। 1884 का व्याख्यान हरिश्चंद्र चंद्रिका में प्रकाशित भी हुआ। इसे बलिया व्याख्यान के नाम से भी जाना जाता है। इससे पूर्व इनके दो नाटकों ''राजा हरिश्चंद्र'' और ''नीलदेवी'' का मंचन भी किया गया था। इतिहासकारों के मुताबिक 1884 में बलिया के तत्कालीन कलेक्टर डीटी राबर्ट्स (डेविड थामसन) थे, तब हिंदी देश सेवा सभा और आर्य समाज के संयुक्त आमंत्रण पर भारतेंदु हरिश्चंद्र को ददरी मेले में आमंत्रित किया गया था।

    स्वतंत्रत होने के बाद भारतेंदु हरिश्चंद्र की स्मृति में इस मंच को हर वर्ष ददरी मेले का स्थायी हिस्सा बनाया गया। इस मंच पर रामचंद्र शुक्ल, हजारी प्रसाद द्विवेदी जैसे महान साहित्यकारों ने भी इस मंच से अपनी रचनाओं का पाठ किया। समय के साथ यह मंच हिंदी साहित्यकारों और कलाकारों के लिए सम्मान का प्रतीक बन गया है।