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    ऐतिहासिक ददरी मेला दिला रहा पुरातन परंपरा की याद, शाम होते ही रंगों में डूबता शहर

    Updated: Sun, 23 Nov 2025 03:14 PM (IST)

    ऐतिहासिक ददरी मेला अपनी पुरानी परंपराओं को जीवंत कर रहा है। शाम होते ही शहर रंगों से सराबोर हो जाता है। मेले में लोग खरीदारी करते हैं, स्थानीय व्यंजनों का स्वाद लेते हैं और अपनी संस्कृति से जुड़े महसूस करते हैं। यह मेला एक अनूठा अनुभव प्रदान करता है, जो लोगों को अपनी विरासत की याद दिलाता है।

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    ऐतिहासिक ददरी मेला दिला रहा पुरातन परंपरा की याद।

    जागरण संवाददाता, बलिया। ददरी मेला अपने आप में अनोखा और अलबेला है। मेले में एक तरफ देसी सामानों की दुकानें पुरानी परंपरा की ओर ध्यान ले जा रहीं हैं। सौंदर्य प्रसाधन, खिलौने और आधुनिक घरेलू सामानों की दुकानें मन को आधुनिक बना रहीं हैं। शहर के पास लगे मेले कई स्थानों के दुकानदार पधारे हैं। कानपुर से खजला वाले आए हैं। सहारनपुर के व्यवसायी काष्ठ कला की दुकान सजाए हैं।

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    बिहार के दुकानदार कंबल व ऊनी वस्त्र की दुकान किए हैं। मेले में कई जनपदों से आए दुकानदारों की लगभग 700 दुकानें सजीं हैं। हरेक माल पांच रुपये, 10 रुपये, 20 रुपये, 40 रुपये और 100 रुपये की दुकानों पर भी भीड़ कम नहीं हो रही। यहां कई तरह के सामान हैं, लेकिन उनकी कीमत एक है।

    दिन के 10.30 बजे से ही मेले में दूर-दराज के लोग भी विभिन्न प्रकार के वाहनों से पहुंचने लगे थे। रविवार होने के चलते इस दिन मेले में काफी भीड़ दिखी। इससे दुकानदार भी खुश थे। शादी वाले घरों के लोग भी मेले में आकर अपनी लिस्ट के अनुसार खरीदारी कर रहे हैं।

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    ऐसा नहीं कि उनके इलाके में ये सामान नहीं मिलेंगे, लेकिन मेले से सामान खरीदने के पीछे उनका तर्क है कि यहां सामान कुछ सस्ता है। बैरिया से मेले में अपने मित्रों के साथ पहुुंचे अमन सिंह ने बताया कि इस मेले में हर साल आता हूं। मेले में बिकने वाले कुछ देसी सामान ऐसे होते हैं, जो गांव की तरफ अब नहीं मिल पा रहे हैं।

    कुदाल, हसुआ, खुरपा, बेल्चा, रम्मा, टांगी व पशुओं को बांधने वाला रस्सी, जाड़े के लिए देसी कंबल आदि अब गांव के बाजार में नहीं मिल पाते हैं। ये सामान मेले में उपलब्ध हैं। बहुत से लोग अपने बच्चों को भी मेले में घुमाने लाए थे। बच्चे काफी खुश नजर आ रहे थे।

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    बातचीत में बच्चों ने कहा कि मेला हमेशा ऐसे ही रहना चाहिए। कभी खत्म नहीं होना चाहिए। दरअसल मेले में चरखी, सुनामी झूला, ब्रेक डांस झूला आदि बच्चों की पहली पसंद बनी हुई है।

    मिठाई की दुकानों पर गुड़ की जलेबी का स्वाद लोग जरूर ले रहे हैं। साउथ इंडियन फूड फ्राई राइस, इडली, डोसा की बिक्री भी हो रही है।

    भीड़ के अनुपात में नहीं हुआ इंतजाम

    मेले में प्रति दिन लगभग 30 हजार लोग पहुंच रहे हैं, लेकिन जिला प्रशासन की ओर से उस अनुपात में इंतजाम नहीं किए गए हैं। स्वच्छता का ध्यान रखा गया है, लेकिन मेले से बाहर आने पर गंदगी का अंबार भी दिखने लगता है।

    यातायात व्यवस्था भी ठीक नहीं है। मेले में आने वाले लोगों को पहले जाम का सामना करना पड़ रहा है, उसके बाद ही सभी मेले में पहुंच पा रहे हैं। मेले को लेकर शहर के स्टेशन रोड में भी हर समय जाम की स्थिति रह रही है।