स्वतंत्रता के सारथी: देश से पहले 1942 में ही आजाद हो गया था जिला 'बलिया', 84 वीरों ने दिया बलिदान
बलिया जिले ने 1942 में स्वतंत्रता संग्राम में अद्वितीय भूमिका निभाई। मंगल पांडेय के दिखाए मार्ग पर चलते हुए यहां के क्रांतिकारियों ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ विद्रोह कर दिया। चित्तू पांडेय के नेतृत्व में बलिया ने कुछ दिनों के लिए स्वतंत्रता प्राप्त की और अपनी सरकार स्थापित की। हालांकि यह स्वतंत्रता अल्पकालिक थी लेकिन इसने देश के स्वतंत्रता आंदोलन को नई ऊर्जा दी।

जागरण संवाददाता, बलिया। ब्रिटिश हुकूमत की गुलामी जूझते देश ने पहली बार 15 अगस्त, 1947 को स्वतंत्र हवा में सांस ली। इस स्वतंत्रता को पाने के लिए अगणित वीर बलिदानियों ने अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया। राष्ट्र की अस्मिता की रक्षा के के लिए वीरता की ऐसी मिसाल पेश की कि उनकी कहानियां आज भी लोकमानस में जीवित हैं।
1857 में बलिया के मंगल पांडेय ने क्रांति का जो बीज बोया था, उसी का विराट स्वरूप 1942 की अगस्त क्रांति थी। आजादी की जंग में देश में बलिया पहला जिला था जो पांच साल पहले ही कुछ दिनों के लिए आजाद हो गया था। कौशल कुमार सिंह, चंडीप्रसाद, गौरीशंकर, मकतुलिया देवी सहित 84 क्रांतिकारियों ने बलिदान देकर फिरंगियों को अपनी ताकत का एहसास कराया।
महात्मा गांधी के नौ अगस्त को मुंबई अधिवेशन में करो या मरो के शंखनाद के बाद पूरे देश में ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ आंदोलन शुरू हो गया था। उस कड़ी में बलिया के क्रांतिकारियों ने एक के बाद एक थाना व तहसीलों पर कब्जा जमाना शुरू कर दिया था।
13 अगस्त 1942 से ही कलेक्ट्रेट और जजी कचहरी पर वीरांगना जानकी देवी के नेतृत्व में फहराया तिरंगा लहरा रहा था तो रेवती और सहतवार में स्वराज सरकार में मजिस्ट्रेट से लेकर पुलिस तक की जिम्मेदारी नागरिक स्वयं सेवक निभा रहे थे। बाजार में सभी सामान उचित मूल्य और नाप-तौल पर उपलब्ध थे।
कहीं कोई चोरी, डकैती तो छोड़िए सामान्य मारपीट झगड़े की घटनाओं पर पूरी तरह से लगाम लग गई थी। क्रांतिकारियों का नेतृत्व करने वाले चित्तू पांडेय सहित अन्य नेताओं को जिला कारागार में बंद कर दिया गया था। बैरिया में 20 लोग बलिदान हो गए थे। सिकंदरपुर में ब्रिटिश थानेदार ने बच्चों के जुलूस पर घोड़ा दौड़ा दिया था।
जिससे दर्जनों बच्चों के हाथ पैर कुचलकर टूट गए थे। सुखपुरा, बांसडीह, चौरवां, रसड़ा, नरहीं, चितबड़ागांव आदि स्थानों पर भारत माता के सपूतों पर गोलियां बरसाई गई। इससे खफा पूरे जनपद के लोगों ने 19 अगस्त बलिया जिला कारागार पर हमला करने का मन बना लिया।
जिला कारागार पर उमड़ी थी 50 हजार की भीड़
जिला कारागार पर 50 हजार की भीड़ करो या मरो नारे के साथ हाथों में हल, मूसल, कुदाल, फावड़ा, हसुआ, गुलेल, मेटा में सांप व बिच्छू भरकर जिला कारागार पर उमड़ पड़ी थी। यह देखकर उस समय के जिलाधिकारी जगदीश्वर निगम व एसपी रियाजुद्दीन ने तत्काल चित्तू पांडेय संग राधामोहन सिंह व विश्वनाथ चौबे को तत्काल जेल से रिहा कर दिया। चित्तू पांडेय के नेतृत्व में सभी सरकारी कार्यालयों पर तिरंगा झंडा फहरा दिया गया।
शाम करीब छह बजे टाउन हाल में सभा कर बलिया को आजाद राष्ट्र घोषित करते हुए देश में सबसे पहले ब्रिटिश सरकार के समानांतर स्वतंत्र बलिया प्रजातंत्र की सरकार का गठन किया।
चित्तू पांडेय को शासनाध्यक्ष नियुक्त किया गया। चित्तू पांडेय ने 22 अगस्त 1942 तक यहां सरकार चलाई, लेकिन 23 अगस्त की रात बलूच फौज ने फिर से थाना, तहसील व सरकारी कार्यालयों पर कब्जा जमा लिया, इसके बावजूद बलिया के वीरों ने हर मोड़ पर अपनी बहादुरी का लोहा मनवाया।
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