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    विवाह पूर्व दोनों पक्ष की अहम रश्म है हल्दी मटकोड़

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    Updated: Sat, 10 Mar 2012 06:30 PM (IST)

    सिकंदरपुर (बलिया): भारतीय लोक जीवन में परम्पराओं का अपना एक अलग महत्व है जो विश्वास और श्रद्धा के आधार पर आज भी जीवित हैं। विज्ञान के बढ़ते चरण के बावजूद इन परंपराओं के भविष्य में भी जारी रहने की प्रबल संभावना है। ये परंपराएं कब से और क्यों निभायी जाती हैं इस का उत्तर तो कहीं नहीं मिलता मात्र अनुमान ही लगाया जा सकता है और इस अनुमान के आधार पर बस एक ही उत्तर मिलता है कि पीढि़यों से उन्हें निभाया जाता है। इसलिए आज भी निभाते हैं। परंपराएं किस रूप में निभायी जाती हैं यह दिखायी तो पड़ता है किंतु क्यों है इस का उत्तर नहीं। ऐसी ही एक प्रचलित परंपरा है मटकोरा का जिसे शादी विवाह के अवसर पर निभाया जाता है। यह शादी के पहले रस्म शगुन उठान के बाद ही होता है। मटकोरा शब्द अपने मूल रूप में क्या था इस का आज कोई उत्तर उपलब्ध नहीं है किंतु विद्वानों के अनुसार यह मिट्टी से याचना का रस्म है। भारतीय परंपरा में मिट्टी को मां माना गया है क्योंकि वह धन धान्य दोनों की आपूर्ति करती है। वह वृक्षों द्वारा फल फूल और स्वास्थ्य जीवन के लिए औषधियां प्रदान करती है। अपने छाती से फसल उगाकर सभी का पेट भरती है तथा गर्भ से रत्‍‌न प्रदान करती है। मटकोरा, गृहस्थ जीवन में प्रवेश के पूर्व धरती से याचना है कि वह हमें स्वस्थ जीवन और मजबूत आर्थिक आधार प्रदान करें। वह धनधान्य पूर्ण करें जो गृहस्थ जीवन का आवश्यक तत्व है। जहां तक इस मटकोरा परंपरा के निभाने के प्रक्रिया की बात है तो इसमें वर तथा वधू दोनों पक्षों की महिलाएं शादी के निर्धारित तिथि के दो तीन दिन पूर्व सम्पादित करती हैं। महिलाएं समूह में मंगल गीत गाती एक दउरी में जौ, पान, कसैली तथा पीला कपड़ा का एक टुकड़ा रख गांव के बाहर जाती हैं। वहां साथ लाए फावड़ा की ऐपन सिंदूर से पूजा के बाद जम कर नाच गाना के बीच वर अथवा वधू के बुआ द्वारा जमीन से मिट्टी खोदने के साथ ही पांच महिलाओं का खोईंछा भरा जाता है। इस बीच लगुहा महिलाओं के प्रति सुहाग गालियां गायी जाती है। बुआ के नहीं रहने पर मिट्टी खोदने का रस्म वर अथवा वधू की बहन द्वारा पूरा किया जाता है। तत्पश्चात खोदी गयी मिट्टी को दउदा में रख महिलाएं घर वापस आ जाती है। यहां महिलाओं द्वारा साथ लायी गयी मिट्टी को मकान के आंगन में रख पंडित जी के पूजा के बाद उस कलश स्थापित किया जाता है। बाद में दूल्हा और दुल्हन को हल्दी लगाने के साथ ही उनकी कलाई में धागा में बंधी लोहे की अंगूठी तथा जवाइन बांधा जाता है जिसे कंगन अथवा ककन कहते हैं। हिन्दू विवाह पद्धति में यह अमत महत्वपूर्ण रश्म है।

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